Soniya Barbarata va Sajish | सोनिया की बर्बरता व साजिश | Sonia’s Barbarity and Conspiracy

Written by Rajesh Sharma

📅 January 31, 2022

Soniya Barbarata va Sajish

कौन है सोनिया गाँधी ? इसका असली नाम, जन्म स्थान, शिक्षा क्या है तथा Soniya Barbarata va Sajish क्या है, इसने भारत को कैसे लूटा आदि यहाँ हम जानेगें ।

Soniya Barbarata va Sajish | Sonia’s Barbarity and Conspiracy

– डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी

कौन है सोनिया गाँधी ….?

भारतीय नागरिकों को सोनिया की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी हासिल करना बेहद मुश्किल बात है, क्योंकि इटली में जन्म के कारण और वहाँ की भाषाई समस्याओं के कारण किसी पत्रकार के लिए भी यह मुश्किल ही है (भारत में पैदा हुए नेताओं की पृष्ठभूमि के बारे में हम कितना जानते हैं ?) लेकिन नागरिकों को जानने का अधिकार तो है ही । सोनिया के बारे में तमाम जानकारी उन्हींके द्वारा अथवा काँग्रेस के विभिन्न मुखपत्रों में जारी की हुई सामग्री पर आधारित है, जिसमें  साफ तौर पर झूठ पकड़ में आते हैं ।

Soniya Barbarata va Sajishअसली नाम : 

सोनिया गाँधी का असली नाम सोनिया नहीं बल्कि ऐंटोनिया माईनो (Antonia Maino) है । यह बात इटली के राजदूत ने 27 अप्रैल 1983 को लिखे एक पत्र में स्वीकार की है। यह पत्र गृह मंत्रालय ने अपनी मर्जी से कभी सार्वजनिक नहीं किया । एंटोनिया नाम सोनिया गाँधी के जन्मप्रमाणपत्र में अंकित है ।

असली पिता  : सोनिया के कथित पिता (सोनिया की माँ के असली पति) का नाम स्टीफानो माईनो (Stefano Maino) हैं । सोनिया के जन्मप्रमाण पत्र के अनुसार जन्म 1944  व जन्मस्थान लूसियाना  है । स्टीफानो माईनो द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त सन 1942 से 1945 तक रूस में युद्ध बन्दी थे जब तक कि इटली ने इंग्लैण्ड व उसके मित्र देशो की सेना के आगे आत्म-समर्पण नहीं कर दिया था।

इससे साफ पता चलता है कि स्टीफानो माईनो सोनिया का पिता हो ही नहीं सकता इसलिए इस सच्चाई को छुपाने के लिए सोनिया की जन्मतिथि व जन्मस्थान दोनों बदल देने पडे । इस धोखाधड़ी की जांच-पड़ताल करने की बजाये, उसकी नई जन्मतिथि 9 दिसम्बर 1946 कर दी गयी; और उसका नया जन्मस्थान ओरबेस्सानो कर दिया गया । रूस में बिताये जेल के लम्हों में सोनिया के पिता धीरे-धीरे रूस समर्थक बन गये थे ।

असली जन्म स्थान :

सोनिया का जन्म इटली के लूसियाना (Luciana) में हुआ, न कि जैसा उन्होंने संसद में दिये अपने शपथ पत्र में उल्लेख किया है कि उनका जन्म ओर्बेस्सानो में हुआ। शायद वे अपना जन्म स्थान लूसियाना छुपाना चाहती हैं, क्योंकि इससे उनके पिता के नाजियों और मुसोलिनी से सम्बन्ध उजागर होते हैं, जबकि युद्ध समाप्ति के पश्चात भी उनका परिवार लगातार नाजियों और फासिस्टों के सम्पर्क में रहा । लूसियाना नाजियों के नेटवर्क का मुख्य केन्द्र था और यह इटली-स्विस सीमा पर स्थित है । इस झूठ का कोई औचित्य नजर नहीं आता और न ही आज तक उनकी तरफ से इसका कोई स्पष्टीकरण दिया गया है ।

शिक्षा के बारे में झूठा शपथ पत्र :

