स्वामी रामकृष्ण परमहंस, तैलंग स्वामी, समर्थ रामदास, बाबा किन्नाराम, श्यामाचरण लाहिड़ी, परमहंस योगानंद आदि Yogiyon ke Rahasy व चमत्कार यहाँ जानेगें ।
(9) स्वामी रामकृष्ण परमहंस :
आप कलकत्ता के दक्षिणेश्वर मंदिर के पुजारी थे । आपके सामने माँ काली प्रकट होकर बात करती थी । माँ काली ने ही आपको तोतापुरी गुरु से दीक्षा लेकर आत्मज्ञान पाने के लिए कहा था ।
सद्गुरु कृपा से आपको आत्मज्ञान हुआ । आपके संकल्प से बगीचे में फूलों का रंग बदल गया था ।
(10) तैलंग स्वामी (सन् 1607 ई.-1887 ई.)
आन्ध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम जिले में आपका जन्म हुआ। आपके गुरु श्री भगीरथ स्वामी थे। आप 280 वर्ष तक इस धरा पर रहे। गुरु से पूर्ण कृपा प्राप्त कर, 1965 में गुरु आज्ञा से तीर्थयात्रा पर निकले। अपनी तीर्थयात्रा के दौरान पुष्कर में लगे मेले में बाबा ने देखा, एक मृत व्यक्ति को लोग कफन में बाँध रहे हैं । बाबा ने कहा रुको ! और कमंडल से पानी लेकर छिड़क दिया । मरा हुआ व्यक्ति जिंदा हो गया ।
बाबा अंतर्धान हो गये : काशी के पंचगंगा घाट पर आप बहुत साल रहे । आप दिगम्बर रहते थे, इसी की शिकायत थी । ब्रिटिश शासन था, काशी के अंग्रेज जिलाधीश की अदालत में आपको बंदी बनाकर पेश किया गया । बाबा अंतर्धान हो गये । उपस्थित भक्त हर-हर महादेव के नारे लगाने लगे ।
हुजूर ! डबल ताला लगा है : कुछ दिनों बाद दूसरा अंग्रेज जिलाधीश, अंग्रेज महिलाओं की शिकायत पर बाबा को जेल में बंद कर दिया । दूसरे दिन सुबह जिलाधीश स्वयं थाने गया तो देखा स्वामीजी जेल की कोठरी से बाहर टहल रहे हैं ।
वह सिपाहियों पर बिगड़ने लगा । सिपाहियों ने कहा ‘‘हुजूर ! हमारी लापरवाही नहीं है, स्वयं अपनी आँखों से देख लें, डबल ताला लगा है । पता नहीं कैसे बाबा बाहर निकल आये, हम पकड़ने जाते है तो गायब हो जाते हैं, कभी इधर तो कभी उधर दिखाई देते हैं ।’’ उसी दिन वही जिलाधीश अपनी अदालत में मुकदमें की सुनवाई कर रहा था, वहाँ स्वामीजी प्रकट हो गये और उसे खूब खरी-खोटी सुनाई, वह बेहोश हो गया । स्वामीजी अंतर्धान हो गये । चारो तरफ तहलका मच गया ।
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योगियों के चमत्कार व रहस्य भाग- 1 योगियों के चमत्कार व रहस्य भाग- 2Yogiyon ke Rahasy- (11) अश्वत्थामाजी द्वारा पूजा चालू :
महाभारत के चिरंजीवी अश्वत्थामाजी बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) स्थित असीरमद किले के शिवमंदिर में प्रतिदिन सबसे पहले पूजा करने आते हैं । शिवलिंग पर प्रतिदिन सुबह ताजा फूल एवं गूगल चढ़ा हुआ मिलता है । कभी-कभी वे प्रकट होकर अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की माँग भी करते हैं ।
(12) समर्थ रामदास (सन् 1608 ई.-1680 ई.)
