Jaivik Kheti Khad Davaiyan- जैविक खेती, खाद, दवाईयां एवं लाभ

Written by Rajesh Sharma

📅 March 18, 2022

Jaivik Kheti Khad Davaiyan

इस लेख में Jaivik Kheti Khad Davaiyan बनाने की विधि उपयोग तथा इसके लाभ क्या क्या है यह सब बताया जायेगा । फसल चक्र, गौ का अर्थशास्त्र आदि भी ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- जैविक खेती से होने वाले लाभ

कृषकों की दृष्टि से लाभ

* भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है । * सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है ।

* रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से कास्त लागत में कमी आती है।

* फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।

मिट्टी की दृष्टि से

* जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।

* भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं।

* भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा।

पर्यावरण की दृष्टि से

* भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती हैं।

* मिट्टी खाद पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण मे कमी आती है।

* कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है ।

* फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि

* अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना ।

जैविक खेती की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है अर्थात जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकों की उत्पादकता बढाने में पूर्णत: सहायक है । वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि और भी अधिक लाभदायक है । जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है इसके साथ ही कृषक भाइयों को आय अधिक प्राप्त होती है तथा अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं । जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

आधुनिक समय में निरन्तर बढती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति का संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती की राह अत्यन्त लाभदायक है । मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए नितान्त आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हों, शुद्ध वातावरण रहे एवं पौष्टिक आहार मिलता रहे, इसके लिये हमें जैविक खेती की कृषि पद्धतियों को अपनाना होगा जोकि हमारे नैसर्गिक संसाधनों एवं मानवीय पर्यावरण को प्रदूषित किये बगैर समस्त जनमानस को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकेगी तथा हमें खुशहाल जीने की राह दिखा सकेगी ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan | जैविक खेती हेतु प्रमुख जैविक खाद एवं दवाईयाँ

जैविक खादें

* नाडेप

* बायोगैस स्लरी

* वर्मी कम्पोस्ट

* हरी खाद

* जैव उर्वरक (कल्चर)

* गोबर की खाद

* नाडेप फास्फो कम्पोस्ट

* पिट कम्पोस्ट (इंदौर विधि)

* मुर्गी का खाद

जैविक खाद तैयार करने के कृषकों के अन्य अनुभव

* भभूत अमतपानी

* अमृत संजीवनी

* मटका खाद

जैविक पद्धति द्वारा व्याधि नियंत्रण के कृषकों के अनुभव

* गौ-मूत्र

* नीम- पत्ती का घोल/निबोली/खली

* मट्ठा

* मिर्च/ लहसुन

* लकडी की राख

* नीम व करंज खली

रासायनिक विशैले  किटनाशकों का दुष्प्रभाव

विश्व बैंक द्वारा किये गए अध्यन के अनुसार दुनिया में 25 लाख लोग प्रतिवर्ष कीटनाशकों के दुष्प्रभावों के शिकार होते है, उसमे से 5 लाख लोग तक़रीबन काल के गाल में समा जाते है । चिंता का विषय यह भी है ,जहाँ एक तरफ दुनिया के कई देशो ने जिस कीटनाशक दवाई को प्रतिबन्ध कर दिया है , अपने यहाँ धडल्ले से उपयोग किया जा रहा है ।यहाँ तक की अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हमारे देश में कारखाने स्थापित कर बहार के देशों के प्रतिबंधित अनुपयोगी व बेकार रासायनों को यहाँ मंगा कर विषैले कीटनाशक उत्पादित कर रही है ।

इनमे से कई कीटनाशकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बेहद जहरीला और नुकसानदेह बताया है जिनमे डेल्तिरन, ई. पी.एन., क्लोरेडेन, फास्वेल आदि प्रमुख है ।दिल्ली के कृषि विज्ञानं अनुसन्धान केंद्र के द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली के आसपास के ईलाकों में कीटनाशकों का असर 2 प्रतिशत अधिक है ।लुधियाना और उसके आसपास से लाये गए दूध के सभी नमूनों में डी.डी.टी. की उपस्थिति पाई गई है ।यहाँ तक की गुजरात जो देश की दुग्ध राजधानी के नाम से जाने जाते है, वहां से शहर के बाजारों में उपलब्ध मक्खन, घी और दूध के स्थानीय बरंदों के अलावा लोकप्रिय ब्रांडों में भी कीटनाशक के अंश पाए गए है ।

विश्व में हमारा देश डी.डी.टी. और बी.एच.सी. जैसे कीटनाशकों का सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि डी.डी.टी. कीटनाशक रसायन अनेक देशों में प्रतिबंधित है । हमारे यहाँ जमकर इसका प्रयोग किया जाता है ।  आज यह सवित हो चूका है की अगर हमारे खून में डी.डी.टी. की मात्रा अधिक होने पर कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है ।साथ ही हमारे गुर्दों, होठों,जीभ व यकृत को भी नुकसान पहुंचता है ।

बी.एच.सी. रसायन डी.डी.टी. से ढाई गुना यादा जहरीला होता है ।परन्तु हमारे देश में गेहूं व अन्य फसलों पर अधिक उपयोग किया जाता है जो की कैंसर और नपुंसकता जैसी तकलीफ के लिए जिम्मेदार होता है ।

आज जरुरत है कीटनाशकों के विकल्प साधनों की जो जैविक नियंत्रण विधि, सामाजिक व यांत्रिक तरीकों को अपनाएं ।दुनिया के कई देशों में इनका व्यापक प्रयोग सफलता पूर्वक किया जा रहा है, जिससे कीटनाशकों की खपत एक तिहाई कम हो गई है और उत्पादन भी बढ़ गया है ।

अत: आनेवाली पीढ़ी व हमारे स्वास्थ्य के लिए धीरे-धीरे कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना अति उतम होगा

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- विषमुक्त कुदरती खेती

किसी भी राष्ट्र को प्रगति के पथ पर गतिमान होने के लिए उसके नागरिकों का स्वस्थ होना अत्यन्त आवश्यक है । दुर्भाग्य से हमारा देश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के षड्यन्त्र का शिकार होकर देश को स्वस्थ विषयुक्त प्राकृतिक खाद्यान्न उपलब्ध नहीं करा पा रहा है । आज भी वास्तविक भारत गाँवों में बसता है , गाँव इस देश की आत्मा व आधार हैं ।