सोनिया गाँधी का आधिकारिक शिक्षण हाई स्कूल से अधिक नहीं हुआ है । लेकिन उन्होंने रायबरेली के 2004 लोकसभा चुनाव में एक शपथ पत्र में कहा है कि उन्होंने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Cambridge University) से अंग्रेजी में डिप्लोमा किया हुआ है । यही झूठी बात उन्होंने सन 1999 में लोकसभा में अपने परिचय पत्र में कही थी, जो कि लोकसभा द्वारा ‘हू इज हू’ के नाम से प्रकाशित की जाती है । बाद में जब मैंने लोकसभा के अध्यक्ष को लिखित शिकायत की, कि यह घोर अनैतिकता भरा कदम है, तब उन्होंने स्वीकार किया कि ऐसा टाइपिंग की गलती की वजह से हुआ (ऐसी टाइपिंग गलती तो गिनीज़ बुक ऑॅफ़ वर्ल्ड रिकॉर्डस मे शामिल होने लायक है) ।Soniya Barbarata va Sajish

सच्चाई तो यह है कि सोनिया ने कॉलेज का मुँह तक नहीं देखा है । वे जिआवेना (Giavena) स्थित एक कैथोलिक स्कूल ‘मारिया ऑॅसिलियाट्रिस (Maria Ausiliatrice)’ में पढ़ने जाती थीं (यह स्कूल उनके तथाकथित जन्म स्थान ओरबेस्सानो से 15 किमी दूर स्थित है)। गरीबी के कारण बहुत सी इटालियन लड़कियाँ उन दिनों ऐसे मिशनरी स्कूलों में पढ़ने जाया करती थीं, और उनमें से बहुतों को अमेरिका में सफाई कर्मचारी, वेटर आदि की नौकरी मिल जाती थी । उन दिनों माइनो परिवार बहुत गरीब हो गया था ।

सोनिया के पिता एक मेसन (मिस्त्री) और माँ एक खेतिहर मजदूर के रूप में काम करती थीं (अब इस परिवार की सम्पत्ति करोड़ों की हो गई है !) । फिर सोनिया इंग्लैंड स्थित केम्ब्रिज कस्बे के लेन्नॉक्स (Lennox) स्कूल में अंग्रेजी पढ़ने गईं । यह है उनका कुल शिक्षण । लेकिन भारतीय समाज को बेवकूफ बनाने के लिए उन्होंने संसद में झूठा बयान दिया (जो कि नैतिकता का उल्लंघन भी है) और चुनाव में झूठा शपथ पत्र भी, जो कि भारतीय दंड संहिता के अनुसार अपराध भी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार प्रत्याशी को उसकी सम्पत्ति और शिक्षा के बारे में सही-सही जानकारी देना आवश्यक है । इन झूठों से साबित होता है कि सोनिया गाँधी कुछ छिपाना चाहती हैं या उनका कोई छुपा हुआ कार्यक्रम है जो किसी और मकसद से है, जाहिर है कि उनके बारे में और जानकारी जुटाना आवश्यक है ।

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सोनिया का भारत में प्रवेश :

कुमारी सोनिया अच्छी अंग्रेजी से अवगत होने के लिए केम्ब्रिज कस्बे के वार्सिटी रेस्टोरेंट (Varsity Restaurant) में काम करने लगीं । वहीं उनकी मुलाकात 1965 में राजीव गाँधी से पहली बार हुई । राजीव उस यूनिवर्सिटी में छात्र थे और पढ़ाई में कुछ खास नहीं थे,  इसलिए राजीव सन 1966 में लन्दन चले गये जहाँ उन्होंने इम्पीरियल (Imperial)  इंजीनियरिंग कॉलेज में थोड़ी शिक्षा ग्रहण की । सोनिया भी लन्दन चली गयी जहाँ उन्हें एक पाकिस्तानी सलमान थसीर के यहाँ नौकरी मिल गयी । इस नौकरी में सोनिया ने अच्छा पैसा कमाया, कम से कम इतना तो कमाया ही कि वे राजीव गाँधी की आर्थिक मदद कर सकें, जिनके खर्चे बढ़ते ही जा रहे थे ।

