Dhatuon ka Avishkar II धातुओं का आविष्कार II Invention of Metals

Written by Rajesh Sharma

📅 August 10, 2024

Dhatuon ka Avishkar

विश्व को भारत नेें विभिन्न धातुओं का आविष्कार (Dhatuon ka Avishkar) करके कब और कैसे दिया यहाँ हमें जानने को मिलेगा ।

विभिन्न धातुओं का आविष्कार- Dhatuon ka Avishkar

गंधक, लोहा, चाँदी, टिन, एंटीमनी, स्वर्ण, पारा, तांबा तथा सीसा आदि के खोजकर्ता कौन ?

आधुनिक वैज्ञानिक यूरोपीय विज्ञान को अधिक समृद्धशाली मानते हुए फारस्फोरस, रेडियम आदि की खोज का सेहरा ढोल पीट-पीटकर बाँधते हैं । परन्तु गंधक, लोहा, चाँदी, टिन, एंटीमनी, स्वर्ण, पारा तथा सीसा आदि के खोजकर्ताओं के नामों की चर्चा भी नहीं करते ।

इस विषय पर आज का विदेशी तथा विदेशी मानसिकता के शिकार भारतीय लेखक भी मूक हैं क्योंकि इन धातुओं की खोज शोधन प्रक्रिया की शुरुआत तथा विभिन्न उद्देश्यों में इनका उपयोग भारत में प्रारंभ हुआ ।

लौह स्तम्भ या विष्णुध्वज’ लोहे की लाट

Lauh stambh

Lauh stambh

भारतीय लौह कर्म का कीर्तिस्तंभ  ’विष्णुध्वज‘ लौह स्तम्भ में अंकित जानकारी के अनुसार लगभग 1500 वर्ष पूर्व मथुरा में निर्मित यह लोहे की लाट राजा अनंगपाल द्वारा दिल्ली के मैहरोलीं में कुतुबमीनार के निकट स्थापित की गयी थी  ।

वर्षा, धूप, सर्दी ,गर्मी आदि सभी प्राकृतिक झंझावातों को 1500 वर्षा से अपने सीने पर झेलनेवाले छः टन से अधिक वजनी ,23.8 फीट ऊचे तथा 16.4 इच व्यास वाले इस स्तंभ पर 15 शताद्वियों में आज तक जंग नही लगी ,यह अपने आप में एक आश्चर्य है  ।इसके निर्माण में  कौन-सी विधि काम में लाई गई कैसे इसे मथुरा से लाकर यहाँ स्थापित किया गया ? ये सब बातें पाश्चात्य वैज्ञानिकों के अथक शोध के बाद भी अभी तक रहस्य ही हैं  । मध्य प्रदेश के धार (भोजकालीन धारा नगरी ), आबू पहाड़ के निकट अंचलेश्वर मंदिर एवं कर्नाटक  की पहाड़ी पर भी ऐसे ही विशाल प्राचीन लौह स्तंभ पाए गए हैं । ये सब चमत्कार उन्हीं कुटीर उधोगों के हैं जिन्हें नकारकर हमने स्वयं की क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह लगा लिया है  ।

तांबे की ढलाई

भारत में विभिन्न धातुओं का आविष्कार- Dhatuon ka Avishkar की कडी में सुलतानगंज बिहार के बौद्ध विहार के अवशेषों से पाँचवी शताब्दी ईस्वीं की प्राप्त हुई बुद्धमूर्ति जो कि 7.6 फीट लंबी और एक टन भारी है । ताम्र लौहकार्य में की गई उत्कृष्ट उपलब्धियों की प्रतीक वह मूर्ति अब इंग्लैण्ड के बर्मिघम संग्रहालय में रखी हुई है ।

प्राचीन भारत में ताँबे का खूब इस्तेमाल हुआ । ताँबे के बहुत सारे पुराने सिक्के मिले हैं, जो ढाले जाते थे । ढलाई के दानपत्रों के लिए भी ताँबे का इस्तेमाल हुआ है । शुद्ध ताँबे के अलावा उसकी मिश्र धातुओं जैसे पीतल और काँसे का उपयोग वैदिक काल से होता आया है । वनेश्वर और बागौर से 2700 वर्ष ईस्वीं पूर्व के प्राप्त प्रमाणों और तक्षशिला आदि से सिद्ध होता है कि भारत प्राचीनकाल से ही ताम्रलौह विद्या के कुशल जानकार रहे हैं ।

