जगद्गुरु आद्य-शंकाराचार्य, लक्कड़ भारती, देवराहा बाबा, वनवनाथ, संत कबीरदास, गुरु नानकजी, दादू दीनदयालजी आदि Yogiyon ke Chamatkar देखेगें ।
सन् 686 ई. में केरल प्रदेश के प्राचीन मलावर जिले में अवतरित आप ने सम्पूर्ण भारत में भ्रमण किया तथा सनातन धर्म की पुर्नस्थापना की । विद्यार्थीकाल में एक दिन बालक शंकर एक द्वार पर भिक्षा माँगने गये । वृद्ध माता ने एक आँवला देते हुए कहा ‘‘बेटे इसके अलावा घर में अन्न का एक दाना भी नहीं है ।’’ तब बालक शंकर ने वहीं बैठकर लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ कर देवी का आह्वान किया । दूसरे दिन वृद्ध माता के कमरे के चारो ओर स्वर्ण के आँवले बिखरे हुए मिले ।
मृत बालक को जीवनदान : मौनाम्बिका में एक दम्पति अपने मरे हुए पुत्र को आचार्य के चरणों में रखकर रोने लगे । आचार्य ने ज्यों ही मृत बालक के शरीर पर हाथ फेरा तो बालक जीवित हो गया ।
बिना पढ़े ही विद्वान : आपका गिरि नामक शिष्य अनपढ़ था । लेकिन आपमें खूब श्रद्धा रखकर सेवा करता था । आपकी कृपा से वह बिना पढ़े ही बहुत बड़ा विद्वान हो गया । उनका नाम तोटकाचार्य पड़ा । आचार्य ने कहा ‘‘श्रद्धा से एकाग्रता आती है, मन की चंचलता नष्ट होती है और चित्त शुद्ध होता है । श्रद्धा ही सर्व विद्या का मूल है ।’’
(2) लक्कड़ भारती का अंग्रेजों को श्राप :
सन् 1857 में कलकत्ता के कालीघाट पर हो रही आरती में अंग्रेज अधिकारी के हस्तक्षेप पर स्वामी आनंद-भारती की डाँट से वह गूंगा हो गया और वहाँ से भाग गया। गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने इसे पूरी अंग्रेजियत का अपमान समझा । स्वामीजी को 90 मन लकड़ी की चिता में जिंदा जला दिया । लेकिन आग की लपटों में स्वामीजी जले नहीं ।
वारेन हेस्टिंग गिड़गिड़ाते हुए माफी माँगने लगा । स्वामीजी ने कहा ‘‘जा मूर्ख ! तुझे माफ करता हूँ लेकिन याद रखना जितने मन लकड़ियाँ तूने इस चिता में डाली उतने ही वर्षों में तुम्हें यहाँ से अपना काला मुँह लेकर वापस जाना पड़ेगा । इन लकड़ियों की तरह तुम्हारा राज्य भी समाप्त हो जायेगा ।’’ इस घटना के बाद लोगों में आप ‘लक्कड़ भारती’ के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
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द्वापर कालीन योगी अयोनिजा (स्त्री के गर्भ बिना उत्पन्न) श्री देवरहा बाबा कभी सोते नहीं थे । नेपाल नरेश की 18 पीढियों के पीछे तक के आप गुरु रहे ।
बाबा एक, शरीर दो : सन् 1986 में हरिद्वार महाकुंभ में स्नान की मुख्य तिथि के दिन पुलिस अधिकारी बाबा को लेने के लिए कुटिया पर आये । बाबाजी मचान पर खड़े सत्संग कर रहे हैं । अधिकारी बार-बार बाबाजी से चलने की प्रार्थना कर रहे हैं । उधर ब्रह्मकुंड पर बाबाजी दूसरा शरीर प्रकट कर स्नान कर रहे हैं । हजारों-हजारों लोग बाबाजी का दर्शन व चरणस्पर्श कर रहे हैं । दूसरी पुलिस व्यवस्था में लगी है । यह चमत्कार तुरन्त देश-विदेश में फैल गया था ।