Soniya Barbarata va Sajishसंजय गाँधी को लिखे राजीव गाँधी के पत्रों से यह स्पष्ट था कि राजीव सोनिया के आर्थिक कर्जे में फँसे हुए थे और राजीव ने संजय से मदद की गुहार की थी । उस दौरान राजीव अकेले सोनिया गाँधी के मित्र नहीं थे, माधवराव सिंधिया और एक जर्मन स्टीगलर (Stiegler) उनके अंतरंग मित्रों में से एक थे । माधवराव से उनकी दोस्ती राजीव से शादी के बाद भी जारी रही ।

राजीव गाँधी और सोनिया का विवादास्पद विवाह :

इनका विवाह ओर्बेस्सानो के एक चर्च में हुआ था, हालांकि यह उनका व्यक्तिगत लेकिन विवादास्पद मामला है और जनता को इससे कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन जनता का जिस बात से सरोकार है वह है इन्दिरा गाँधी द्वारा उनका वैदिक रीति से पुन: विवाह करवाना, ताकि भारत की भोली जनता को बहलाया जा सके,

यह सब हुआ था एक सोवियत प्रेमी अधिकारी टी.एन.कौल की सलाह पर, जिन्होंने यह कहकर इन्दिरा गाँधी को इस बात के लिए मनाया कि सोवियत संघ के साथ रिश्तों को मजबूत करने के लिए यह जरूरी है, अब प्रश्न उठता है कि कौल को ऐसा कहने के लिए किसने उकसाया ? 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, जबकि हर भारतीय देश के लिए मरने को तैयार था; देश पर ऐसे आपत्तिकाल के समय सोनिया माइनो राजीव गाँधी को लेकर इटली भाग गयी ।

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सोनिया रूसी जासूसी संस्था केजीबी की एजेन्ट :

सोनिया रूसी जासूसी संस्था केजीबी की एजेन्टजब भारतीय प्रधानमंत्री का बेटा लन्दन में एक लड़की से प्रेम करने में लगा हो तो भला रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी चुप कैसे रह सकती थी  जबकि भारत-सोवियत रिश्ते बहुत मधुर हों और सोनिया उस स्टीफ़ानो की पुत्री हों जो कि सोवियत भक्त बन चुका हो । इसलिए  सोनिया का राजीव से विवाह  केजीबी के हित में ही था ।

राजीव से शादी के बाद माइनो परिवार के सोवियत संघ से सम्बन्ध और भी मजबूत हुए और कई सौदों में उन्हें दलाली की रकम अदा की गयी । डॉ.येवेग्निया अल्बाटस (Dr.Yevgenia Albats) (पीएच.डी. हार्वर्ड) एक ख्यातनाम रूसी लेखिका और पत्रकार हैं, वे रूसी प्रधानमंत्री येल्तसिन द्वारा सन् 1991 में गठित केजीबी  आयोग की सदस्या थीं उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘द स्टेट विदइन अ स्टेट : द केजीबी इन सोवियत यूनियन’’ में कई दस्तावेजों का उल्लेख किया है और इन दस्तावेजों को भारत सरकार जब चाहे एक आवेदन देकर देख सकती है ।

रूसी सरकार ने सन् 1992 में डॉ. अल्बाटस के इन रहस्योद्घाटनों को स्वीकार किया, जो कि ‘द हिन्दू’ में 1992 में प्रकाशित हो चुका है । उस प्रवक्ता ने यह भी कहा कि सोवियत आदर्शों और सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार का पैसा माइनो और कांग्रेस प्रत्याशियों को चुनावों के दौरान दिया जाता रहा  है । 1991 में रूस के विघटन के पश्चात जब रूस आर्थिक भँवर में फँस गया तब सोनिया गाँधी का पैसे का यह स्रोत सूख गया और सोनिया ने रूस से मुँह मोड़ना शुरू कर दिया ।

