आयुर्वेद अपने आप में सम्पूर्ण स्वास्थ्य पद्धति है । यहाँ हम आयुर्वेद और अष्टांग आयुर्वाद क्या है ? (Ashtang Ayurved kya hai ?) जानेगें तथा इसकी खोज किसने की यह भी ।
।। आयुर्वेद ।।

Ashtang Ayurved kya hai
हिताहितं सुखं दुखमायुस्तस्य हिताहितम् ।
मानं च तश्च यत्रोक्तम् आयुर्वेद: स उच्यते ।।
– चरक संहिता, सूत्र स्थानम् 1/41
हित और अहित आयु, सुख और दु:ख आयु, आयु के लिए क्या हितकर है और क्या अहितकर, इसकी पहचान जहाँ बतलाई गई है उसे ‘आयुर्वेद’ कहते हैं । अत: आयुर्वेद एक जीवन पद्धति है । इसका उद्देश्य भी केवल रोगी के रोग का निवारण ही नहीं अपितु स्वस्थ का स्वास्थ्य रक्षण भी है ।
धर्मार्थ नार्थकामार्थम् आयुर्वेदो महर्षिभि: ।
प्रकाशितों धर्मपर रिच्छद्धि: स्थानमुत्तमम् ।।
– चरकसंहिता, चिकित्सा स्थानम् 1/4, 56
धर्म परायण महर्षियों ने धर्मार्थ ही आयुर्वेद को प्रकाशित किया, अर्थ और काम के लिए नहीं । आज विश्व के अनेक देश अपनी-अपनी चिकित्सा पद्धति से परेशान होकर एक स्वर से जिस आयुर्वेद की स्तुति कर रहे हैं उस विज्ञान को भारतीय मनीषियों ने अपने शोधों और प्रयोगों द्वारा जाना और सर्वजन हिताय उसे मानवता को समर्पित कर दिया ।
यह भई पढें- आयुर्वेद के जनक
।। अष्टांग आयुर्वेद ।।
(Ashtang Ayurved kya hai ?)
1. रसायन तंत्र

Ashtang Ayurved kya hai
बुढ़ापा तथा रोग दूर करनेवाली औषधियों को रसायन कहा गया है । भारत में रसायन का कीमियागिरी के रूप में स्वतंत्र विकास हुआ । पारे के विभिन्न प्रयोगों द्वारा स्वास्थ्य और दीर्घायु करनेवाले अनेक सूत्र एवं कथाएँ ग्रंथों में हैं । बौद्ध रसायनशास्त्री नागार्जुन इस विद्या में प्रवीण थे ।
2. कौमार भृत्य
यह प्रसूति-विज्ञान है । इसके अन्तर्गत गर्भिणी स्त्री, नवजात शिशु तथा बालकों के रोगों का इलाज किया जाता है । चरक-संहिता तथा काश्यप-संहिता में इस विषय की अच्छी जानकारी है ।
3. अगदतंत्र
यह विषतंत्र है । विष दो प्रकार के होते थे – स्थावर और जांगल । वनस्पति, बीज आदि के स्थावर विष और साप, बिच्छू आदि के जांगल विष से राजा के रसोई घर तथा युद्ध क्षेत्र में बचाने के लिए अगदतंत्र का स्वतंत्र विकास हुआ । कौटिल्य के अनुसार राजा को चाहिए कि वह हमेशा अपने पास जांगल विष का पहचानने वाले वैद्यों को रखे । कौटिल्य ने विषकन्याओं से बचने के उपाय भी बताए हैं ।
4. काय चिकित्सा
मुख्यत: औषधियों द्वारा की जानेवाली शरीर की चिकित्सा को काय चिकित्सा कहते हैं । चरक-संहिता इस विषय का प्रमुख ग्रंथ हैं ।
5. शलाक्यतंत्र
किसी धातु का लकड़ी की सलाईको शलाका कहते हैं । आँख, कान, नाक, मुँह आदि के रोगों के इलाज के लिए शलाकाओं का इस्तेमाल होता है । इसलिए गले के ऊपर के आँख, कान, नाक आदि अवयवों के रोगों की चिकित्सा को शलाक्यतंत्र कहते हैं ।
6. शल्यतंत्र
‘शल्य’ शब्द का अर्थ है दु:ख या पीड़ा । अत: जिन विधियों से शल्य को दूर किया जाए, उनका समावेश शल्यतंत्र में होता है । परंतु सुश्रुत-संहिता शल्यतंत्र का प्रमुख ग्रंथ है । वाग्भट ने भी शल्य चिकित्सा की अच्छी जानकारी अपने ग्रंथ में दी ।
7. वाजीकरण तंत्र
‘वाजी’ शब्द के दो अर्थ हैं : घोड़ा तथा वीर्य । जिन विधियों से पौरुष में वृद्धि करके अधिकाधिक कामसुख उठाया जा सके, उन्हें वाजीकरण कहते हैं । यह विषय मूलत: कायचिकित्सा का अंग है, परन्तु स्वतंत्र रूप से इसका विकास आयुर्वेद के अंतर्गत हुआ ।
8. भूतविद्या
अथर्ववेद में पिशाच, राक्षस आदि को रोगोत्पत्ति के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है । बाद में केवल उन्माद से संबंधित रोगों के लिए भूत-प्रेत को जिम्मेदार ठहराया गया । मानसिक रोगों का इलाज झाड़-फूँककर किया जाता था, देहातों में आज भी होता है ।
आयुर्वेद अपने आप में सम्पूर्ण स्वास्थ्य पद्धति है । चिकित्सा की ये ही विधियाँ आज विश्व में अपनाई जा रही है । पाश्चात्य जगत ने केवल अपनी भाषाओं में नाम देकर विकास किया है । मूल रूप से ये भारत की ही देन हैं ।
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