हमारे किसान अन्नदाता हैं, जो सभी का भरण-पोषण करके लोगों को जीवन देते हैं लेकिन वर्तमान परिवेश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने हमारे भोलेभाले किसानों को अधिक उत्पादन के झूठे स्वप्न दिखाकर खतरनाक रासायनिक खादों व जहरीले कीटनियन्त्रकों के जाल में फँसा लिया है, जिनके प्रयोग से उत्पदित विषयुक्त खाद्यान्न को ग्रहण करने से लोग कैंसर, टी.बी., दमा, शुगर व बी.पी. जैसी खतरनाक बीमारियों से ग्रसित हो रहेे हैं और हमारे किसान अनजाने में इस पाप के भागी बन रहे हैं । आज देश में लगभग 5 लाख करोड़ रुपये के रासायनिक खाद व विषैले कीटनियन्त्रकों का प्रयोग व उनके प्रयोग से पैदा हुई बीमारियों पर लगभग 10 लाख करोड़ रुपये खर्च किया जा रहा है । ज्यादा खर्च, कम उपज के कारण किसानों की आत्महत्याएँ व जहरीले अन्न व शाक सब्जियों से भयंकर बीमारियों के कारण देश को मौत के मुँह में धकेला जा रहा है ।

हमें स्वदेशी कृषि व्यवस्था को अपनाकर पहले कम लागत से उतनी ही पैदावार और बाद में कम लागत से अधिक पैदावार करके रासायनिक खादों व कीट नियन्त्रकों के कुचक्र से देश को बचाना है । निरन्तर शोध व अनुसंधान से प्राप्त परिणामों के आधार पर प्राचीन प्रक्रिया व वैज्ञानिक तरीके से निर्दोष, लाभकारी बैज्ञानिक विषमुक्त जैविक व प्राकृतिक खेती को गाँवों में स्थापित करना ही हमारा लक्ष्य है । जहरीले रासायनिक खादों व कीटनियन्त्रकों व स्वदेशी उन्नत बीजों के प्रयोग से ही स्वस्थ भारत व समृद्ध किसान का सपना साकार हो सकता है ।

संक्षेप में कुछ मूलभूत प्रक्रिया हम यहाँ आपके लिए प्रस्तुत कर रहें है । यदि आपके पास एक गाय या अन्य पशुधन है तो आप कम से कम दस एकड़ भूमि पर विषमुक्त कृषि कर सकते हैं । जहाँ तक सम्भव हो सके अपने खेतों की जुताई ट्रैक्टर से नहीं करके बैल या ऊँट से करें जिससे खेती बंजर नहीं होगी तथा धरती को उर्वरता प्रदान करने वाले केंचुओें व अन्य सैंकड़ों जीवों की भी रक्षा होगी ।

गौ का अर्थशास्त्र व धर्मशास्त्र

सभी दैविक शक्तियों का स्त्रोत गाय है । सभी महापुरुष गौ माता की सेवा से महान बने हैं । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जी, महाराजा दिलीप जी, सत्काम जाबाल एवं श्री सनत कुमार आदि गाय की सेवा से व गौ-दुग्ध, गौ-घृत आदि के सेवन से महान बने । हमारे सभी संस्कारों में जन्म से लेकर विवाह तक ऐसी मान्यता है कि अन्तिम यात्रा में वैतरणी पार करवाने में गौ दान की परम्परा है ।

गाय का अर्थशास्त्र

  1. गाय से उपलब्ध होने वाले मुख्य उत्पाद एवं सह उत्पाद (बाइप्रोडेक्ट्स) के औषधीय प्रयोग – गौमूत्र, गौ-घृत, गौ-दुग्ध, गौ-तक्र व गोबर आदि पंचगव्य के प्रयोग से साधारण से लेकर असाध्यरोग कैंसर आदि का उपचार भी संभव है ।
  2. खाद- गाय के गौमूत्र व गोबर के प्रयोग से उन्नत किस्म की जैविक खाद बनाकर रासायनिक खादों के खर्च से बचा जा सकता है ।
  3. कीटनियन्त्रक- गौ-मूत्र आदि का कीटनियन्त्रक रासायनिक कीटनियन्त्रकों का प्रभावी विकल्प है ।
  4. ऊर्जा- गाय के गोबर से उपलों व बॉयोगैस से ऊर्जा की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं ।
  5. परिवहन एवं जुताई- गाय के बछड़े व बैल माल ढुलाई के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन का सशक्त माध्यम है ।

इन पाँचों दृष्टिकोणों से गाय का आर्थिक मूल्यांकन करें तो एक गाय के जीवन भर से जो आर्थिक लाभ होता है वह पच्चीस लाख रूपये से भी अधिक होता है । जबकि गाय को काटने से लगभग पच्चीस हजार रुपये का ही मांस व चमड़ा मिलता है । अतः हर किसान अपने घर में गाय अवश्य रखें।

खुद तो जहर मत खाइए तथा अपने बच्चों को भी थाली में विष मत परोसिए

यदि इस नैसर्गिक या कुदरती विषमुक्त खेती के बारे में आपके मन में सब तथ्यों को जानने के बाद भी कोई प्रश्न रहता है कि कहीं पैदाकर कम तो नहीं हो जायेेगी तो पहले आप अपने परिवार के लिए 1-2 एकड़ में यह प्रयोग कीजिए । भाई दो सौ करोड़ वर्षों से हमारे पूर्वज इसी कुदरती तरीके से खेती करते आयें थे, डरो मत, अपने बच्चों को तो जहर मत खिलाइए, खुद भी विष मत खाइए तथा अपने घर के पशुओं को भी जहरीला चारा मत खिलाइए क्योंकि चारा भी पशुओं का दूध व घी बनकर हमारे ही शरीर में ही जाने वाला है ।

जहरीली खेती से पशुओं व माताओं के दूध में भी विष घुल गया है तथा इंसानों का खून व पूरा शरीर जहरीला हो चुका है । इसी कारण कैंसर, बी.पी., शूगर, हार्ट अटैक, गठिया, दमा व अन्य खतरनाक रोग पैदा हो रहे हैं ।

पशुओं के साथ-साथ आदमी व औरतों में भी बाँझपन का बहुत बड़ा कारण यह जहरीली खेती व विषैला आहार ही है । पशुओं में बाँझपन आने से वे कत्लखानों में कट रहे हैं । तथा इंसानों में बाँझपन आने से कुलवंश मिट रहे हैं, हम अपने ही अज्ञान से अपने पशुधन व कुल का विनाश कर रहे हैं ।