यह भी पढें-  प्राचीन रसायन उद्योग

वीर लौह ‘स्टील’

प्राचीन वैदिक विज्ञान द्वारा तीन धातुओं के सिंम्मश्रण में वीर लौह ‘स्टील’उर्फ ‘वीर’बनाया जाता  था । उसमें ‘क्ष्विंक’अर्जुनिक और कांत यानि लौह चुंबक 3:9:5 के प्रमाण में द्रव्य अवस्था में मिलाए जाते थे । सिद्ध हो जाने के पाश्चात उस सम्मिश्र धातु पर अग्नि,जल, वायु,विधुत ,तोप,गोला-बारुद आदि से कोई क्षति नहीं पहुँचती थी । वह दृढ,वजन में हल्का और सुनहरे रंग का होता था  ।

– J.R. Joyser
Founder International Academy
of Sanskrit Research, mysore

भारत में स्टील के निर्माण की प्राचिन परंपरा रही है । इस वीर लौहे की बनी तलवारों,भालों ,ढालों आदि का निर्यात बड़े पैमाने पर किया जाता था । सिकंदर जब भारत आया था  । तब अपने साथ भारतीय लौहे की चदरें लेकर गया था  । लौहा उत्पादन का यह कार्य पूरे भारत में फैला हुआ था  ।

यह भी पढें- वैदिक भारतीय विज्ञान

धातुओं का आविष्कार (Dhatuon ka Avishkar) में – काँच

हड़प्पा के दो हजार वर्ष ई.पू. तथा तक्षशिला के भिर पर्वत से ई.पू. छह शताब्दी के संस्तरों में अधिक संख्या में विविध आकार और रंगों से युक्त काँच मणि मिले हैं । खुदाई से मिली सामग्री से पता चलता है कि रासायनिक उपकरणों हेतु काँच का प्रयोग होता था । वैदिक ग्रंथों में भी काँच का उल्लेख मिलता है । काँच बनाने एवं काँचबंधन ‘ग्लेजिंग’ की कला भारत की अपनी मूल खोज है ।

काँच को रंगीन बनाने के लिए एन्टीमनी तथा क्युप्रस ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता था । पश्चिमी देशों में मैसोपटामिया आदि को इसका ज्ञान 1500 वर्ष बाद हुआ । हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से प्राप्त मिट्टी के चमकदार बर्तनों एवं काँच के टुकड़ों से पता चलता है कि मिट्टी को पकाने में पायरो टेक्नोलॉजी यानि एक हजार डिग्री से उच्च तापक्रम की विधि का ज्ञान था ।

यह भी पढें- नमक के प्रकार भारत में

धातुओं का आविष्कार (Dhatuon ka Avishkar) में- रत्न

हीरे, मोति, माणिक, पन्ना, मूंगा, वैदूर्य, पुखराज, नीलम आदि विभिन्न रत्नों का उपयोग भारत में हजारों वर्षों से होता आया है । इन रत्नों का उपयोग आभूषणों के रूप में शोभा बढ़ाने एवं विभिन्न ग्रहों की शान्ति के अतिरिक्त रसायनिक प्रयोगों के द्वारा भस्म या द्रव बनाकर औषधि निर्माण के लिए भी होता था । प्राचीन भारत के विभिन्न ग्रंथों में इन रत्नों के आकार-प्रकार, रूप-रंग और विशेषताओं का विस्तृत विवरण मिलता है ।
सूर्यकान्त, नागमणि, गजमुक्ता आदि अनेक चमत्कारिक मणियों को भी चर्चा है जो ऊर्जा निर्माण एवं चिकित्सा जैसे उपयोग में आती है । हो सकता है अभी हमारा विज्ञान उन्हें समझने में उसी प्रकार असमर्थ हो जैसे बहुुत-सी भारतीय बातों को समझने में कुछ दिन पहले तक था ।

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