मनमोहन सिंह के सत्ता में आते ही रूस के वर्तमान राष्ट्रपति पुतिन (जो कि घुटे हुए केजीबी जासूस रह चुके हैं) ने तत्काल दिल्ली में राजदूत के तौर पर अपना एक खास आदमी नियुक्त किया जो सोनिया के इतिहास और उनके परिवार के रूसी सम्बन्धों के बारे में सब कुछ जानता था । अब फिलहाल जो सरकार है वह सोनिया ही चला रही हैं यह बात जब भारत में ही सब जानते हैं तो विदेशी जासूस कोई मूर्ख तो नहीं  हैं, इसलिए उस राजदूत के जरिये भारत-रूस सम्बन्ध अब एक नये दौर में प्रवेश कर चुके हैं । अमेरिका में भी किसी अधिकारी को इजराइल के लिए जासूसी करते हुए बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, भले ही अमेरिका के इजराइल से कितने ही मधुर सम्बन्ध हों । सम्बन्ध अपनी जगह हैं और राष्ट्रहित अलग बात है ।

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सोनिया द्वारा भारत के कानूनों का हनन :

राजीव से विवाह के बाद सोनिया और उनके इटालियन मित्रों को स्नैम प्रोगैती (Snam Progatti) की ओट्टावियो क्वात्रोची (Ottavio Quattrocchi) से भारी-भरकम राशियाँ मिलीं  । वह भारतीय कानूनों से बेखौफ होकर दलाली में रुपये लूटने लगा । कुछ ही वर्षों में माईनो परिवार जो गरीबी के भँवर में फँसा था अचानक करोड़पति हो गया ।

लोकसभा के नये नवेले सदस्य के रूप में मैंने (डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने) 19 नवम्बर 1974 को संसद में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी से पूछा था कि क्या आपकी बहू सोनिया गाँधी, जो कि अपने-आप को एक इंश्योरेंस एजेंट बताती हैं (वे खुद को ओरियंटल फायर एंड इंश्योरेंस कम्पनी की एजेंट बताती थीं ),

प्रधानमंत्री आवास का पता उपयोग कर रही हैं ? जबकि यह अपराध  है । क्योंकि वे एक इटालियन नागरिक हैं और यह विदेशी मुद्रा उल्लंघन का मामला भी बनता है, तब संसद में बहुत शोरगुल मचा । श्रीमती इन्दिरा गाँधी गुस्सा तो बहुत हुईं, लेकिन उनके सामने और कोई विकल्प नहीं था । इसलिए उन्होंने लिखित में यह बयान दिया कि  यह गलती से हो गया था और सोनिया ने इंश्योरेंस कम्पनी से इस्तीफा दे दिया है (मेरे प्रश्न पूछने के बाद) लेकिन सोनिया का भारतीय कानूनों को लतियाने और तोडने का यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ ।

सोनिया द्वारा भारत के कानूनों का हननसन् 1977 में  जनता पार्टी सरकार  द्वारा उच्चतम  न्यायालय  के  जस्टिस ए.सी.गुप्ता के नेतृत्व में गठित जाँच आयोग ने जो रिपोर्ट सौंपी थी,  उसके अनुसार मारुति कम्पनी (जो उस वक्त गाँधी परिवार की मिल्कियत थी) ने फेरा कानूनों, कम्पनी कानूनों और विदेशी पंजीकरण कानून के कई गंभीर उल्लंघन किये, लेकिन  सोनिया गाँधी के खिलाफ कभी भी न कोई केस दर्ज  हुआ, न मुकदमा चला  । हालाँकि यह अभी भी किया जा सकता है, क्योंकि भारतीय कानूनों के मुताबिक आर्थिक घपलों पर कार्रवाई हेतु कोई समय-सीमा तय नहीं है ।

जनवरी 1980 में श्रीमती इन्दिरा गाँधी पुन: सत्तासीन हुईं । सोनिया ने सबसे पहला काम यह किया कि उन्होंने अपना नाम मतदातासूची में दर्ज करवाया । यह साफ-साफ कानून का मखौल उड़ाने जैसा था और उनका वीजा रद्द किया जाना चाहिये था (क्योंकि उस वक्त भी वे इटली की नागरिक थीं) ।

प्रेस द्वारा हल्ला मचाने के बाद दिल्ली के चुनाव अधिकारी ने 1982 में उनका नाम मतदाता सूची से हटाया । लेकिन फिर जनवरी 1983 में उन्होंने अपना नाम मतदाता सूची में जुड़वा लिया, जबकि उस समय भी वे विदेशी ही थीं (आधिकारिक रूप से उन्होंने भारतीय नागरिकता के लिए अप्रैल 1983 में आवेदन किया था) । सोनिया भारत की नागरिक बनी; लेकिन उसने अपनी इटालियन नागरिकता नहीं छोड़ी ।