हमें कृषि को छोटा व हीन कार्य नहीं मानना चाहिए । वेदों में कृषि कार्य को सर्वश्रेष्ठ दर्जा दिया गया है । अपने अतीत में सीता माता के पिता महाराज जनक हों या योगेश्वर श्रीकृष्ण के भाई बलराम हों अथवा कणाद ऋषि हों, सभी श्रेष्ठ पुरुषों व ऋषि मुनियों ने कृषि कर्म को सर्वोपरि सम्मान व स्थान दिया है । हमारे समाज में एक प्रचलित जनलोकोक्ति भी कृषि कर्म की श्रेष्ठता को अभिव्यक्त करती है -‘‘उत्तम खेती मध्यम बान, करे चाकरी कुकर निदान ।’’ इसलिए हमें कृषि कर्म को देश में ऋषिकर्म का सम्मान दिलाना चाहते हैं ।

कुदरती खेती के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ

  1. एक एकड़ में शीशम, आम, कटहल, सिल्वर ओक, चीकू, नारियल, पपीता, केला व सागौन आदि ऐसे पेड़ जो खेत की उर्वरता बढ़ाने में मदद करते हैं, को अवश्य लगाने चाहिए । इन वृक्षों पर बैठने वाले पंछी कीटों को खाकर फसलों को बचाने का काम करते हैं, साथ ही खेत में खाद भी देते हैं । पंछी अनाज कम व फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों को अधिक खाते हैं । एक चिड़िया दिन में लगभग 250 सूंडी खा लेती है । पेड़ों से 10-20 साल में किसानों को अतिरिक्त आर्थिक लाभ मिलता है । जाटी आदि से पशुओं को आहार, रसोई के लिए लकड़ी तथा परिवार के लिए फल मिलते हैं । पेड़ों के साथ गिलोय व काली मिर्च आदि लगाकर और अधिक आर्थिक लाभ कमा सकते हैं ।
  2. एक ग्राम मिट्टी में लगभग 3 करोड़ सूक्ष्म जीव होते हैं । खेत के पत्तों, धान व अन्य प्रकार के चारे में आग लगाने एवं जहरीली खाद व कीटनियन्त्रकों को डालने, ट्रैक्टर से खेत जोतने पर ये सूक्ष्म जीव मरते हैं और धरती धीरे-धीरे बंजर बन जाती है ।
  3. अधिक पानी जमीन का शत्रु, नई जमीन का मित्र तथा फसलों व गोभी आदि सब्जियों का कचरा भूमि माता के वस्त्रों का काम करते हैं, जो जमीन को सर्दी गर्मी से बचाते हैं, तापमान को नियन्त्रित रखते हैं तथा जमीन की नमी को भी बरकरार रखते हैं । अतः भूमि की मल्विंग के लिए फसलों का कचरा खेत के लिए नहीं उसकी ताकत है ।
  4. लगभग एक एकड़ भूमि में 90 हजार केंचुएँ होते हैं । एक केंचुवा खेत में हजारों किलोमीटर खुदाई करने की क्षमता रखता है । जो भूमि जैविक कृषि द्वारा पोषित होती है और जहाँ केचुएँ संरक्षित किये जाते हैं उस भूमि की 5 वर्षों में –

(क) 5 गुना नाईट्रोजन की ताकत बढ़ जाती है । (ख) 7 गुणा फास्फोरस की ताकत बढ़ जाती है ।

(ग) 11 गुना पोटास की ताकत बढ़ जाती है ।

(घ) 2.5 गुना मैग्नीशियम की ताकत बढ़ जाती है ।

अतः प्राकृतिक खेती में कृत्रिम रासायनिक खाद, यूरिया, व डी.ए.पी. की जरूरत नहीं पड़ती है । गोबर, गौमूत्र व पेड़ के पत्तों से भूमि को ये पोषक तत्त्व ही मिलते रहते हैं ।

  1. एक केंचुवे का 10 दिन से 30 दिन का जीवन होता है । यह लगभग 6 अण्डे प्रतिदिन देता है । एक में ही नर-मादा दोनों होते हैं अर्थात् द्विलिंगी होता है । अपने जीवनकाल में 30 से 40 बच्चे तैयार कर देता है । अतः एक भी केंचुआ मरना नहीं चाहिए, यह किसान व खेत का सबसे बड़ा मित्र हैं ।
  2. पेड़ का एक पत्ता धरती के लिए एक नोट के बराबर है तथा एक केंचुआ एक बोरी यूरिया या डीएपी से अधिक लाभकारी है ।
  3. किसानों की प्रमुख पाँच ताकत- मिट्टी, पानी, बीज, फसलचक्र एवं श्रमशास्त्र है । इनमें सजीव मिट्टी चार बातों से शक्तिशाली होती है-

(क) गाय, (ख) वृक्ष या पौधे (ग) चिड़िया पक्षी, (घ) फसलों का बॉयोमास या हरी खाद । इसी तरह पानी का प्रबन्धन कुदरती खेती में महत्त्वपूर्ण है । यह प्रबन्धन निम्न बातों से होता है- (क) माइक्रोट्रेन्च, (ख) ग्रीड लोकिग, (ग) छोटे-छोटे गड्ढ़े खेतों में । इसी तहर बीज, फसल चक्र व श्रमशास्त्र का कुदरती खेती में अपना महत्त्व है ।

  1. खेत में कहीं भी कभी भी यूकेलिप्टस नहीं लगाना चाहिए ।
  2. रासायनिक खेती से नैसर्गिक खेती के लिए खेत को तैयार करने के लिए आप अपने खेत में पहले तालाब की मिट्टी, जंगल के पेड़ों के नीचे की मिट्टी, हरी खाद जैसे ढैंचा व पटसन आदि बोकर उसी जमीन में उसे काटकर मिला देना, गौमूत्र, गोबर, गुड़ व दाल वाली खाद व कम्पोस्ट खाद डालें, इससे भूमि की उर्वरता बढ़ेगी तथा उपज कम नहीं होगी क्योंकि कुछ लोग जब यूरिया, डीएपी आदि से सीधे कुदरती खेती पर आ जाते हैं तो खेत यदि तैयार नहीं किया तो आपकी उपज कम हो सकती है ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- फसल चक्र का विज्ञान

