यह सत्य है कि मुहम्मद ने अपने जीवन काल में सभी आयतों को संग्रह कर, सम्पादित नहीं किया था । बाद में यह Kuran Kaise Bani इसको जानेगें ।
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(1) यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि पैगम्बर मुहम्मद ने अपने जीवन काल में सभी आयतों को संग्रह कर, सम्पादित नहीं किया था । बुखारी (:509) बताते हैं कि पहले खलीफा अबू बकर (632-634 एडी) ने जैद-वि-ताबित, जो कि पैगम्बर का लेखक रहा था, को कुरान संग्रह करने को कहा तो उसने कहा-
तुम कोई ऐसा काम कैसे कर सकते हो जिसे स्वयं अल्लाह के रसूल के नहीं किया । फिर भी उसने संग्रह किया। मगर जैद का यह संग्रह दूसरे खलीफा उमर के खलीफा काल (634-644 एडी) तक प्रकाश में नहीं आया। वह प्रति उमर की बेटी हफ्जा के पास रही ।
(2) फिर तीसरे खलीफा उस्मान (644-656 एडी) ने 651 में दुबारा जैद सहित तीन अन्य कुरेशों की एक समिति बना दी, तथा कुरान संग्रह करने का आदेश दिया, और कहा कि मतभेद होने पर उन शब्दों को कुरेशी बोली में सम्पादित कर दिया जाए ।
इस समिति द्वारा व्यंजन व कुरेश बोली आधारित संग्रहीत कुरान को उस्मान ने सब मुख्य शहरों में भेज दिया, और आदेश दिया कि कुरान के अन्य सभी विद्यमान विभिन्न संस्करणों को नष्ट कर दिया जाए ।
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(3) कुरान के वर्तमान संस्करण में वही सामग्री है जो कि जैद समिति को खजूर की छालों, पत्थरों, सीगों, चमड़ों आदि पर लिखी मिला, और कुरान याद करने वाले पैगम्बर के साथियों ने बताई । कुछ खजूर-ताल पत्रों पर लिखी सामिग्री को तो पैगम्बर के घरेलू जानवर खा गए (डाष्टी, पृ.28) । फिर पैगम्बर मुहम्मद भी आयतें भूल जाया करते थे (बुखारी 4:558;562, पृ. 508-509)
(4) कुरान के 114 सूराओं का क्रम वहीं नहीं है जिस क्रम में वे अवतरित हुई थी । परन्तु वे लम्बाई के आकार के हिसाब से रखी गई हैं, यानी जो आयतें लम्बी हैं वे पहले, और छोटी बाद में रखी गई हैं ।
(5) कुरान (2 : 105) के अनुसार कुछ आयतें पारस्परिक विरोधी हैं जिन्हें अल्लाह ने बाद में मनसूख (निरस्त) कर दिया और उनकी जगह नासिख (नई) आयतें भेज दीं । आखिर सर्वज्ञ, सर्वव्यापक अल्लाह को अपने संदेशों को बाद में बदलने की ऐसी आवश्यकता क्यों पड़ गई ?
(6) कुरान में कभी अल्लाह एक वचन में तो कभी द्विवचन में बोलता है । अनेक सूराओं में पैगम्बर मुहम्मद और अल्लाह के संवाद में बोलने वाला ही स्पष्ट नहीं है (अली डाष्टी, पृ. 148-151 एवं सूरा 111,113,114) । कुरान का पहला सूरा अल फातिहा एक ईश प्रार्थना है । अत: यह सूरा किसी भी प्रकार अल्लाह का वचन नहीं हो सकता ।
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