Brahmakumari Lekharaj ke Karname | ब्रह्माकुमारी के लेखराज के कारनामें

Written by Rajesh Sharma

📅 March 2, 2022

Brahmakumari Lekharaj ke Karname यहाँ देखेंगें उसका पाखण्ड व उस पर कानूनी कार्यवाही हुई उसका भयंकर पाप सबूत के साथ देखिए ।

ब्रह्माकुमारी लेखराज के कारनामें

ब्रह्माकुमारी संस्था की धूर्तता व पाखण्ड

Brahmakumari Lekharaj ke Karnameमाउण्ट आबू में लेखराज अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा । अन्ततोगत्वा 18 जनवरी सन् 1969 को हार्ट-अटैक से काल के गाल मेें समा गया । लेखराज ने सन् 1951 से सन् 1969 तक मृत्युपर्यन्त जो कुछ मूर्खतापूर्ण बकवास सुनाया उसे ‘ज्ञान मुरली’ कहा जाता है । ब्रह्माकुमारियों द्वारा प्रतिदिन इन्हीं पाँच वर्ष की बकवास को पढ़ाया व सुनाया जाता है तथा हर पाँच वर्ष बाद दोहराया जाता है ।

लेखराज के जीवन काल से ही मुरलियों में फेरबदल होता आ रहा है । उसे टैपरिकार्ड में टैप करके भी रखा जाता था । लेखराज की मृत्यु के बाद सारी रिकार्ड की गयी कैसटों को नेस्तनाबूद करदिया गया । काट-छाँट की हुई 2 या 4 कैसटें दिखावे के लिये रखी हैं । अब लेखराज की मृत्यु के बाद एक और झूठ व अंधविश्वास का पुलिंदा जोड़ा गया है कि गुलजार दीदी के शरीर में लेखराज व शिव बाबा आते हैं ।Brahmakumari Lekharaj ke Karname

ब्रह्माकुमारियों द्वारा लेखराज को ब्रह्मा बताकर उसका ध्यान करने को कहा जाता है । ब्रह्मा, विष्णु व महादेव के संयुक्त चित्रों में ब्रह्मा के स्थान पर लेखराज का चित्र रखते हैं, लेखराज की पत्नी जसोदा को आदि देवी सरस्वती बताकर इनका चित्र भी लेखराज के साथ रखते हैं। ईश्वर के विषय में इस मत की पुस्तकों में ऊटपटांग, अप्रमाणित, सनातन धर्म-विरोधी वर्णन मिलता है ।

लेखराज का कालाजादू व काले कारनामे

लेखराज का कालाजादू व काले कारनामेहैदराबाद (सिन्ध) पाकिस्तान 15 दिसम्बर 1876 (जन्मदिन विवादित 1876 या 1884 ) में जन्मा लेखराज अपनी अधेड़ उम्र तक कलकत्ते में हीरे का व्यापार करता रहा। दस लाख रुपये कमाये जो उस जमाने में काफी अधिक राशि थी । हीरा का धन्धा बन्द कर एक बंगाली बाबा को दस हजार रुपये देकर सम्मोहन, कालाजादू आदि तंत्र-मंत्र सीखा ।

सन् 1932 से इसने खुद के (वैष्णव लोहाणा) समाज में मनगढ़न्त भाषण शुरु किया तथा ‘ ओम मंडली ’ नामक संगठन बनाया । सन् 1938 तक इसने 300 सहयोगी बना लिया । इसके रिश्तेदार जमात बढ़ाने के लिये प्रचारित करने लगे कि दादा लेखराज के शरीर में शिवजी प्रवेश करके ज्ञान सुनाते हैं ।

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मायावी लेखराज की पापलीला

लेखराज का कालाजादू व काले कारनामे लेखराज हैदराबाद में जहां रहता था उसे उसने आश्रम नाम दे दिया जिससे वहाँ महिलाओं का आना-जाना शुरु हो गया । लेखराज ने महिलाओं को उनके पति और परिवारों को छोड़ने के लिये उत्साहित किया । महिलाएं अपने पति व घर-परिवार को छोड़ने लगीं तब सिन्धी समाज भड़क गया । ब्रह्माकुमारियों को उनके परिवार वालों ने अच्छी तरह पीटा ।

राजनैतिक पार्टियों व आर्य समाज जैसे संगठनों के हस्तक्षेप से लेखराज के जादू-टोना और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ । सम्मोहन की कला के माध्यम से लोगों को सम्मोहित करके एक विकृत पंथ बनाने की बात पायी गयी ।

18 जनवरी सन् 1939 में 12 और 13 साल की दो लड़कियों की माताओं ने कराची के ऍडिशनल मजिस्ट्रेट के न्यायालय में , ओम मंडली के खिलाफ एक याचिका दायर की । महिलाओं की शिकायत थी कि उनकी बेटियों को गलत तरीके से उनकी मरजी के बिना ओम मंडली ने कराची में अपने पास रखा है । अदालत ने लड़कियों को उनकी माताओं के साथ भेजने का आदेश दिया ।

लेखराज का पाखण्ड व उस पर कानूनी कार्यवाही :

Brahmakumari Lekharaj ke Karnameसिन्ध में ओम मंडली ने भयंकर पाखण्ड किया । लोगों की जवान बहन, बेटियों व पत्नियों को लेखराज अपनी गोद में बिठाने लगा । लेखराज का जवान-जवान लड़कियों के साथ सोना, बैठना, साथ में नहाना आदि देखकर जनता में काफी आक्रोश व ओम मंडली के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुआ ।

उस समय सिन्ध में लेखराज की अनैतिक कारनामों के कारण धार्मिक जनता में बड़ी खलबली मच गई थी। इसके विरुद्ध ‘ भाई बंध मंडली’ के प्रमुख मुखी मेघाराम, साधु श्री टी. एल. वास्वानी आदि लोक-सेवकों ने धरना दिया । ओम मंडली में गयी सैकड़ों लड़कियों को छुड़ाकर उनके घरवालों तक पहुँचायागया । सिन्ध प्रान्त की सरकार के दो हिन्दू मंत्रियों ने विरोध-प्रदर्शनात्मक इस्तीफा भी दे दिया था ।

सन् 1939 में ओम मंडली के विरुद्ध धरना : 

मई 1939 में सिन्ध सरकार ने सन् 1908 के आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम का इस्तेमाल कर ओम मंडली को गैर कानूनी संगठन घोषित किया । ओम मंडली को बंद करने व अपने परिसर को खाली करने का आदेश पारित किया गया ।

लेखराज विरोध और कानून से बचने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ कराची भाग गया । वहाँ ओम निवास नाम से उसने एक हाईटेक अड्डा (भवन) बनाया। कराची में कुछ समय बाद ओम मंडली में लेखराज व गुरु बंगाली के दो विभाग हुए । ओम राधे सहित तमाम महिलाओं के साथ लेखराज हैदराबाद से माउण्ट आबू भाग आया और यहाँ अपना पाखण्ड शुरु किया । लेखराज की जवान लड़की ‘पुट्टू’ एक गैरबिरादरी वाले अध्यापक ‘बोधराज’ को लेकर भाग गयी और उससे शादी भी कर लिया ।

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