यह Vikas ka Aatank है कि तीन चौथाई आबादी को बस केवल इतना ही दे रहा हो कि वह किसी तरह जिंदा रह सके । नोटवंदी, बेरोजगारी का आकलन भी देखेगें ।
Vikas ka Aatank | यह कैसा विकास का आतंकः
यह कैसा विकास है कि तीन चौथाई आबादी को बस केवल इतना ही दे रहा हो कि वह किसी तरह जिंदा रह सके तथा एमए और इंजीनियरिंग जैसी पढ़ाई पढ़े नौजवान चपरासी, दीवान जैसी नौकरियों के लिए सैकड़ों की तादाद में लाइन में लगते हो ।
नोट-बंदी :
नोट-बंदी बड़े उत्साह से किया गया जिसके फायदे के तमाम पुल बांधे गये, लेकिन हकीकत में उल्टा हुआ । अफरा-तफरी, भुखमरी व बेरोजगारी में अति वृद्धि हुई है । भारत के रोजगारों की बुरी हालत तो थी ही लेकिन नोट-बंदी और GST ने इसमें बाढ़ सी ला दी है ।
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सरकारेें कंपनियों के इशारे पर तथा विश्व रोजगार संगठनों द्वारा प्रतिबंधित होकर कार्य करती हैं । फायदा तो उनका होता है और देश बेरोजगारी व कंगालियत की तरफ बढ़ जाता है । भारत के 15 से 30 साल के नौजवान आधे से ज्यादा ना तो पढ़ाई में हैं ना तो किसी रोजगार में हैं । पूंजीवादी, देश में बहुत बड़े संकट पैदा करते रहते हैं ।
कम्पनी के बड़े-बड़े समूह देश-दुनियाँ को एक कारखाने की तरह चलाना चाहते हैं । चीन इसी सिद्धांत से चल रहा है । जहाँ आये दिन प्रदूषण के लिए आंदोलन होते हैं । वुहान (चीन) इस आंदोलन में बहुत आगे था, कोरोना का प्रोपोगेंडा फैलाकर उसे कुचल दिया गया ।
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