पेशाब से पेट्रोल : सन् 1947 से पूर्व में, पास आये हुए अंग्रेज कलेक्टर से बाबा ने पूछा बच्चा ! तुम्हारे विज्ञान के पास आज सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि क्या है ? काफी सोचने पर उसने पेट्रोलियम बताया । बाबा ने कहा बच्चा ! तुम्हारी इतनी महत्त्वपूर्ण वस्तु तो यहाँ पेशाब से बहती है, देखोगे ? उसने ‘हाँ’ कहा । बाबा ने एक शिष्य को आवाज देकर बुलाया । बाबा के कहने पर उस शिष्य ने कलेक्टर की तौलिया लेकर उस पर पेशाब किया । जैसे ही कलेक्टर ने माचिस लगायी तो तौलिया में तुरंत आग लग गयी ।
पेशाब से सोना : बाबा ने एक शिष्य को पेशाब से सोना बनाना सिखा दिया। वह लंगर-भंडारे करते-करते बड़ी ख्याति को प्राप्त हुआ । करांची का अंग्रेज जिलाधीश ने छापा मार कर 15-20 किलो सोना जप्त किया तथा पेशाब से सोना बनने का आश्चर्य सुन उसने भी एक क्विंटल सोनाबनवाया । यह सभी लगभग 120 किलो सोना करांची के म्यूजियम में रखवा दिया ।
भालुओं का भण्ड़ारा : पठानकोट में भालुओं का बड़ा आतंक था । पठानकोट नरेश श्रीकृष्ण शाह को बाबाजी ने कहा 2000 से ज्यादा लोगों का पूड़ी, सब्जी व हलुआ बनवाओ । बाबाजी ने 2000 भालुओं को बुलाकर पंगत में बिठाया, पत्तल पर सभी भालुओं को प्यार से भोजन करवाया । भालुओं की बैठक में बाबाजी ने कहा ‘‘आज से मनुष्यों को आप लोगों द्वारा कोई हानि नहीं होनी चाहिए।’’ इसके बाद से भालुओं का आतंक बिल्कुल खत्म हो गया ।
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आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व विक्रम संवत् की दसवीं शताब्दी में सभी नवनाथ एक ही समय कुछ ही आगे पीछे हुए थे। शंकराचार्य के बाद के धर्म प्रचारकों में गोरखनाथजी का नाम अग्रगण्य है। त्रिदेवताओं के प्रतिरूप कविनारायण, हरिनारायण .. इन नव नारायणों ने 1.मत्स्येन्द्रनाथ, 2. गोरखनाथ, 3. जालन्धरनाथ, 4. कानीफानाथ, 5. भर्तृहरिनाथ, 6. गहिनीनाथ, 7. रेवणनाथ, 8. नागनाथ तथा 9. चर्पटीनाथ के रूप में अवतार ग्रहण कर नाथ पंथ की स्थापना एवं प्रचार प्रसार के कार्य किये ।
इन सभी नवनाथों का जन्म किसी स्त्री के गर्भ से नहीं हुआ था । ये सभी योगविद्या, अस्त्र-शस्त्र विद्या, तप, समाधि आदि विषयों में पारंगत थे। पृथ्वी, आकाश, पाताल सभी स्थानों में इनकी गति थी । नवनाथों के चमत्कारों की कहानियाँ भारत के घर-घर में प्रचलित हैं । नवनाथ अमर हैं तथा आज भी दर्शन देते हैं।
नेपाल नरेश के अधिक अत्याचार के कारण गोरखनाथजी ने पूरे नेपाल की वर्षा ही योगबल से रोक दी। राजकोष खाली होने लगा, प्रजा त्राहिमाम् पुकारने लगी। राजा द्वारा माँफी माँगने पर आप ने माफ कर दिया। लेकिन कुछ समय बाद राजा फिर से जुल्म करने लगा । उस समय आपकी सेवा में एक बूढ़ी माई का लड़का बलवंत रहता था ।
आप ने कहा ‘बलवंत मिट्टी के तू हजारों पुतले बना, मैं तुझे राजा बनाना चाहता हूँ। आप ने उन पुतलों में संजीवनी विद्या से प्राण-प्रतिष्ठा कर दी। पुतलों की सेना तैयार हो गयी । बलवंत ने यह सेना लेकर नेपाल नरेश पर चढ़ाई कर विजय प्राप्त कर लिया। बाद में बलवंत ने कहा गुरुदेव हमारे कुल में जो होगें वे ‘गोरखा’ के नाम से जाने जायेंगे । तब से गोरखा जाति चली। आपके ही आर्शीवाद से चरवाहा लड़का बाप्पा काला भोज मेवाड़ राज्य का संस्थापक बाप्पा रावल बना।
Yogiyon ke Chamatkar- (5) संत कबीरदास (सन् 1456 ई.- 1575 ई.)