एक दिन समर्थजी ने शिष्यों को अशोक वाटिका का प्रसंग सुनाते हुए कहा ‘‘वाटिका में हनुमानजी ने श्वेत पुष्प देखा’’ तभी हनुमानजी प्रकट हो गये और बोले ‘‘वे लाल थे’’ जब दोनों अपनी बात से पीछे नहीं हट रहे थे तब भगवान राम ने प्रकट होकर कहा दोनों भक्त ठीक कह रहे हैं ।
समर्थ का भाव सात्त्विक है इसलिए इन्हें श्वेत और हनुमान का भाव उस समय राजसी था, क्रोध में थे इसलिए वही पुष्प लाल दिखाई दे रहे थे । पुष्प तो वास्तव में श्वेत ही थे ।
नेत्र ज्योति वापस हुई : कई सालों बाद आप अपने घर गये। आपकी माँ की आँख की रोशनी चली गयी थी । माँ बोली बेटा कैसे तुझे देखूँ, आप ने आँख पर हाथ घुमाया तो माँ देखने लग गयी ।
Yogiyon ke Rahasy- (13) बाबा किन्नाराम (सन् 1715 ई.-1826 ई.)
काशी (उत्तर प्रदेश) में क्रीं कुंड पर आपका प्रसिद्ध आश्रम है । किसान बीजाराम द्वारा लगान न देने के कारण जमींदार उसे सजा दे रहा था । यात्रा के दौरान आप वहीं से गुजर रहे थे। आप ने कहा जमींदार ! किसान को छोड़ दो । किसान जहाँ खड़ा है वहीं पर धन-सम्पदा गड़ी है ले लो । खुदाई के बाद अखूट सम्पदा मिली । किसान बीजाराम बाबा का भक्त होकर उनके साथ रहने लगा ।
चल बेटा चक्की : आप अपने भक्त बीजाराम के साथ घूमते-घामते गिरनार के पास पहुँचे । वहाँ नवाबों का शासन था । भिक्षा माँगने की मनाही थी । दोनों को भिक्षा माँगते हुए पकड़ा व जेल में डाल दिया । वहाँ पहले से ही बहुत से संतों को चक्की चलाने की सजा दी जा रही थी ।
बाबा किन्नाराम को भी चक्की चलाने की आज्ञा दी गयी । आपने चक्की पर एक डंडा मारते हुए कहा ‘चल बेटा चक्की’ तो चक्की चलने लगी । इसके बाद अन्य संतों की चक्कियों को डंडा मारकर चालू कर दिया । इस चमत्कार को देख सभी कर्मचारी भाग खड़े हुए । नवाब डर गया, आप से माफी माँगी तथा सभी साधुओं को बाईज्जत छोड़ दिया व नगर में भिक्षा माँगने की छूट दे दी ।
Yogiyon ke Rahasy- (14) योगी श्यामाचरण लाहिड़ी (सन् 1828ई.-1895 ई.)
नदिया जिले के घुराणी गाँव में जन्मे आप ब्रिटिश सैनिक इंजीनियरिंग विभाग में एकाउन्टेन्ट पद पर कार्यरत थे। आपका एक पड़ोसी युवक चन्द्रमोहन डॉक्टरी पास करके आपके पास आशीर्वाद लेने आया । आप ने विनोद में ही कहा ‘मेरी जाँच करके देखो तो, मैं जीवित हूँ या मृत?’ जाँच में मुर्दे के पूरे लक्षण दिखाई दिये, शरीर में कहीं भी प्राण नहीं था। फिर आपने कहा ‘तो मुझे एक डेथ-सर्टिफिकेट लिख दो।’
वह युवक डॉक्टर बड़ी आफत में पड़ गया कि यह सब क्या है ? स्वामीजी बोले ‘‘तुम लोगों के आधुनिक विज्ञान से ऊपर और भी बहुत कुछ जानने के लिए है वहाँ विज्ञान की पहुँच नहीं है। योगी सहजता से उस ज्ञान की खोज कर सकते हैं ।’’
इसी प्रकार की एक और घटना गंगाधर फोटोग्राफर के साथ हुई । इसने स्वामीजी के साथ सामूहिक फोटो खींचा। निगेटिव धुलने के बाद देखा तो केवल स्वामीजी नहीं हैं बाकी सबकी फोटो हैं । इसी प्रकार दूसरा फोटोग्राफर आया, 12 फोटो खींचे उसे भी असफलता मिली । उसने पैर पकड़ कर रोते हुए कहा ‘‘प्रभु इस अकिंचन को अपना एक चित्र लेने दीजिए ।’’ दूसरे दिन आपने एक चित्र खिंचवाया वही एक मात्र चित्र है जो सर्वजन को सुलभ हो सका ।