  1. किसानों को फसल चक्र विज्ञान तथा कीट विज्ञान का भी पूरा ज्ञान होना चाहिए । एक फसल दूसरी की पूरक होती है । अतः दालें, सब्जियाँ, अलग-अलग प्रकार के अन्न, कौन सी ऋतु में कौन सी सब्जी बोना है ? जिससे उसके ऊपर कम से कम कीट आयें, इत्यादि छोटी छोटी बातें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । इसी प्रकार यदि एक कीड़ा फसल को खाने वाला है तो कीड़ें को खाने के लिए पकृति ने तीन कीड़े बनाये हैं । अतः कीटों के इस प्राकृतिक नियंत्रण चक्र को समझने की आवश्यकता है । जैसे बलवान इन्सान को कोई रोग नहीं होता वैसे ही कुदरती खेती करने से फसल बलवान होती है । उस पर वैसे ही कम से कम कीड़े लगते हैं तथा लगते भी हैं तो प्राकृतिक चक्र से स्वयं ही नियन्त्रित होते जाते हैं । रासायनिक खेती, व्यवसायिक खेती ने कृषि व्यवस्था को चौपट कर दिया है । व्यापार के रूप में कुदरती खेती करे या न करे, किन्तु कम से कम एक से दो एकड़ जमीन पर किसान अपने व्यक्तिगत उपयोग हेतु कुदरती खेती अवश्य करें ।
  2. एक होती है मुख्य फसल जैसे गेहूँ, गौण फसल जैसे सरसों, सहायक फसल जैसे-चना, अतिथि फसल, जैसे-मूली-शलजम आदि, रक्षक फसल, जैसे-धनिया, मेथी, सहायक पटसन व सौंफ आदि । इसी प्रकार अन्य फसलों के बारे में भी यही बात लागू होती है ।
  3. किसान की जरूरत की हर चीज उसे अपने खेत में पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए । किसान को 99% दुकान पर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है । इसके लिए फसल चक्र का ज्ञान सब किसानों को होना चाहिए ।
  4. जैसे माँ को एक संतान के बाद तीन वर्ष का आराम देते हैं, वैसे ही धरती माँ को भी साल में यदि तीन माह का आराम दिया जाये तो खेत की मिट्टी ज्यादा उपजाऊ रहती है ।
  5. दुनियाँ में महाभारत की लड़ाई को सबसे बड़ा माना जाता है, वह भी 18 दिन में पूरी हो गई थी । ये कीड़ों की लड़ाई 30 वर्षों से चल रही है और कीड़े मर नहीं रहे हैं । इसका सीधा-सा मतलब है कि अधिकांश कृषि वैज्ञानिक किसानों के लिए नहीं अपितु दवा, खाद, बीज व यंत्र आदि बनाने वाली कम्पनियों को फायदा पहुँचाने के लिए ज्यादा काम करते हैं और कीड़ा आदि के नाम पर भ्रम फैलाकर किसानों को लूटते हैं । ऑटो मोबाईल इन्डस्ट्रीज़ तथा बीज, विदेशी खाद, कीटनियन्त्रक व कृषि यन्त्र बनाने वाली और उनके लिए काम करने वाली लोबी कुदरती खेती का योजनाबद्ध तरीके से विरोध करती हैं ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- कुदरती खेती के व्यावहारिक प्रशिक्षण

* बीजसंस्कार :- मनुष्य के संस्कारों का ज्ञान, विधान ऋषियों को था । वैसे ही बीज, मिट्टी व फसलों के भी संस्कारों का ज्ञान हम सब किसानों को होना चाहिए ।

* बीजामृत :- बीजों की बुआई करने से पूर्व उनको बीजमृत द्वारा उपचारित करते हैं । इससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है । साथ ही विभिन्न फंगस एवं बीज खाने वाले कीटों से बीज सुरक्षित रहता है ।

बीजामृत प्रथम के लिए आवश्यक सामग्री :-

(क) गौमूत्र 5 लीटर, (ख) राख 1 किलो. (नीम की लकड़ी की राख उत्तम रहती है), (ग) चूना 400 ग्राम, (घ) पानी 3 लीटर

बनाने की विधि – सर्वप्रथम 20 लीटर क्षमता वाला एक टब या ड्रम ले लेते हैं । उसमें 5 लीटर गौमूत्र में 400 ग्राम चूना घोलते हैं, तत्पश्चात््् एक किलो राख मिलाते हैं, उसके बाद 3 लीटर पानी डालते हैं । लकड़ी की सहायता से उपरोक्त द्रव को हिलाते हैं, ताकि सामग्री मिश्रित हो जायें । अब जिस फसल के बीजों की बुआई करनी होती है उसे तीन से पाँच मिनट उपरोक्त बीजामृत में डुबोकर रखते हैं । तत्पश्चात्् उसे छाँया में सुखाकर बुआई करने के लिए उपयोग करते हैं । उपरोक्त बीजामृत 1 एकड़ फसलों के बीजों के लिए पर्याप्त होता है ।

विशेष – धान के बीजों को उपरोक्त बीजामृत से संस्कारित करने से गोभ की सूंडी की बीमारी का प्रतिशत काफी कम हो जाता है ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan-बीजमृत द्वितीय के लिए आवश्यक सामग्री :-

(क) गाय का गोबर 5 किलो, (ख) देशी घी 250 ग्राम, (ग) शुद्ध शहद 1 किलो, (घ) बीज 10 किलो (जो बीज उपयोग में लाने हैं ।)

बनाने की विधि – सर्वप्रथम 250 ग्राम देशी घी को 5 किलो गाय के गोबर में मिलाकर हाथों से रगड़ते हैं ताकि देशी घी पूर्णरूपेण गोबर में मिश्रित हो जाये । इसके पश्चात् जिस बीज की बुवाई करनी होती है, उसकी 10 किलो मात्रा लेकर उसमें शहद को मिलाते हैं, जब शहद पूरी तरह बीज में मिल जाये उसके पश्चात् गोबर और घी के मिश्रण को लेकर बीजों पर रगड़ते हैं । तत्पश्चात्् बीजों को छाया में 12 घण्टे तक सुखाते हैं । इसके पश्चात् बीज की बुवाई कर देते हैं ।

उपरोक्त बीजमृत से मूँग, लौबिया, अरहर, सरसों आदि के बीजों को संस्कारित किया जा सकता है ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- कुदरती खाद के निर्माण की अनुभूत मुख्य प्रक्रियाएँ

(क) संजीवक खाद –

यह एक प्राकृतिक तत्त्वों से बना हुआ द्रव है जो कि फसलों को सीधे दिया जाता है । इसके प्रयोग से फसलों की उचित वृद्धि के साथ-साथ विभिन्न रोगों से भी मुक्ति मिलती है ।

सामग्री – (200 ली. के लिए) 60 किलो गाय का गोबर, 6 लीटर गौमूत्र, 1 किलो गुड़, 133 लीटर पानी ।

विधि – सर्वप्रथम एक बड़ा ड्रम या टब लेते हैं जिसकी क्षमता 200 लीटर हो, उपरोक्त ड्रम में सबसे पहले 60 किलो गाय का गोबर लेते हैं तत्पश्चात् इसमें 6 लीटर गौमूत्र घोलते हैं । गोबर तथा गौमूत्र के इस घोल में 1 किलो पुराना गुड़ लेते हैं इसको बारीक करके उपरोक्त ड्रम में डाल देते हैं । तत्पश्चात्् लकड़ी की सहायता से इसको हिलाते रहते हैं जब तक की गुड़ पूरी तरह उपरोक्त घोल में न मिल जाये तत्पश्चात्् इसमें 133 लीटर पानी मिला देते हैं अब इसको कपड़े से ढ़क देते हैं 10 से 12 दिन तक ऐसे ही रखने के पश्चात् खोलते हैं और पुनः लकड़ी से हिलाते हैं फिर इसे सीधे प्रयोग में लेते हैं ।