हाल ही में विख्यात कानूनविद्  ए.जी.नूरानी ने अपनी पुस्तक सिटिजन्स राईट्स, जजेस एंड अकाउंटेबिलिटी रेकॉर्डस (Citizens’ Rights,Judges and State Accountability records) (पृष्ठ 318) पर यह दर्ज किया है कि सोनिया गाँधी ने जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल के कुछ खास कागजात एक विदेशी को दिखाये, जो कागजात उनके पास नहीं होने चाहिये थे और उन्हें अपने पास रखने का सोनिया को कोई अधिकार नहीं था । इससे साफ जाहिर होता है कि उनके मन में भारतीय कानूनों के प्रति कितना सम्मान है ।

सार यह कि सोनिया गाँधी के मन में भारतीय कानून के सम्बन्ध में कोई इज्जत नहीं है । वे एक महारानी की तरह व्यवहार करती हैं । यदि भविष्य में उनके खिलाफ कोई मुकदमा चलता है और जेल जाने की नौबत आ जाती है तो वे इटली भी भाग सकती हैं । पेरू के राष्ट्रपति फूजी मोरी (Fujimori) जीवन भर यह जपते रहे कि वे जन्म से ही पेरूवासी हैं, लेकिन जब भ्रष्टाचार के मुकदमे में उन्हें दोषी पाया गया तो वे अपने गृह देश जापान भाग गये और वहाँ की नागरिकता ले ली ।

सोनिया द्वारा भारत की लूट :

सोनिया द्वारा भारत की लूट सोनिया द्वारा भारत की लूटवे लोग जो भारत से प्यार नहीं करते वे ही भारत के खजाने को बाहर ले जाने का काम करते हैं, जैसा कि भारत से घृणा करनेवाले मुहम्मद गोरी, नादिर शाह और अंग्रेज रॉबर्ट क्लाइव ने भारत की धन-सम्पदा को जमकर लूटा । जब  राजीव और इन्दिरा प्रधानमंत्री थे तब बक्से के बक्से भरकर रोज-ब-रोज प्रधानमंत्री निवास से सुरक्षा गार्ड चेन्नई के हवाई अड्डे से इटली जानेवाले हवाई जहाजों में क्या ले जाते थे ? एक तो हमेशा उन बक्सों को रोम के लिये बुक किया जाता था, एयर इंडिया और अलिटालिया एयरलाईन्स को ही इसका जिम्मा सौंपा जाता था और दूसरी बात यह कि कस्टम्स पर उन बक्सों की कोई जाँच नहीं होती थी ।

अर्जुन सिंह जो कि मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और सांस्कृतिक मंत्री भी, इनके सहयोग में विशेष रुचि लेते थे । कुछ भारतीय कलाकृतियाँ, पुरातन वस्तुएँ, पेंटिंग्स, शहतूश शॉलें, सिक्के आदि इटली की दो दुकानों (जिनकी मालिक सोनिया की बहन अनुष्का हैं) में आम तौर पर देखी जाती हैं ।

ये दुकानें इटली के आलीशान इलाकों रिवोल्टा (दुकान का नाम -‘एटनिका’) और ओरबेस्सानो (दुकान का नाम -‘गनपति’) में स्थित हैं, जहाँ इनका धंधा नहीं के बराबर चलता है। दरअसल यह एक ‘आड़’ है, इन दुकानों के नाम पर फर्जी बिल तैयार करवाये जाते थे, फिर वे बहुमूल्य वस्तुएँ लन्दन ले जाकर ‘सौथरबी’ और ‘क्रिस्टीज’ द्वारा नीलामी में चढ़ा दी जाती थी इन सबका क्या मतलब निकलता है ? यह पैसा आखिर जाता कहाँ था ? एक बात तो तय है कि राहुल गाँधी की हार्वर्ड की एक वर्ष की फीस और अन्य खर्चों के लिए भुगतान एक बार केमैन द्वीप की किसी बैंक के खाते से हुआ था ।

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