Shoony Ki Khoj भारतीयों ने शून्य को स्थान, संज्ञा, प्रकृति और संकेत प्रदान करने के साथ-साथ इसे उपयोगी शक्ति भी प्रदान की । इसे हम यहाँ समझेगें ।
Shoony Ki Khoj | शून्य की खोज | Research for zero
यदि एक पलड़े में रख दिए जाएँ
और दूसरे पर केवल शून्य
तो भी शून्य वाला पलड़ा ही
भारी रहेगा ।
आरंभ में शून्य को एक बिंदु (.) से प्रदर्शित करते थे 0 के रूप में शून्य का प्रयोग धीरे-धीरे विकसित हुआ ।
शून्य के आविष्कर्ता भारतीयों ने शून्य को स्थान, संज्ञा, प्रकृति और संकेत प्रदान करने के साथ-साथ इसे उपयोगी शक्ति भी प्रदान की । यह निश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता है कि शून्य का आविष्कार कब हुआ परंतु इसका सर्वप्रथम प्रयोग पिंगल के ‘छंद सूत्र’ में मिलता है । वह भी कहा जा सकता है कि शून्य का आविष्कार वैदिक ऋषि गुत्समद ने किया था । माना जाता है कि इसकी रचना लगभग 200 ई.पू. में हुई थी । परन्तु वेदों में ऋचाओं की संख्या 10580 है, शब्द हैं 1, 53, 820 और अक्षर हैं 4, 32, 000 । इतना सूक्ष्म हिसाब वेद पाठ का रखा गया है । इससे पता चलता है कि शून्य का ज्ञान मानव को आरंभ से ही था । ‘बृहत्संहिता’ और ‘पंचसिद्धान्तिका’ ग्रंथों में शून्य का अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है ।
शून्य और शून्य पर आधारित दशमान पद्धति भारतीय मेधा का एक ऐसा चमत्कार है जिसके आगे संपूर्ण विश्व नतमस्तक है । आधुनिक जगत के तमात आविष्कार इसी शून्य की नींव पर खड़े हुए हैं । हिन्दू शून्य अरेविक भाषा में Si-fir हुआ फिर लेटिन में Ziffre होते हुए अंग्रेजी में Zero हो गया ।
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