संवेदन, भावना, वासना और कलनाये चार ही इस संसार में अनर्थ पैदा करने वाले हैं । ये चारों मिथ्याभूत अर्थो का अवलम्बन करते हैं जो Prem/ Vasana
Prem/ Vasana | प्रेम/ वासना | Love Vs Lust
संसार रुपी अनर्थ के निराश का उपाय जानने के लिए,
पहले उसके बीजों को जानना जरुरी है ।
वह क्या है-
संवेदन, भावना, वासना और कलना
ये चार ही इस संसार में अनर्थ पैदा करने वाले हैं । ये चारों मिथ्याभूत अर्थो का अवलम्बन करते हैं और स्वयं भी मिथ्या हैं, इसलिए वे सब एकमात्र अविघा में ही स्फुरित होतें हैं ।
पहले पहले इंद्रियों से जो विषयों का उपभोग होता है, यह उपभोग ही संवेदन कहलाता है, विषयों को जानने पर उनका जो बार-बार चिन्तन होता है, वह चिन्तन भावना कहलाता है, बार-बार चिन्तन करने पर चित्तमें एक तरह का जो दृढ विषयलांछन उत्पन्न हो जाता है, वही विषयलांछन वासना कहलाती है और उस वासना से मरण काल में भावी शरीर के लिए जो स्मरण होता है, उसको कलना कहते हैं ।
इस संसारुपी कण्टकपुर्ण गुल्म का वासना ही विस्तार करती है । विवेकी पुरुष का संसार सम्भ्रम तो, बसन्त के अन्त में पृथवी के रस के सदृश, धीरे से वासना के साथ नष्ट हो जाता है ।
अपनी वासना और अपने-अपने अभिमान के अनुसार राग आदि रसों से रंगे गये लोग करतल से ताडित गेंद के सदृश्य इधर-उधर खूब घूम फिरकर नरकों में गिरते हैंवहाँ पर दीर्घकाल तक तरह-तरह की यातनााओं के क्लेशों से सब ओर से जर्जर होकर कालांतर में स्थावर, कृमि, कीट आदि जन्म लेकर अन्य- से हो जाते हैं, फिर मनुष्य जन्म उनके लिए दुर्लभ ही बना रहता है ।
श्री योगवासिष्ठ महारामायण, सर्ग-25, निर्वाण प्रकरण, पेज-1810
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