भारत में आज भी अंग्रेजीयत चल रही है । राज्य व्यवस्था वही की वही है । ब्रिटिश अधिकारी चले गये, लेकिन Vyavastha Parivartan ki Jarurat है । यहाँ सिर्फ व्यवस्थापक बदले हैं, लेकिन पर्दे के पीछे और भी अधिक मजबूत हाथों से बाहरी सत्ता खड़ी है । सरकार बदलने से भारत का कभी भी भला नहीं हो सकता ।
आजादी के बाद जिस तरह समाजवाद के नाम पर सरकारवाद को थोप दिया गया उसी तरह उदारवाद के नाम पर पूंजीवाद को थोपा गया है, जहाँ आम आदमी का न हक सुरक्षित है न हित । वैश्विकरण के दौर में भारतीय काले अंग्रेजों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था और ले रहे हैं । Related Artical- सत्ता हस्तांतरण की संधि
Vyavastha Parivartan ki Jarurat एक चुनौती :
राष्ट्रहित की बलि देकर विश्व व्यापार संगठन आदिे चलाने की जिम्मेदारी अपनी नहीं है । राजनैतिक दलों की सुधार की अपेक्षा छोड़कर हमें वैकल्पिक सत्ता संचालन पर विचार करना होगा । हमें वर्तमान चुनाव प्रणाली को भी चुनौती देनी होगी । भारत के उज्ज्वल भविष्य की गारंटी यहां की सज्जन शक्ति है जो पूरे मनोयोग से इस निर्माण कार्य में लगी हुई है ।
व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई राजनैतिक या आर्थिक स्तर पर ही नहीं बल्कि जीवन-लक्ष्य, जीवन-दर्शन और जीवन-मूल्य का समेकित परम्परा के स्तर पर भी लड़ना होगा । वैश्विक चकाचौंध से भी हमें हटना होगा । यह भी पढें- व्यवस्था परिवर्तन कैसे
Vyavastha Parivartan में जिला हमारी दुनिया :
व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई जिलों को केन्द्र में रखकर लड़नी होगी । ‘‘हमारा जिला, हमारी दुनिया’’ का नारा हर इंसान के जेहन मे गुंजाना होगा । इसमें सबको भोजन, सबको काम सहज स्वभाविक समाहित है । ऐसा प्रयास हो कि जिला 80-85% जरूरतों को स्वयं पूरा करें । यही तो महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज्य’ का सपना था ।
भारत का खान-पान, मकान, व्यवसाय, व्यवस्थायें आदि भारत की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, सामाजिक व पारिवारिक ढांचा के अनुसार होना चाहिए । यही स्वस्थ, सुखी व सम्मानित जीवन का आधार बनेगा ।
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