Yogiyon ke Rahasy है कि बाबाजी प्रकट हो गये : नागपुर रेलवे क्लर्क अविनाश बाबू ने अपने अधिकारी भगवती बाबू को गुरुजी के दर्शन करने जाने के लिए एक सप्ताह की छुट्टी का आवेदन दिया इस पर भगवती बाबू बिगड़ने लगे । इसके बाद अविनाश बाबू को साथ लिए समझाते हुए बगीचे के तरफ चल दिये ।
थोड़ी दूरी पर तीव्र प्रकाश हुआ और लाहड़ीजी प्रकट हो गये और कहा : ‘‘भगवती ! तुम अपने कर्मचारी के प्रति कठोर हो’’ यह देख भगवती की हालत ‘काटो तो खून नहीं’ जैसी हो गयी उधर अविनाश बाबू गुरुदेव-गुरुदेव कहते हुए प्रणाम करने लगे। इसके बाद भगवतीजी ने कहा अब मैं भी तुम्हारे गुरुदेव से दीक्षा लेने सपत्नी चलूँगा । इन्हीं भगवतीजी के घर परमहंस योगानंदजी का जन्म हुआ, जिन्होने विदेशों में धर्म का प्रचार किया ।
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अमेरिका में एक दिन आपके पास कुछ फौजी बैठे थे । आप ने उनसे कहा ‘‘आप लोगों के हथियारों से हमारे ‘ॐ’ में शक्ति ज्यादा है ।’’ एक फौजी ने कहा ‘‘महाराज ! हम इसका प्रत्यक्ष अनुभव करना चाहते हैं।’’ आप ने कहा ‘‘यह पुल आप लोगों ने बनाया है, इसे तोड़ना हो तो आपको कई तोपों की जरूरत पड़ेगी किंतु मैं बिना किसी बाहरी साधन की सहायता के केवल ‘ॐ’ के पवित्र बल से तोड़ सकता हूँ।’’
आप आत्म चिंतन करते हुए ध्यानस्थ हो गये । ‘ॐ’ का जप करके, भ्रूमध्य में उसकी शक्ति को केन्द्रित करके दोनों हाथों को बलपूर्वक कुछ तोड़ने की मुद्रा में झटका दिया, उधर सप्ताह भर पहले बना हुआ नया पुल तुरन्त टूट गया । फौजी महा आश्चर्य में डूब गये।
(16) स्वामी विशुद्धानंद परमहंसदेव (सन् 1856 ई.-1937 ई.)
ऋषि वेदव्यासजी ने लिखा है कि महाभारत में अग्नि बाण, वायु बाण आदि का प्रयोग किया गया, क्या यह बात सच है ? झाल्दा के राजा श्री उद्धवनारायण सिंह ने आप से पूछा। आप बोले बिल्कुल सच है, देखना चाहते हो? आपने सामने पड़े सरकण्डे को लेकर ज्योंही अभिमंत्रित किया वह धनुष-बाण बन गया । एक बाण पर अग्नि देवता को अभिमंत्रित कर सामने वटवृक्ष पर चलाया तो बाण अत्यंत भयंकर ध्वनि करता हुआ पेड़ को चीरता हुआ पार कर गया और पेड़ में प्रचंड आग की लपटें उठने लगीं जो कई दमकल (फायर बिग्रेड) से बुझाना सम्भव नहीं था । फिर दूसरे बाण पर वरुण देवता को अभिमंत्रित कर चलाया, देखते ही देखते आग बुझ गयी ।
सन् 1920 ई. में, पुरी (ओड़िशा) में सदाशिव मिश्र ने आप से पूछा ‘‘विष्णु भगवान के नाभि से कमल निकला और उस पर ब्रह्माजी प्रकट हो गयेये बातें तो असम्भव और केवल गप लगती हैं ।’’ आप मुस्कराये, एक शिष्य से गंगा जल मँगाकर अपनी नाभि को धोया और लेट गये थोड़ी देर में नाभि से एक कमल की नाल फूल सहित निकली व धीरे-धीरे काफी लम्बी हो गयी, कमल का फूल भी बड़ा हो गया। थोड़ी देर में आप ने उसको पुनः नाभि में समेट लिया और बोले ‘‘आप लोग ब्रह्माजी के दर्शन के अधिकारी नहीं हैं, नहीं तो मैं कमल के पुष्प पर ब्रह्माजी को भी ला बिठाता ।’’
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