प्रयोग विधि – यह सभी प्रकार की फसलों में लाभप्रद होता है, अतः इसे फसल की सिंचाई/छिड़काव करते समय प्रयोग करते हैं । इसे सिंचाई के साथ नाली में पानी के साथ पतली धार के रूप में भी डाल सकते हैं ।

मात्रा – एक एकड़ जमीन में, पहली फसल के लिए 1,000 लीटर संजीवक, दूसरे वर्ष 800 लीटर संजीवक, तीसरे वर्ष 600 लीटर संजीवक । इसी तरह आगे प्रतिवर्ष प्रतिफसल यह 400 लीटर संजीवक खाद डालनी चाहिए ।

विशेष – कुदरती खेती हेतु एक फसल के लिए यह संजीवक खाद दो-तीन बार प्रयोग में ला सकते हैं ।

(ख) जीवामृत खाद-

10 किलो गोबर, 5 किलो गौमूत्र, 1-2 किलो गुड़, 100-200 मिलीग्राम सरसों या मूंगफली आदि कोई भी एक खाने का तेल, 1-2 किलो कोई सस्ती दाल चना-मटर आदि का आटा तथा एक मुट्ठी भर बड़, शमी या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी-ये मिला कर रख दें ।

7-8 दिन में सँड़कर खाद तैयार हो जायेगी । इस खाद को ड्रम में टूंटी लगाकर धोरे (नाली) के माध्यम से फसल में दे सकते हैं या मिट्टी मिलाकर हाथ से भी छिड़क सकते हैं । एक एकड़ की फसल के लिए हर बार सिंचाई के समय इसे डालते हैं औसत रूप में 3-4 बार एक फसल चक्र के लिए यह पर्याप्त है । एक गाय से 1 माह में 15 एकड़ भूमि के लिए खाद तैयार हो सकती है ।

(ग) कम्पोस्ट खाद –

खेतों के आस-पास मेढ़ों के पौधों तथा फसलों के अपशिष्ट को गोबर तथा बायोसैलरी (बायोगैस से निकला बाइ प्रोडक्ट) की सहायता से कम्पोस्ट तैयार करते हैं इस प्रकार की बनी खाद में अनेक प्रकार के बायोएक्टिव कम्पाउन्ड्स होते हैं, जो कि मिट्टी की उर्वरता में दीर्घकालीन वृद्धि करते हैं ।

चूँकि खेतों में मौजूद पेड़ पौधों के अवशेषों को प्राकृतिक रूप से सड़ने में काफी समय लगता है किन्तु गोबर तथा बायोस्लरी की उपस्थिति से सूक्ष्म जीवों की क्रियाएँ प्रेरित होकर अपघटन शीघ्र कर देती हैं, जिसके फलस्वरूप उत्तम प्रकार की खाद प्राप्त हो जाती है ।

सामग्री – 1. फसलों के अवशेष, 2. सब्जियों के अवशेष, 3. खरपतवारों के सूखे झाड़ ( बीज बनने से पहले), 5. गोबर गैस स्लरी ।

बनाने की विधि – ( 4 फीट चौड़ा 8 फीट लम्बे तथा 4 से 6 फीट ऊँचा ब्लॉक/स्थान में ) सर्वप्रथम खेतों में पड़ी फसलों के अपशिष्ट जैसे-धान की पुआली बैंगन, टमाटर इत्यादि सब्जियों के सूखे पत्ते या पौदे जो कि काष्ठ अर्थात जिनके तने मजबूत होते हैं उनकी तर पहले लगाते हैं, जमीन के ऊपर इसकी ऊँचाई 6 से 8 इंच तक रखते हैं तत्पश्चात्् ताजे गोबर की एक 4 इंच तह लगाते हैं, उसके पश्चात् पुनः एक तह सूखे खरपतवारों तथा अन्य फसल अवशेषों की लगाते हैं । तत्पश्चात्् पुनः 4 इंच गोबर की तह लगाते हैं, इसी प्रकार उपरोक्त क्रम दोहराते हैं ।

इसी क्रम में कुछ तहें मुलायम अवशेषों, जैसे-सब्जियों के अपशिष्ट को लगाते हैं तत्पश्चात्् बायोगैस की स्लरी डालते हैं, तत्पश्चात्् पुनः फसलों के अपशिष्ट अथवा अवशेष एवं गोबर डालते हैं । इसी तरह निरन्तर परतें लगाते रहते हैं जब तक कि ऊँचाई 6 फीट तक न हो जाये ।

उपरोक्त बने ब्लॉक या खाद के ढ़ेर को सप्ताह में दो बार पानी का छिड़काव अवश्य करते रहना चाहिए, जिससे ब्लॉक या ढ़ेर में पर्याप्त नमी बनी रहे ।

प्रयोग विधि – 3 माह पश्चात् उपरोक्त ब्लॉक या ढ़ेर पूरी तरह कम्पोस्ट खाद में तब्दील हो जाता है, अब इसको 5-6 टन लगभग एक चॉली प्रति एकड़ की दर से खेतों में डालते हैं ।

(घ) हरी खाद –

हरी खाद कृषि में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है । ये बिना गले-सँड़े सीधे मृदा में प्रयुक्त होती हैं । ये द्विबीजपत्री, एकबीजपत्री और तिलहन फसलों का संयोग होता है 6ः3ः1 अर्थात् 6 भाग द्विबीजपत्री बीज, 3 भाग एकबीजपत्री, 1 भाग तिहलन बीजों को सीधे खेतों में बोया जाता है तथा एक निश्चित अवधि अर्थात् 40 से 45 दिनों पश्चात् जुताई करके खेतों में दबाया जाता है । हरी खाद मिट्टी में अत्यंत प्रभावी ढंग से अपना योगदान देती है । ये मुख्यतः नाइट्रोजन का प्रकृतिक स्त्रोत है ।

क.    6 किलो            द्विबीजपत्री (मूँग, मोंठ, अरहर, उड़द, लोबिया)

. 3 किलो         एकबीजपत्री (सनई, ढ़ैचा, मेथी, मक्का, ज्वार व बाजर आदि)

ग.    1 किलो            तिलहन (सरसों, तिल, सूरजमुखी)

