आयुर्वेद के मौलिक सिध्दांतों का अवलोकन करने पर यह ज्ञात होता है कि Aayurved ke Janak भारतीय ही थे । इस बात की पुष्टी इस लेख हो जाती है ।
आयुर्वेद किसे कहते हैं ?
शरिर, इन्द्रियाँ, मन और आत्मा के संयोग को आयु कहते हैं और उस आयु का ज्ञान देनेवाला वेद है और यह अपौरुषेय है अर्थात इसका कोई कर्ता नहीं है। आयुर्वेद की महीमा के विषय में आचार्य चरकजी कहते हैं
तस्याSSयुषः पुण्यतमो वेदो वेदविदां मतः ।
वक्ष्यते यन्मनुष्याणां लोकयोरुभयोर्हितम् ।।
आयुर्वेद आयु का पुण्यतम वेद है, जो मनुष्य के इहलोक और परलोक दोनों के हितों को कहता है, ऐसा विद्वानों का मत है ।
(चरक संहिता, सूत्रस्थानः 1.43)
Aayurved ke Janak | आयुर्वेद का प्राकट्य
चरक मत के अनुसार, आयुर्वेद का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भरद्वाज ने प्राप्त किया। च्यवन ऋषि का कार्यकाल भी अश्विनी कुमारों का समकालीन माना गया है।
आयुर्वेद के विकास मे ऋषि च्यवन का अतिमहत्त्वपूर्ण योगदान है। फिर भारद्वाज ने आयुर्वेद के प्रभाव से दीर्घ सुखी और आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया। तदनन्तर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक छः शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया। इन छः शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता का निर्माण किया- अग्निवेश तंत्र का जिसका प्रतिसंस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरकसंहिता पड़ा, जो आयुर्वेद का आधार स्तंभ है । Aayurved ke Janak तो भारत के ऋषि ही हैं ।
अष्टांग आयुर्वेद
आयुर्वेद के आठ अंग हैः
आहार विहार व विचारों में प्रविष्ट आज की आधुनिक जीवन शैली शारिरिक अस्वस्थता, मानसिक अशांति, बौध्दिक जड़ता व इन्द्रिय-लोलुपता लाकर जीवात्मा को पथभ्रष्ट करती जा रही है । इसीके परिणामस्वरुप विज्ञान की आधुनिक चिकित्सा- प्रणालियों के अहर्निश कार्य करने पर भी रोग प्रतिबंधन व रोग-निवारण (disease prevention and cure) का लक्ष्य अपूर्ण ही है ।
आयुर्वेद के मौलिक सिध्दांतों का अवलोकन करने पर यह ज्ञात होता है कि प्रकृति के अनुरुप जीवनक्रम स्वस्थ जीवन का मूल आधार है । शरीर प्रकृति का ही एक अंग है व इसे स्वस्थ रखने की पूर्ण व्यवस्था प्रकृति में है ।
दिन, रात्रि एवं ऋतुओं का निर्माण व तदनुसार आहार व औषधियों की उत्पत्ति स्वाभाविक रुप से होती रहती है । स्वास्थ्य स्वाभाविक है व अस्वास्थ्य अस्वाभिक । स्वस्थ रहने की सहज, सरल, स्वभाविक रीत को भूलकर हम कृत्रिम औषदियों व उपचारकों के अधिन होते जा रहे हैं । केवल सम्यक जानकारी व प्रचार-प्रसार के अभाव के कारण एक निर्दोष एवं सम्पूर्ण चिकित्सा-पध्दति उपेक्षित है ।
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