यहाँ Missile ki Khoj मिसाइल की खोज किसने की, चक्र तथा सौर उर्जा का उपयोग कहाँ कहाँ व कैसे होता है यह सब जानकारी दी जा रही है ।
चक्र
मनुष्य को गति देने वावा महानतम् भारतीय आविष्कार-
आज के युग को यदि चक्र का युग बोला जाए, तो अतिश्योक्ति नहीं । मानव के यांत्रिक विकास का आधार चक्र ही है । सर्वप्रथम चक्र का रथ के रूप में यांत्रिक प्रयोग का उल्लेख विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के रथसूक्त में है ।
अभि व्ययस्व खदिरस्य सारमोजो धेहि स्पंदने शिंशपायाम् ।
अक्षवीलो वीलित वीलस्व मा यामादस्मादव जीहिपो न: ।
– ऋग्वेद 3:53:19
रथ के बारे में चक्र, नेमि ‘परिधि’, नाभि, अक्ष और ईषा के अतिरिक्त पवि का भी उल्लेख है, जो पहिए का टायर है । युद्ध के रथों के चक्रों में क्षुरा ‘ब्लेड’ का प्रयोग भी उल्लेखनीय है ।
यह रथ चक्र ही मूल है जो समय की आवश्यकतानुसार विभिन्न आकार लेता गया.. चरखा बना.. सुदर्शन चक्र बना.. पानी खींचने की चरखी बना.. और आधुनिक औद्योगिक युग के रथ की धुरी बनकर अविराम चलता जा रहा है ।
Missile ki Khoj- मिसाइल की खोज किसने की ?
वर्तमान युध्दों में जिस मिसाईल (प्रक्षेपास्त्र) प्रणाली का उपयोग किया जाता है । उसका जन्म भारत में हुआ । पुराने ग्रंथों में अनेक प्रकार के ऐसे प्रक्षेपास्त्रों का उल्लेख मिलता है ,जो मन की शक्ति द्वारा संचालित होते थे । 18 वी शताद्बी में भारत में श्रीरंगपट्टम के दो युद्धों में जिन राँकेटों का प्रयोग किया गया था,वे राँकेट अभी भी लंदन के पास वूलविच के रोटुंड़ा म्यूजियम मे रखे हुए हैं ।
ब्रिटेन के वैज्ञानिक सर बर्नाड़ लावेल ने ‘द ओरिजन एण्ड़ इंटरनेशनल इकोनाँमिक्स आँफ स्पेस एक्सप्लोंरेशन’ में लिखा हैं कि इन भारतीय राँकेटों का अध्यन करने के बाद विलियम कांग्रेव ने सितंबर 1805 में इनमें सुधार करके प्रोटोटाइप राकर्टो का प्रदर्शन किया । इस प्रदर्शन सें प्रधानमंत्री विलियम पिट तथा वार लार्ड़ केस्टल रेग के सचिव अत्यंत प्रभावित हुए । बाद में इनका प्रयोग 1806 में फ्रांस तथा 1807 में नेपोलियन के विरुद्व किया गया । – इंडिया 2020, डॉ. अब्दुल कलाम
पिछले दिनों अमेरिकी दबाव के चलते रूस द्वारा क्रायोजेनिक इंजन (450 सेक ऊर्जा) भारत को प्रक्षेपण हेतु देने से मना कर दिया था । तब भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने प्रयत्न से ‘स्क्रेनजेट’ इंजन बना लिया जो क्रायोजेनिक इंजन से छ: गुना अधिक यानि 3000 सेक ऊर्जा दे सकता है ।
सौर ऊर्जा का उपयोग
विमानस्योपरि सूर्यस्य शवत्याकर्षणपंजरम् ।
-वृहद विमानशास्त्रम् ,पृष्ठ 24
सूर्य की विभिन्न प्रकार की किरणों द्वारा रोग चिकित्सा का उल्लेख तो भारतीय वैज्ञानिकों ने किया ही ,साथ ही इन किरणों में व्याप्त ऊर्जाके द्वारा विमान के संचालन का भी उल्लेख किया है । विमानशास्त्र में सूर्यकांत तथा अन्य मणियों को एक ढाँचे में लगाकर सूर्य की शक्ति आकर्षित करके उसके द्वारा विमान चलाने का निर्देश दिया गया है ।
वर्तमान में सौर शक्ति से कई कार्य संभव हो गए हैं । संभव है कुछ समय बाद विमान चालन भी संभव हो जाए ।
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