पेड न्यूज (भुगतानशुदा खबर) वर्तमान बहस का सबसे चर्चित विषय है । भुगतानशुदा खबरें चलाना यह Media ka Dogalapan है जो एक गुप्त प्रक्रिया है ।
Media ka Dogalapan | मीडिया का दोगलापन- पेड न्यूज
पेड न्यूज मतलब पैसे लेकर किसी व्यक्ति या संस्था के हित/प्रशंसा में समाचार बताना । पेड न्यूज (भुगतानशुदा खबर) वर्तमान बहस का सबसे चर्चित विषय है। भुगतानशुदा खबरों के मामले में समूची प्रक्रिया गुप्त होती है। यह देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित विभिन्न भाषाओं के छोटे-बड़े अखबारों तथा टेलीविजन चैनलों में फैल गया है। यह गैरकानूनी प्रक्रिया संगठित बन गये हैं । मीडिया कंपनियों के पत्रकारों, प्रबंधकों और मालिकों सहित विज्ञापन एजेंसियाँ और जनसंपर्क कंपनियाँ भी इसमें शामिल होती हैं ।
मार्केटिंग अधिकारी राजनैतिक हस्तियों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए पत्रकारों का उपयोग करते हैं। इन राजनीतिक नेताओं के बीच कथित ‘रेट कार्ड’ या पैकेज बाँटे जाते हैं, जिनमें प्राय: विशेष उम्मीदवारों की प्रशंसात्मक और उनके राजनीतिक विरोधियों की आलोचनात्मक ‘खबरों’ के प्रकाशन की ‘दरें’ लिखी होती हैं। जो उम्मीदवार मीडिया संगठनों की इस रंगदारी के आगे नहीं झुकते, उनकी खबरें छापने से इन्कार कर दिया जाता है।
भारत में ‘पेड न्यूज’ (भुगतानशुदा खबर) का चलन 1967 के चुनाव से प्रारम्भ हुआ है। राष्ट्रीय स्तर के समाचार-पत्रों में यह 30 प्रतिशत, राज्य स्तर पर 50 प्रतिशत और स्थानीय अखबारों में 75 से 90 प्रतिशत तक पेड न्यूज होते हैं। भारत में 28 भाषाओं में अखबार प्रकाशित होते हैं। आज मीडिया की प्राथमिकता समाज-सेवा की बजाय धनोपार्जन बन गया है । कई मीडिया घरानों ने मीडिया की आड़ में कुछ और धंधों में हाथ आजमाना शुरु कर दियाहै । मीडिया की काली करतूतों से लोग तंग आ चुके हैं। इनकी काली करतूतें रोकने के लिए विभिन्न संगठनों ने भिन्न-भिन्न उपाय अपनाये। मुंबई में शिवसेना ने मीडिया पर नियंत्रण बनाये रखने के लिए मीडियाकर्मियों पर हमले हुए ।
मीडिया का चारित्रिक बदलाव
मीडिया के चरित्र में सबसे बड़ा बदलाव तो यह हुआ कि देखते-देखते मीडिया से जन सरोकार गायब हो गये और खबर भी एक उत्पाद बन गयी । जाहिर है कि जब खबर एक उत्पाद बन जाय और पाठक या दर्शक एक उपभोक्ता, तो ऐसी हालत में ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा कमाना ही मकसद बन जाता है। आज ज्यादा-से-ज्यादा पैसा कमाना मीडिया संस्थानों का मकसद बन गया है । मीडिया में हुए चारित्रिक बदलाव की वजह से काम करने की परिस्थितियाँ भी बदलीं हैं । पत्रकार भी सामान्य कर्मचारी की तरह हो गये और पत्रकारिता भी अन्य नौकरियों की तरह एक नौकरीजबकि आम लोगों के हक और हित के लिए लड़ाई लड़ने का गौरवशाली इतिहास भारतीय मीडिया के पास ही है ।
अधिक जानकारी के लिएः https://srsinternational.org/media-ki-kali-kartuten-multi-languages
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