प्रयोग विधि- ग्रीष्मकाल अथवा वर्षाकालीन समय हरी खाद के लिए विशेष उपयोगी रहता है । उपरोक्त समय खेत की गहरी 2 बार जुताई कर देनी चाहिए । तत्पश्चात्् पलेवा कर उपरोक्त बीज बुआई कर देनी चाहिए । ध्यान यह रखना चाहिए उपरोक्त बीजों को आपस में मिश्रित कर लेना चाहिए । बीज अंकुरण के 40 से 45 दिनों पश्चात् उपरोक्त फसलों को खेत में ही जुताई कर दबा देना चाहिए । तत्पश्चात्् अपनी मुख्य फसल जो लेना चाह रहे हैं, उसकी बुआई करनी चाहिए । खाद हेतु बीजों का चयन मौसम के अनुसार करना चाहिए ।

विशेष- धान एवं सब्जियों की खेती से पूर्व हरी खाद लेने से खेत काफी उर्वरक हो जाता है तथा फसल उत्पाद में 20-30% तक अतिरिक्त वृद्धि प्राप्त हो जाती है ।

नोट- जिस खेत की मिट्टी रेतीली अथवा बंजर हो उसमें वर्षों तक हरी खाद देने से मिट्टी में सामान्य पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में आ जाते हैं ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- जैविक कीट नियन्त्रक निर्माण की प्रक्रियाएँ

(1) निम्बादि कीटनियन्त्रक

आवश्यक सामग्री- नीम पत्ते 4 किलो, आक पत्ते 4 किलो, आडू पत्ते 4 किलो, लहसुन 4 किलो, तीखी हरी मिर्च 4 किलो, गौमूत्र 20 लीटर, पानी 20 लीटर ।

बनाने की विधि- सर्वप्रथम नीम पत्ते, आक पत्ते एवं आडू के पत्तों को अलग-अलग कूटकर टब में डाल लेते हैं, तत्पश्चात्् लहसुन एवं मिर्च को मिश्रित करके इमाम दस्तें में कूट लेते हैं । इसके बाद उपरोक्त टब में गौमूत्र एवं पानी मिलाते हैं । तत्पश्चात्् लकड़ी की सहायता से आपस में मिलाते हैं जब उपरोक्त सभी अच्छी तरह मिल जायें फिर टब को ढक देते हैं – 15 दिनों के पश्चात् इसको बारीक कपड़े से छान लेते है – छने हुए द्रव्य में 10 भाग पानी मिलाकर फसल पर धूप में छिड़काव करते हैं । एक एकड़ फसल के लिए पाँच लीटर कीटनियन्त्रक पर्याप्त होता है ।

विशेष – इस कीटनियन्त्रक द्वारा कमला कीट, रसचूषक कीट तथा मक्के का तना भेदक कीट पूरी तरह नियंत्रित होता है ।

(2) हींगादि कीटनियन्त्रक-

गाय के गोबर और गौमूत्र में बड़ी संख्या में मित्र जीवाणु पायें जाते हैं । इसमें निश्चित मात्रा में हींग मिलाने से काफी शक्तिशाली कीटनियन्त्रक तैयार हो जाता है ।

आवश्यक सामग्री – 5 किलो गाय का गोबर, 7 लीटर गौमूत्र, 5 लीटर पानी, 25 ग्राम असली हींग अथवा बाजार की हींग 200 ग्राम, 150 ग्राम चूना और 500 ग्राम पुराना गुड़ ।

बनाने की विधि – सर्वप्रथम देशी गाय जैसे- साहिवाल, राठी, थारपारकर आदि का 6 किलो गोबर लेकर इसमें 5 लीटर पानी मिलाते हैं, तत्पश्चात्् इसमें 7 लीटर ताजा गौमूत्र व गुड़ मिलाते हैं – इस घोल को 4 दिनों तक ढ़ककर रखते हैं- साथ ही प्रतिदिन सुबह-शाम लकड़ी की सहायता से घोल को हिलाते हैं ।

5 वें दिन इस घोल में 25 ग्राम असली हींग अथवा बाजार की हींग 200 ग्राम तथा 150 ग्राम चूना मिलाते हैं, फिर पुनः 4 दिन ढ़ककर रखते हैं, तत्पश्चात्् इसे छानकर 50 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्रफल की फसल में प्रयोग करते हैं ।

विशेष- निम्बादि कीटनियन्त्रक के छिड़काव से फसलों में लगने वाली दीमक पत्ती छेदक कीट तथा फंगस पूरी तरह नियन्त्रित होते हैं । Jaivik Kheti Khad Davaiyan का यह लेख सावधानी पूर्वक पढे व ध्यान दें ।

(3) करंजादि कीटनियन्त्रक-

गोबर 30 किलो, गौमूत्र 50 लीटर, करंज पत्ते 4 किलो, आक पत्ते 4 किलो, इमली पत्ते 4 किलो, लेंटाना पत्ते 4 किलो, भांग पत्ते किलो, अपामार्ग 4 किलो, अरण्ड पत्ते 4 किलो, यूकेलिप्टस पत्ते 4 किलो, सदाबहार पत्ते 4 किलो, आम पत्ते 4 किलो, धतूरा पत्ते 4 किलो, नीम पत्ता 4 किलो, पार्थिनियम (गाजर घास) 4 किलो, कसौन्दी पत्ते 4 किलो । उपरोक्त पौधों या पेड़ों के जितने प्रकार के पत्ते उपलब्ध हो जाये उतने डाल लें, उपलब्ध न होने पर भी इस कीटनियन्त्रक के असर में 19-20 का असर पड़ेगा अर्थात् ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा ।

बनाने की विधि – एक 200 लीटर क्षमता वाली ड्रम में 50 लीटर गौमूत्र लेते हैं उसमें 30 किलो गोबर घोलते हैं, तत्पश्चात्् इसमें उपरोक्त 14 प्रकार के (या अधिकतम उपलब्ध) पत्तों को बारीक-बारीक करके उस ड्रम में मिला देते हैं, तत्पश्चात्् लकड़ी की सहायता से उसे हिलाते रहते हैं जब तक की सभी पत्ते गोबर एवं गौमूत्र मिश्रण में न मिल जाये । इसके पश्चात् ड्रम को बंद कर 20-25 दिनों तक छोड़ देते हैं । उपरोक्त मिश्रण को बारीक कपड़े से छान लेते हैं ।

अब छने हुए घोल को 5 लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करते हैं ।

