आततायी गिरोह अंग्रेजों को कांग्रेस ने भारत के शासक प्रचारित करना शुरू किया जबकि भारत का अनेक राज्य Angrejo ka Gulam Nahin था कभी भी ।
Bharat ka Kaun sa Rajy Angrejo ka Gulam Nahin
बाहरी-अजनबी आततायी गिरोह अंग्रेजों को कांग्रेस ने भारत के शासक प्रचारित करना शुरू किया था । 1912 ईस्वी में पहली बार अंग्रेज अपने हिस्से के भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली ले गए परंतु चाटुकार कांग्रेस ने कंपनी के जमाने से ही पूरे भारत को अंगे्रजों का गुलाम प्रचारित किया ।
Angrejon ka Gulaam Nahin रहे सन् 1947 ईस्वी तक स्वतंत्र रहे राज्यों ने, सरदार पटेल के अनुरोध पर देशभक्ति की भावना से भरकर नए संघ राज्य में अपने-अपने राज्यों का विलय किया था । इसमें उन राजाओं की महान देशभक्ति थी । यह भी पढें- सत्ता हस्तांतरण की संधि | Related Artical- शासक हुआ शैतान
टिहरी, ग्वालियर, जोधपुर, जयपुर, बीकानेर, जैसलमेर, रीवा, त्रावणकोट, कोचीन, बड़ौदा, जम्मू, लद्दाख, बहावलपुर, कपूरथला, जींद, फरीदकोट,पटियाला, नाभा, कुल्लू, कांगड़ा, रामपुर, काशी, तिरहुत, दरभंगा, भोपाल, इंदौर, रोहतक, मेवात, आमरा, भरतपुर, धौलपुर, नौगांवी, कोटा, बूंदी, भावनगर, नवानगर, पोरबंदर, कोल्हापुर, हैदराबाद, मैसूर
ये राज्य एक दिन भी Angrejo ka Gulam Nahin थे, अंग्रेजी शासन में नहीं थे ।
यदि काशीनरेश स्वतंत्र न होते तो काशी हिन्दू विश्वनिद्यालय के लिए 1,000 एकड़ भूमि वे कभी नहीं दे सकते थे । इसके लिए अंग्रेजों से इजाजत लेनी पड़ती पर वह नहीं लेनी पड़ी । बड़ौदा नरेश स्वतंत्र न होते तो श्री अरविंद को अपने यहां नहीं रख सकते थे। इसी राज्य की अच्छी व्यवस्था देखकर स्वामी विवेकानन्द खूब सराहना करते थे।
प्रथम और द्वितीय महायुद्ध में बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर, रीवा, ग्वालियर आदि राज्यों के राजा अपनी-अपनी सेना के साथ इंग्लैंड के पक्ष में स्वतंत्र राज्य की हैसियत से लड़े थे । इंग्लैंड की रानी से उनकी बराबरी की मैत्री थी । भारतीय सेनाओं के शौर्य से दोनों महायुद्धों में इंग्लैंड का पक्ष जीत सका । परंतु इसे भी छिपाया गया ।
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