Jyotish ki Jyotirmay Parampara विज्ञान के रूप में किसने प्रस्तुत किया इसकी जानकारी यहाँ पढने को मिलेगी पंचाग क्या है और किसने शुरु किया आदि ।
Jyotish ki Jyotirmay Parampara
liturgical Tradition of Astrology
वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्ता: कालानुपूर्वा विहिताश्च यज्ञा: ।
तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं वेद स वेद यज्ञम् ।।
– वेदांग ज्योतिष, याजुष श्लोक 3
सूर्य उदय होता है न अस्त होता है, सौरमंडल के विभिन्न ग्रह, चन्द्रमा-सूर्य से प्रकाशित हैं,
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, पृथ्वी पहले जलमग्न थी,
पृथ्वी की गति पश्चिम से पूर्व की ओर आकर्षण शक्ति, ज्वार-भाटा,
चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति का परिणाम, विभिन्न नक्षत्र, विषुवत रेखा,
सूर्य की उत्तरायण- दक्षिणायन गति, बारह राशियाँ
ऐसे अनेक तथ्य वेदकाल में ऋषियों ने जानकर वेद के काव्यात्मक रूप से मानवता को दे दी थी । कालान्तर में आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, श्रीधर आदि ज्योतिषियों ने विज्ञान के रूप में इसे पुन: प्रस्तुत किया । उत्तर सामने रखे हुए हैं । पुरातत्व को ही प्रमाण माननेवालों के सामने यह प्रश्न है कि आखिर बिना आधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों के ये बातें कैसे जानी गई ?
Jyotish ki Parampara में
भारतीय कालसूचक- पंचांग | Indian Chronology – Panchang
जिसे कर्मकांड का रूप देकर आम जनमानस से जोड़ दिया गया ।
भारत में नक्षत्र विज्ञान पश्चिमी देशों की तरह अपने आप में स्वतंत्र विषय नहीं होकर कृषि, आयुर्वेद, गणित सभी से जुड़ा रहा । माना जाता है कि कृषि एवं यज्ञ आदि के उद्देश्य से पंचांग की रचना हुई । इसमें कालगणना के अतिरिक्त मुहूर्त, फलादेश आदि पाँच अंग शामिल हैं, इसलिए इसे पंचांग कहा जाता है । स नक्षत्र में कौन-सी फसल बोई जाए तथा किस फसल की कब कटाई हो इस निमित्त स्वतंत्र रूप से कृषि पंचांग का विकास हुआ ।
उनका पृथ्वी के जीवन पर पड़नेवाला प्रभाव
और अनिष्ट प्रभावों से बचाव सभी
पंचांग के विषय रहे हैं ।
बाद में कर्मकांड के बढ़ जाने से
इसका धार्मिक महत्व
वैज्ञानिकता पर हावी हो गया ।
ग्रहों को जानने-समझने
के लिए कई
वेधशालाएँ
निर्मित की गई ।
भारत में प्राचीनकाल से ही ग्रहों को देखने के लिए टेलीस्कोप (तुरीय यंत्र) होता था । उज्जैन स्थित श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर के संग्रहालय में सैकड़ों वर्ष पुराने उत्तल लैंस रखे हैं, जो तुरीय यंत्र बनाने में प्रयोग किये जाते थे ।
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