विशेष- उपरोक्त कीटनियन्त्रक के छिड़काव से फसलों के निम्न रोग नियन्त्रित होते हैं । (क) बैंगन व टमाटर में चित्ती रोग, (ख) गन्ने का कण्डुवा रोग, (ग) मक्के पर लगने वाला टिड्डी रोग, (घ) धान पर लगने वाली पत्ता लपेटक सूँढ़ी तथा धान का खैरा रोग ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- कुछ अन्य कीट नियन्त्रक उपाय

  1. जीरा व धनियाँ आदि कोमल व नाजुक संवेदनशील फसलों पर तो केवल गौमूत्र छिड़कने से ही कीट मर जाते हैं ।
  2. फसलों पर जो तैला आ जाता है, उसके लिए दूध में थोड़ा गुड़ मिलाकर या ऊपर बताये गये कीटनियन्त्रक छिड़क देते हैं तो वो तुरन्त मर जाता है । एक एकड़ के लिए 3-4 लीटर दूध व 1 किलो गुड़ पर्याप्त होता है ।
  3. फंगस के लिए 15-20 दिन पुरानी 4-5 ली. छाछ 1 एकड़ के लिए पर्याप्त होती है ।

कुदरती जीवामृत (नेचुरल जिबरेलिक एसिड)- Jaivik Kheti Khad Davaiyan

फसलों में विशेष रूप से सब्जियों की चमक व ऊपज बढ़ाने के लिए विदेशी कम्पनियाँ 60 रुपये का एक ग्राम अर्थात् लगभग 60 हजार रुपये लीटर का जिबरेलिक एसिड बेचती हैं । इसके लिए 1 एकड़ जमीन में 6 माह से 1 साल पुराने गाय के गोबर के कण्डे या उपले 5 किलो लेकर 20 दिन पानी में डालकर एक ड्रम में किसी भी पेड़ के नीचे या कहीं भी छाया में रख दें और सुबह-शाम किसी भी लकड़ी के डण्डे से हिला दें ।

10 दिन में यह 1 एकड़ के लिए जीवामृत तैयार हो जाता है । उसे छानकर 50 से 100 लीटर पानी में मिलाकर फलों, सब्जियों अथवा किसी भी फसल पर फल आने पर छिड़कें इससे जैविक उत्पादों की सुन्दरता व पैदावार दोनों ही बढ़ती है । यह जिबरेलिक एसिड से अधिक लाभकारी है । यह सब Jaivik Kheti Khad Davaiyan जानने पर ही संभव है ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- फसल का जंगली जानवरों से बचाव

नील गाय, जंगली सुअर, हाथी एवं गीदड़ आदि जंगल के जानवरों से फसलों की सुरक्षा हेतु एक बहुत ही कारगर उपाय है, जिसे हम भी अपने संस्थान में अपना रहे हैं । अपने खेत के चारों तरफ एक साधारण सी रस्सी बाँधकर उसमें लगभग 20-20 फीट की दूरी पर 2-2 फीट की लकड़ी की पतली डण्डियों पर दोनों सिरों के ऊपर 2-2- इंच की रूई या पुराने कपड़े को लगाकर उस पर शाम को डॉक्टर ब्राण्ड का काला फिनाइल लगा देते हैं पहले 3-4 दिनों तक रोज ये काला फिनाइल लगाते हैं, फिर बाद में 2-4 दिनों में एक बार फिनाइल लगाते हैं और उसकी गंध से जंगली पशु खेत में नहीं आते । क्योंकि उनको लगता है कि ये गन्ध उनके जीवन के लिए खतरा बन सकती है । अतः वे खेत में प्रवेश ही नहीं करते । ये हमारा भी तथा भाई शूरवीर सिंह जी का कई वर्षों का आजमाया हुआ 100% सफल प्रयोग है ।

उपरोक्त विधि से खेती करने वाले किसान की खेती में लागत कम होती है, जिससे स्वाभाविक रूप से उसकी आमदनी बढ़ेगी । आजकल रासायनिक खेती में उल्टा खतरनाक षड्यन्त्रकारी कुचक्र चल रहा है, लागत बहुत ज्यादा, फसले थोड़ी-सी ज्यादा और अन्त में किसान को घाटा, जबकि कुदरती खेती में लागत ना के बराबर, ऊपज पूरी व लाभ पूरा होता है ।

इस प्रक्रिया से खेती करने पर किसान व खेत में काम करने वाले मजदूर बीमार भी नहीं होते जबकि खाद व कीटनियन्त्रक खेतों में डालने से वे हवा व पानी में मिलकर पहले तो सीधे हमारे शरीर में जाते हैं तथा फसल व आहार के रूप में भी ये खाद-कीटनियन्त्रकों का विष हमारे शरीर में आता है । इससे कैंसर टी.बी. व संतान न होना पशुओं का नये दूध न होना, चर्म रोग, पेट, हृदय के रोग, शुगर, बी.पी. आदि बीमारियों के साथ-साथ विकलांग संतान पैदा होने का खतरा होता है । अतः कुदरती खेती करके ही हम अपनी व अपने देश की रक्षा कर सकते हैं ।

कुदरती व विषमुक्त खेती का यह विषय गाँव की सभा में स्वदेशी प्रचारक व योग शिक्षक को याद न भी हो तो बिन्दुवार उनको पढ़कर अवश्य सुनायें । Jaivik Kheti Khad Davaiyan आदि जानने से गाँव में एक बहुत बड़ी क्रान्ति होगी ।

Jaivik Kheti Khad Davaiyan- विषमुक्त जैविक प्राकृतिक कृषि के लाभ

जैविक खेती से कम लाग में अधिक पैदावार होती है, रासायनिक खाद व कीटनियन्त्रकों पर होने वाला किसान का खर्च बच जाता है –

  1. उत्पन्न खाद्यान्न में विटामिन, खनिज, व पोषक तत्त्व उच्च मात्रा में होते हैं । 2. ये खाद्यान्न उच्च गुणवत्ता युक्त व स्वास्थ्यप्रद होते हैं । 3. व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है तथा रोगों से मुक्त रहता है । 4. ये खाद्यान्न खाने में स्वादिष्ट लगते हैं । 5. इस खाद्यान्न को हम लम्बे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं । 6. उत्पन्न खाद्यन्न ऊँचे दामों में बाजार में बिकता है, जिससे किसानों को लाभ होता है । 7. विषमुक्त भोजन से होने वाले भयंकर रोगों की असहनीय पीड़ा व इलाज पर होने वाले खर्च की बचत होती है । 8. हमारी जमीन बंजर होने से बचती है । 9. हम धरती को माँ कहते हैं इसलिए विषमुक्त/जैविक/प्राकृतिक खेती करके हम अपनी धरती माँ की धमनियों में जहर नहीं डालते हैं । 10. हमारी प्राचीन कृषि संस्कृति की रक्षा होगी, क्योंकि भारत में कृषि एक सांस्कृतिक पक्ष है । 11. हमारे पशुधन का संवर्धन होता है ।

