भास्कराचार्य ने अपनेज्यामितिशास्त्रीय ग्रंथ‘लीलावती’ में Paee ka maan | पाई का मान दिया है । जो भारत के वैदिक शास्त्रोंं में वर्णित है । जो यहाँ हम समझेगें ।
Paee ka maan | पाई का मान | value of pi
भास्कराचार्य ने अपने
ज्यामितिशास्त्रीय ग्रंथ
‘लीलावती’ में पाई का
मान दिया है ।
‘‘व्यासे भनंदाग्निहते विभक्ते,
खबाणसूर्ये: परिधिस्तु सूक्ष्म: ।
द्वाविंशतिघ्ने विहतेऽथ शैले,
स्थूलोऽथवा स्याद् व्यवहारयोग्य: ।।
– लीलावती श्लोक 98
प्राचीन भारतीय मान – 3.1416 एक सौ में चार जोड़कर आठ से गुणा कर बासठ हजार जोड़ने पर जो फल प्राप्त होगा वह सामान्यत: 2000 व्यास वाले वृत्त की परिधि है । यथा-
आधुनिक मान- 3.1415926 पाई = परिधि/ व्यास = (8 (100 + 4)+ 62000) /2000 = 62832/ 2000= 3.1416
आर्यभट्ट ने भी पाई का मान के लिए सूत्र दिया था –
चतुर्थिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्त्राणाम् ।
अयुतद्वय विष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाह: ।।
– आर्यभटीयम्, गणितपाद 10
आर्यभट्ट ने पाई को अपरिमेय संख्या मानते हुए 3.1416 मान को आसन्न मान की संज्ञा दी है ।
वैदिक काल में ही पाई के मान पर विचार किया जा चुका है । ऋग्वेद 1.52.5, अथर्ववेद 8.9.2 तथा 1.105.17 आदि मंत्रों में एक कथा के माध्यम से पाई का मान बताया गया है । आधुनिकतम मान देने वाले गणितज्ञों में भी भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम् का नाम अग्रणी है ।
0 Comments