भक्ति आंदोलन के द्वारा सामाजिक व राजनीतिक क्रांति का सृजन करनेवाले स्वामी रामानंदजी (सन् 1299 ई.-1410 ई.) ने सभी समाज के लोगों को शिष्य बनाकर 25 हजार की बृहद् शिष्य मंडली खड़ी की । जिनमें अनंतानंद, सुखानंद, सुरेश्वरानंद, नरहरियानंद, योगानंद आदि ब्राह्मण, संत पीपानंद क्षत्रिय, संत कबीर जुलाहा, संत सेनानंद नाई, संत घनानंद जाट व भक्त रैदास चमार थे, गालमानंद, भवानंद, पद्मावती, सुरेश्वरी ये सभी शिष्य सिद्ध संत हो गये ।
झ कबीरदास की स्पष्टवादिता से कट्टरपंथी हिन्दू व मुसलमान दोनों चिढ़े हुए थे, सुल्तान सिकंदर लोधी को उन्होनें भड़काया कि कबीर अधार्मिक व चरित्रहीन है । सिकंदर लोधी ने संत कबीर को नाव में पत्थर रखकर जल में डुबो दिया, कबीरजी जल से जिन्दा बाहर निकले, फिर आग में जलवाया, पर नहीं जले, खूंखार हाथी को कबीर के ऊपर छोड़ा, हाथी ने कुछ नहीं किया ।
कबीरजी जल में जल हो गये : एक बार नदी किनारे खेल-खेल में ही, जोगी गोरखनाथ मेढक बन गये, कबीरजी ने खोज निकाला । कबीरजी तो जल में जल बन गये। अब कहाँ ढूढे ? अतः माता लोई के पास एक कमंडल जल भरके गोरखनाथजी पहुँचे । कहा माते ! कबीरजी इसी जल में जल हो गये, नहीं मिल रहे हैं । माता लोई ने कहा, जल की धार करिये । उसी जल-धार में कबीरजी प्रकट हो गये ।
(6) देवी ने किया बमों को नाकाम :
भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय 16 नवंबर 1965 को पाकिस्तान के सैनिकों ने आगे बढ़कर शाहगढ़ तक 150 किलोमीटर कब्जा कर लिया और तन्नोट के चारो ओर 3000 बम बरसाये । सभी बम नाकाम । वहाँ बने तन्नोट देवी मंदिर परिसर में भी 450 बम पड़े लेकिन एक भी बम फटा नहीं तथा मंदिर को खरोंच तक नहीं आयी । वे बम आज भी मंदिर के म्यूजियम में रखे हुए हैं । सन् 1965 के युद्ध के बाद इस मंदिर की जिम्मेदारी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने ले ली है।
पंजाब में घूमते-घूमते आप एक ऊँचे टीले के पास पहुँचे । प्यास से व्याकुल मर्दाना ने ऊँ चे टीले पर पुराने कुएँ के पास बनी कुटिया में सिद्ध फकीर बली कन्दरी से पानी माँगा। घमण्डी फकीर आग बबूला हो गया । नानकजी ने मर्दाना को कहा जहाँ खड़े हो वही से पत्थर हटाओ। पत्थर हटाते ही जलधार फूट निकली और फकीर का कुआँ सूख गया । फकीर कुपित हो कर ऊपर से एक बड़ा पत्थर नानकजी की ओर लुढ़का दिया। नानकजी ने पत्थर को अपनी योगशक्ति से बीच में ही रोक दिया ।
झ अंधे को आँख : नानकजी यमुनाजी में स्नान करके लौट रहे थे रास्ते में एक जन्मान्ध भिखारी की आश्रयहीनता की बात सुन द्रवीभूत हुए। करमण्डल से जल ले उसकी आँख में छिड़का तो उसकी आँख में रोशनी आ गयी ।
Yogiyon ke Chamatkar- (8) दादू दीनदयालजी (सन् 1544 ई.-1603 ई.)
मुसलमानी राज था, दादूजी के पास जानेवालों को 500 रुपया दण्ड देने का आदेश जारी था । केवल दो शिष्यों ने सोचा जब तक हमारे पास पैसा है तब तक जायेगें। दादूजी प्रसन्न हो बोले ‘आदेश पत्र अच्छी तरह पढ़कर दण्ड भरना’ कचहरी में जब आदेश पत्र पढ़ा गया, उसमें लिखा था ‘जो दादू के पास नहीं जायेगा उसे 500 रुपया दण्ड भरना होगा ।’ सब चौंके कि यह उल्टा कैसे हुआ।
झ एक बार मुसलमानों ने दादूजी की उल्टी रिर्पोट कर हवालात में बन्द करवा दिया । लोगों ने देखा कि दादूजी का एक शरीर हवालात के अन्दर व दूसरा शरीर बाहर कीर्तन कर रहा है । मुसलमान अधिकारी ने उन्हे तुरन्त रिहा कर उनसे क्षमा मागी ।
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