गाये के सींग की खाद

गाय की सींग गाय का रक्षा कवच है । गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है । गाय की मृत्यु के 4-5 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बनी रहती है । गाय की मृत्यु के बाद उसकी सींग का उपयोग श्रेष्ठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है । सींग खाद भूमि की उर्वरता बढ़ाते हुए मृदा उत्प्रेरक का काम करती है जिससे पैदावार बढ़ जाती है ।

निर्माण विधि- सींग को साफ कर उसमें ताजे गोबर को अच्छी तरह से भर लें । सितंबर-अक्तूबर महीने में जब सूर्य दक्षिणायन पक्ष में हो, तब इस गोबर भरी सींग को एक से डेढ़ फिट गहरे गड्ढे में नुकीला सिरा ऊपर रखते हुए लगा देते हैं । इस सींग को गड्ढे से छह माह बाद मार्च-अप्रैल में चंद्र-दक्षिणायन पक्ष में भूमि से निकाल लेते हैं ।

कुछ समय बाद खाद से मीठी महक आती है, जो इसके अच्छी प्रकार से तैयार हो जाने का प्रमाण है । इस प्रकार एक सींग से 30-35 ग्राम खाद मिल जाती है, जो एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त है ।

इस खाद का प्रयोग करने के लिए 25 ग्राम सींग खाद को 13 लीटर स्वच्छ जल में घोल लेते हैं । घोलने के समय कम से कम एक घंटे तक इसे लकड़ी की सहायता से हिलाते-मिलाते रहना चाहिए ।

प्रयोग विधि- सींग खाद से बने घोल का प्रयोग बीज की बुआई अथवा रोपाई से पहले सायंकाल छिड़काव विधि से करना चाहिए । Jaivik Kheti Khad Davaiyan जानना जरुरी है ।

जीवामृत खाद

निर्माण सामग्री : गाय का गोबर, गौमूत्र, गोदधी, दाल का आटा एवं गुड़ ।

प्रयोग विधि : किसी फलदार वृक्ष में तने से 2 मीटर दूर एक फुट चौड़ी तथा एक फुट गहरी नाली खोदकर खेत पर उपलब्ध कूड़ा-करकट भर दें और इसे जीवामृत खाद से अच्छे से गीला करें । इसका परिणाम फलोत्पादन पर पड़ता है । पेड़ की पैदावार बढ़ जाती है ।

मटका खाद

निर्माण सामग्री : गाय का गोबर, गौमूत्र एवं गुड़ ।

निर्माण विधि : 15 किलोग्राम गाय के ताजे गोबर और 15 लीटर ताजे गौमूत्र को 15 लीटर पानी एवं आधा किलोग्राम गुड़ में अच्छी तरह से घोलकर मिला लें । उपरोक्त सामग्री को मिट्टी के बड़े घड़े में रखें और घड़े का मुँह ठीक प्रकार से किसी कपड़े की सहायता से बंद कर दें ।

प्रयोग विधि : 15 दिन बाद 200 लीटर पानी मिलाकर इस घोल को एक एकड़ खेत में समान रूप से 15 दिन पूर्व तथा बुआई के एक सप्ताह बाद दूसरा छिड़काव करें ।

कृषि में उपयोगी गो-उत्पाद

कृषि में गौमूत्र की उपयोगिता 15 लीटर पानी में 200 मिली. देशी गाय का गौमूत्र घोलकर फुब्वारे से फसलों पर छिड़क दें । छिड़कने का समय प्रातः 10 बजे से पहले अथवा शाम को 4 बजे के बाद अच्छा रहता है । देशी साँड का मूत्र 100 से 150 मिली. लेना काफी है । प्रति सप्ताह इस तरह छिड़काव करने से फसल को बहुत लाभ होता है ।

साँड, बैल अथवा वृद्ध गाय के मूत्र में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है । इससे अन्न का दाना मोटा वजन में अधिक और स्वादिष्ट होता है । फसल में पानी बचत होती है । ऐसी फसल को नील गाय नहीं खाती । एक बीघा खेत के लिए 2 लीटर गौमूत्र की आवश्यकता होती है । साथ साथ Jaivik Kheti Khad Davaiyan आदि की जानकारी रखना जरुरी है ।

केंचुआ खाद

केंचआ खाद एक प्रकार का कम्पोस्ट है । आइसीनिया फेटिडा नामक केंचुआ कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए अच्छा रहता है । यह तीन इंच लंबा और लाल रंग का होता है । इसके प्रजनन की रफ्तार तेज होती है। इसका विकास तैंतीस डिग्री सेंटीग्रेड पर अधिक होता है । पैंतालीस डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर का ताप केंचुए के लिए हानिकारक रहता है । केंचुआ गोबर आदि जैविक पदार्थों को खाकर कम्पोस्ट में बदल देता है । यह पर्यावरण को शुद्ध रखता है । इससे रासायनिक उर्वरक की खपत कम होती है ।

केंचुआ खाद बनाने के लिए छप्पर अथवा टीन शेड की छाया होनी चाहिए । ईंट की क्यारियाँ 10ु 3ु 2.5 (फुट) की बनाकर उसमें गोबर, पुआल, हरे सूखे जैविक पदार्थ भर दिये जाते हैं । क्यारी जमीन से थोड़ी ऊँची होनी चाहिए, ताकि उसमें जल न भरे । जैविक पदार्थ में पानी बनाए रखना चाहिए, ताकि जैविक पदार्थ में नमी बनाए रखना चाहिए, ताकि गोबर में गर्मी पैदा न हो । एक घन फुट में 250-300 केंचुओं की आवश्यकता होती है ।

अतः एक क्यारी में लगभग 1500 से 2000 केंचुओं की आवश्यकता होगी । एक किलोग्राम में 1000 से 2000 केंचुए होते हैं । केंचुए बहुत जल्दी निचली सतह में घुस जाते हैं । उन्हें खुले प्रकाश में रहना पसंद नहीं । अतः जैविक पदार्थ को गीले टाट से ढँक देना चाहिए । समय-समय पर पानी की छिड़काव करते रहना चाहिए । 50 से 60 दिन में केंचुआ खाद तैयार हो जाता है । 10 दिन बाद वर्मी कम्पोस्ट अर्थात् केंचुआ खाद को निकाल कर छाँव में सुखा कर बोरों में भर लिया जाता है । एक एकड़ क्षेत्र में एक टन की मात्रा उचित रहती है । यह सब Jaivik Kheti Khad Davaiyan की जानकारी ही सही कुदरती खेती करवातीत है ।

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