एक सच्ची कहानी है Da kashmir Phail Film, जो कश्मीरी पंडित समुदाय के कश्मीर नरसंहार के पीड़ितों के वीडियो साक्षात्कार पर आधारित है। और भी आगें पढेगें कश्मीर नरसंहार क्यों हुआ था ? षडयंत्र कौन रच रहा था ? तथा पनुन कश्मीरियों की माँग क्या है आदि ।
Da kashmir Phail Film
‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म | The Kashmir File Film
Da kashmir Phail Film
11 मार्च 2022 को रिलीज़ हुई Da kashmir Phail Film ‘द कश्मीर फाइल्स‘ 1990 में कश्मीरी पंडितों द्वारा कश्मीर विद्रोह के दौरान सहे गए क्रूर कष्टों की सच्ची कहानी बताती है । यह एक सच्ची कहानी है, जो कश्मीरी पंडित समुदाय के कश्मीर नरसंहार के पीड़ितों के वीडियो साक्षात्कार पर आधारित है। यह कश्मीरी पंडितों के दर्द, पीड़ा, संघर्ष और आघात का दिल दहला देने वाला आख्यान है ।
इस फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, भाषा सुंबली और चिन्मय मंडलेकर मुख्य भूमिकाओं में हैं । विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अकल्पनीय प्रदर्शन किया है ! फिल्म ने पहले हफ्ते में बॉक्स ऑफिस पर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। लोगों की भारी भीड़ सिनेमाघरों में ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखने के लिए उमड़ पड़ी है ।
Realated Artical
फिल्म के जरिए लोगों में सच सामने आया है और प्रधानमंत्री ने भी इसका जिक्र किया है । फिल्म कश्मीर फाइल्स ने कश्मीर का सही चित्रण किया है । कश्मीरी पंडितों पर जो जाति संहार किया गया, की तस्वीर इस फिल्म में साफ दिखती हैं। यह बहुत ही बेहतर फिल्म है जिसके जरिए देश के लोग ही नही , दुनिया के सामने सच्चाई आई है । मध्यप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक,उत्तर प्रदेश, आसाम, बिहार, त्रिपुरा, गोवा आदि राज्यों में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया है ।
1986 में गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला से सत्ता छीन ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गये थे। खुद को सही ठहराने के लिए उन्होंने एक खतरनाक निर्णय लिया । ऐलान हुआ कि जम्मू के न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट एरिया में एक पुराने मंदिर को गिराकर भव्य शाह मस्जिद बनवाई जाएगी । इसके जवाब में लोगों ने वहाँ प्रदर्शन किया कि ये नहीं होगा तथा इसके जवाब में कट्टरपंथियों ने भी नारा दे दिया कि इस्लाम खतरे में है ।
इसके बाद कश्मीरी पंडितों पर धावा बोल दिया गया। साउथ कश्मीर और सोपोर में सबसे ज्यादा हमले हुए। नतीजतन 12 मार्च 1986 को राज्यपाल जगमोहन ने शाह की सरकार को दंगे न रोक पाने की नाकामी के चलते बर्खास्त कर दिया ।
जुलाई 1988 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट बना । कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए । पंडितों की कश्मीरियत को भुला दिया गया। 14 सितंबर 1989 को पंडित टीका लाल टपलू को कई लोगों के सामने मार दिया गया । हत्यारे पकड़ में नहीं आए । ये कश्मीरी पंडितों को वहां से भगाने को लेकर पहली हत्या थी । इसके डेढ़ महीने बाद रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की हत्या की गई ।
गंजू ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल भट्ट को मौत की सज़ा सुनाई थी । गंजू की पत्नी को किडनैप कर लिया गया, वो कभी नहीं मिलीं । वकील प्रेमनाथ भट को मार दिया गया । 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की हत्या की गई । इसी दौरान जुलाई से नवंबर 1989 के बीच 70 अपराधी जेल से रिहा किये गये थे ।
षडयंत्र कौन रच रहा था ?
