प्राचीनकाल में ईसा से सैकड़ों वर्ष पूर्व से ही हमारे देश में गणित | Ganit का विषेश महत्व रहा है ।
गणित के अंतर्गत सामान्यत:इन विषयों का समावेश होता है –
अंक Ganit,बीजगणित,
रेखागणित और ज्यामिती ।
इन सभी विषयों पर भारत ने जो पध्दतियाँ विकसित की हैं उनमें से अनेक आज विदेशों में ही नहीं भारत में भी दूसरे दशों के नाम से पढाई जा रही हैं ।
भास्कर प्रथम ने अंकगणित पर लीलावती नामक एक अपूर्व ग्रंथ की रचना की । प्रसिद्ध गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने पाटीगणित अथवा अंकगणित के अंतर्गत बीस विषयों- जोंड़, बाकी, गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल ,घन , घनमूल, तथा विभिन्न प्रकार की भिन्नों सहित आठ व्यवहारों- मिश्रण , श्रेणी आदि का निर्धारण किया । त्रिकोॅणमिति आर्यभट्ट एवं बीजगणित ब्रह्मगुप्त की देन है ।
यूरोप में जिन त्रैराशिक नियम को ‘गोल्डन रुल’ नाम से जाना जाता है ,वह भास्कराचार्य द्वारा दिया गया । पास्कल त्रिभुज जिसें ‘बाइनमियल थियोरम’ कहा जाता हैं वह पिंगल के छांदव सूत्र 8-34 में वर्णित हैं ।
ग्रिनोरी के नाम से जाना जाने वाली ‘इंटीग्रल और डिफरेन्शियल केलक्यूलस’ उससे पहले माधव एवं भास्काचार्य के ग्रंथो में दी गयी हैं । चक्रवाल पध्दति से अपरिमित समीकरणों का हल खोजने की विधि स्विटजर लैण्ड इयूलर से 700 वर्ष पहले भास्कराचार्य ने बता दी थी ।
भारतीय अंतर्राष्ट्रीय अंक संकेत
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