यहाँ यह सब जानने को मिलेगा कि योग- प्राणायाम- ध्यान- यज्ञ (Yog- Pranayam- Dhyan- Yagy) क्या है क्यों और कैसे किया जाता है । इसकी उत्पत्ति कैसे और किसने की यह सब जानने को मिलेगा ।
।। योग विज्ञान ।।
I Yog- Pranayam- Dhyan- Yagy I
योग का मूल उद्देश्य चित्तवृतियों का निरोध करके परमतत्व की प्राप्ती रहा है । परन्तु यह सिर्फ आध्यात्मिक साधना ही नही वरन शरीर विज्ञान से संबंधित विशुध्द वैज्ञानिक विधी भी है ।
सपूर्ण विश्व में यह विधि (Yog- Pranayam- Dhyan- Yagy) अत्यंत लोक प्रिय हो रही हैं ।
योग प्रक्रिया द्वारा शरीर पर पड़ने वाले चमत्कारी प्रभावों को आधुनिक पत्रों द्वारा जाना जा रहा है ।
।। प्राणायाम ।।
प्राणायाम का अर्थ है-प्राण का व्यायाम । विधि के अनुसार आकर्षण को ‘पूरक’, धारण को ‘कुम्भक’ और त्याग-बाहर निकालने को ‘रेचक’ कहते हैं । इन त्रिविध क्रियाओं का सम्मिलन ही प्राणायाम है ।
फुफ्फुसकोषों में वायु कुछ अंश में सदा भरी रहती है । जीवितावस्था में कभी भी वे बिल्कुल खाली नहीं होते । उनमें नयी वायु प्रवेश करती रहती है और पहले की दूषित वायु बाहर निकलती जाती है । प्राणायाम होने पर वे शुद्ध हो जाते हैं ।
- प्राणायाम के अधिकारी- ‘त्रिशिखब्राह्मणोपनिषद्’ के अनुसार यम, नियम और आसनों से जिसने नाड़ियों की शुद्धि की हो, वे ही प्राणायाम के अधिकारी माने जाते हैं ।
- जिसे मस्तिष्कविकृति, हृदयकृति, वातप्रकोप, रक्तदबाववृद्धि, उपदंश, सुजाक, मधुमेह अथवा जन्मजात पाण्डु या कामलारोग हो, उसे प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए ।
- जो साधक केवल शास्त्र पढ़कर अभ्यास करने लगते हैं, वे बहुधा हानि उठाते हैं ।
- प्राणायाम के समय मूलबन्ध, उड्डियानबन्ध और जालन्धर बन्ध-इन तीन बन्धों का आश्रय लेना पड़ता है ।
- प्राणायाम के अभ्यास के पहले देह में अति मेद, अति कफ, अति मल या आम रहा हो, अथवा मस्तिष्क, उदर, फुफ्फुसादि प्रदेश में अधिक दोष रहा हो तो नेति, कपाल भाति, धौति, नौलि, बस्ति और त्राटक-इन षट्क्रियाओं में से आवश्यक क्रिया करके प्राणमार्ग को शुद्ध और देहनाड़ियों को प्राणधारणक्षम बना लेना चाहिये ।
प्राणायाम प्रकार- अनुलोम-विलोम, सूर्यभेदी, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रा, भ्रामरी, मूर्च्छा और प्लाविनी प्राणायाम के ये नौ प्रकार हैं ।
(हिन्दु संस्कृति अंक, पृष्ठ क्रमांक-445, 446, 447)
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II ध्यान II
ध्यान एक आध्यात्मिक विज्ञान द्वारा मन को शक्ति वढ़ाने के साथ अनेक प्रकार के मानसिक रोगो का इलाज भी है । भारत में यह मानसिक चिकित्सा प्रणाली बहुत प्राचीन है ।
जयपुर के प्रसिद्ध मानसिक रोग चिकित्सक ड़ाँ शिव गौतम ने इस विषय को प्रचीन भारत में मन चिकित्सा नामक शोधपत्र मे अनेक प्रमाणों के साथ सिद्ध किया है ।
हजारो वर्ष पूर्व शरीर की संरचना के भाग से व्यायाम की विधियों का अविष्कार किया जाना एक अनौखा विज्ञानिक चमत्कार है ।
खेद का विषय है ,परी दुनिया में इस विधि (Yog- Pranayam- Dhyan- Yagy) को सम्मान दिया जा रहा है पश्चिमी देशों में योगसूत्र के प्रेर्णोता महर्षि पतंजली की पूजा की जा रही है । परन्तु भारत में अभी भी इस बात को सम्मान नही मिल पा रहा है ।
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।। यज्ञ ।।
I Yog- Pranayam- Dhyan- Yagy I
अग्नि की विशेषता होती है कि वह किसी वस्तु के मूल गुण को कई गुना विस्तारित करके वायुमंडल में प्रसारित कर देती है । इस तथ्य को जाननेवाले ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और हवन की अनोखी विधि का आविष्कार किया । इस विधि से मानव ही नहीं आपितु प्राणियों और वनस्पतियों समेत सम्पूर्ण पर्यावरण का कल्याण निहित है ।
आयुर्वेद की विभिन्न चिकित्सा प्रणालियों में से धूम्र चिकित्सा भी एक है । यज्ञ ज्वाला मेें जो सामग्री अर्पित की जाती है, वस्तुत: वे विभिन्न प्रकार की औषधियाँ होती है । वर्तमान में हुए प्रयोगों से यज्ञ द्वारा टी.वी. आदि अनेक रोगों के उपचार को चिकित्सकीय वैज्ञानिक मान्यता भी मिली है ।
वस्तुत: यज्ञ अनेक उद्देश्यों को अपने में समेटे हुए एक वैज्ञानिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक आयोजन होता है । जो समाज में उदात्त भावनाओं का संचार भी करता है । ग्रंथों में अलग-अलग प्रकार के अनेक यज्ञों का वर्णन है ।
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