ज्यामिति की खोज | Jyamiti ki Khoj भारत में हुई । इसका सर्वप्रथम प्रयोग भारतीयों ने ही किया । इसका कहाँ और कैसे उपयोग किया हम याहाँं समझेगें ।
Jyamiti | ज्यामिति | Geometry
रेखागणित की परम्परा वैदिक यज्ञ परम्परा के साथ-साथ जुड़ी रही ।
विभिन्न प्रकार की यज्ञ वेदियों के निर्माण हेतु इसका उपयोग होता रहा है ।
विभिन्न प्रकार के यज्ञों के लिए अलग-अलग आकार प्रकार की वेदियाँ बनाई जाती थी,
जिनका आकार-प्रकार अलग होता था पर क्षेत्रफल समान ।
इनकी विधियाँ विभिन्न शुल्व सूत्रों में वर्णित है ।
बीजगणित का ज्योतिष और रेखागणित में सर्वप्रथम प्रयोग भारतीयों ने ही किया ।
त्रिकोण का क्षेत्रफल_Area of Triangle
आर्यभट्ट प्रथम ने
त्रिकोण का क्षेत्रफल
निकालने का सूत्र बताया है ।
एक त्रिभुज का क्षेत्रफल
उसके पार्श्व का आधा और
उसकी लम्ब रेखा के
गुणनफल के समान है ।
ABC = 1/2 x CP
भागं हरेदवर्गान्नित्यम् द्विगुणेन वर्गमूलेन ।
वर्गाद्वर्गे शुद्धे लब्धं स्थानान्तरे मूलम् ।।
आर्यभट्ट (चौती शताब्दी) ने अपनी पुस्तक ‘आर्यभट्टीयम’ में रूटक्यूब पद्धति को विस्तार से वर्णित किया है । बाद में वही पद्धति आठवीं-नवीं शताब्दी के अरेबियन एवं गणितज्ञों के नाम से प्रसिद्ध हुई । इसी तरह सोलहवीं शती के न्यूटन के नाम से जो अवकलन गणित (Differential Calculus) जाना जाता है । उस सिद्धांत की खोज उससे पांच सौ वर्ष पहले भास्कराचार्य कर चुके थे । दूसरी शताब्दी की बक्षाली पांडुलिपि में अपूर्ण वर्ग संख्याओं के वर्गमूल निकालने का सूत्र दिया हुआ है ।
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