उस वक्त जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार थी, लेकिन सही मायने में वहां हुकूमत चल रही थी आतंकवादियों और अलगाववादियों की । कश्मीरी पंडितों के खिलाफ आतंकवाद का ये खूनी खेल शुरू हुआ था साल 1986-87 में, जब सैय्यद सलाहुद्दीन और यासीन मलिक जैसे अलगाववादी जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ रहे थे ।
साल 1987 के विधान सभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर की जनता के सामने दो रास्ते थे- या तो वो भारत के लोकतंत्र में भरोसा करने वाली सरकार चुनें या फिर उस कट्टरपंथी यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट का साथ दें, जिसका मंसूबा कश्मीर को पाकिस्तान बनाना था और जिसके इशारे पर कश्मीरी पंडितों की हत्याएं की जा रही थीं । हिंसा और आतंकवाद के माहौल में भी जम्मू-कश्मीर की जनता ने अपने लिए लोकतंत्र का रास्ता चुना ।
फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। उसके बाद कट्टरपंथियों ने कश्मीर की आजादी की मांग और तेज कर दी और कश्मीरियों का नरसंहार होने लगा, लेकिन जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) की फारुक अब्दुल्ला सरकार कट्टरपंथियों के आगे तमाशबीन बनी रही ।
कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार का प्रबंधन पाकिस्तान से चलाया गया था। दरअसल पाकिस्तान चाहता था कश्मीर हिंदुस्तान से टूटकर पाकिस्तान में मिल जाए, धर्म के नाम पर मुसलमानों को भड़का कर पाकिस्तान यह सब कर रहा था ।
आतंकवाद (Terrorism) के बढ़ते प्रभाव के चलते 19 जनवरी 1990 में घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ था । इस दिन को कश्मीरी पंडित काला दिन के रूप में मनाते हैं और कट्टरपंथियों का विरोध करते हैं ।
Realated Artical- इस्लाम के विरुद्ध आवाज
पनुन कश्मीर
पनुन कश्मीर- कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं का संगठन है । इसकी स्थापना सन् १९९० के दिसम्बर माह में की गयी थी । इस संगठन की मांग है कि काश्मीर के हिन्दुओं के लिये कश्मीर घाटी से एक अलग राज्य का निर्माण किया जाय । ध्यातव्य है कि सन १९९० में कश्मीर घाटी से लगभग सम्पूर्ण हिन्दुओं को पाकिस्तान समर्थित इस्लामिक आतंकवाद के चलते घाटी से विस्थापित होना पड़ा था ।
पनुन कश्मीर ने नरसंहार व क्रूरता रोकने के लिए कानून लाने की वकालत की है। इस कानून से कश्मीर में नरसंहार करने वालों पर से परदा हट सकेगा व अपराधी लोग जेलों के पीछे जा सकेंगे ।
पनुनकश्मीर समय-समय पर आवाज बुलंद करता रहा है कि घाटी में नरसंहार हुआ। इस पूरे क्रम की जांच कराने के लिए पुनन कश्मीर ने सरकार को जेनोसाइड एंड एट्रोसिटीज बिल का ड्राफ्ट पेश किया। हम गुजारिश करते हैं कि सरकार इस बिल को स्वीकार करते हुए इसे संसद में पेश करे। ताकि पारित होने के बाद नरसंहार व क्रूरता रोकने वाला कानून बन सके। इससे ही कश्मीरी पंडितों को इंसाफ मिल सकेगा जोकि नरसंहार व क्रूरता के कारण ही आज घाटी से दूर हो चुके हैं।
कुलदीप रैना ने कहा कि अब कश्मीरी पंडितों को लेकर होने वाली राजनीति बंद होनी चाहिए और उनको इंसाफ मिलना चाहिए। वर्ष में 1989 घाटी में ऐसा माहौल बना, जिससे कश्मीरी पंडित समाज खतरे में आ गया। उन पर हमले शुरू हो गए और कई कश्मीरी पंडितों को अपनी जान गंवानी पड़ी । उनको अपना घर-बार सब घाटी में छोड़कर वहां से भागना पड़ा । अब कश्मीरी पंडित सम्मान के साथ घाटी जाना चाहते हैं, लेकिन इससे पहले घाटी में नरसंहार के सभी आरोपित जेल में जाने चाहिए ।
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