Havai Jahaj Ki Khoj हवाई जहाज की खोज कब और किसने की यह जानकारी तथा विजली कितने प्रकार की हौती है यह सब इस लेख में पढने को मिलेगा ।
Havai Jahaj Ki Khoj- Who Discovered the Airplane ?
1903 में विदेशों में आकाश यात्रा का आविष्कार होने से बहुत पहले प्राचीन भारत में इसकी तकनीकी का स्पष्ट उल्लेख अनेक ग्रंथों में आया है ।
दस्तालोष्ठो निघातव्य: पारदाच्छादितस्तत: ।
संयोगोज्जायते तेजो मैत्रावरूणसंज्ञितम् ।।
अनेन जलभंगोस्ति प्राणेदानेषु वायुषु ।
एव शतानां कुंमानां संयोग कार्यकृत्स्मृत: ।।
– अगस्त्य संहिता
अगस्त्य संहिता में बैटरी की शक्ति द्वारा पानी को प्राणुवायु (जुूसशप) एवं उदानवायु (कूवीेसशप) में बदलने तथा उदानवायु द्वारा आकाश छत्र उड़ाने का निर्देश दिया है ।
प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करके जे.जे. स्कुल ऑफ आर्ट्स, मुबंई के एक अध्यापक श्री शिवकर बापु तलपदे ने 1895 में गिरगाँव चौपाटी पर बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़, लालजी नारायण एवं न्यायमूर्ति रानडे की उपस्थिति में हजारों लोगों के सामने अपने विमान ‘मारुतसखा’ द्वारा हवाई उड़ान का सफल प्रदर्शन किया था ।
1864 में मुंबई में जन्मे शिवकर बापूजी तलपडे आर्य समाज के अनुयाई थे. वे शुरुआत से ही पढ़ाई में तेज थे. इसके अलावा भारतीय संस्कृति की पौराणिक ग्रंथों में उनकी विशेष रुचि थी और इन्हीं पौराणिक कथाओं में उन्होंने विमान का जिक्र सुना था. उन्होंने सुना था कि कैसे भगवान के पास एक ऐसा वाहन हुआ करता था जो उन्हें आकाश में उड़ने में सहायता करता था. यूं तो कई सारे भारतीयों ने इसके बारे में पढ़ा था किंतु शिवकर बापूजी ने उस समय इस पर अलग ढंग से गौर किया उन्होंने हजारों साल पहले भारद्वाज ऋषि द्वारा लिखी गई विमानिका शास्त्र किताब को पढ़ा, और उनकी सोच ही बदल गई.
भारत में हजारों साल पहले विमानों का उल्लेख मिलता है रामायण महाभारत के साथ-साथ कई अन्य वैदिक ग्रंथों में भी विमानों के बारे में उल्लेख है. बाकी लोगों के लिए यह बातें केवल एक कल्पना थी लेकिन शिवकर बापूजी ने इन्हें सच समझा और वे लग गए विमान बनाने में. विमान बनाने में सबसे बड़ी चुनौती जो थी वह थी कि जरूरी सामान कहां से लाया जाए. इस परेशानी के पीछे दो कारण थे पहला कारण था कि उनके पास पैसों की काफी कमी थी, सामान बहुत सारा लाना था. और दूसरा कारण था कि यह सब अंग्रेजों की नजर से बचाकर करना था. उन्होंने बांस की लकड़ियों का इस्तेमाल कर विमान बनाना शुरू किया. ईंधन के तौर पर इसमें तरल पारा इस्तेमाल किया गया पारा वजन में हल्का था इसलिए विमान को उड़ाने में परेशानी नहीं होती थी.. अपनी मेहनत और पैसा लगाने के बाद उन्होंने विमान को उसका रूप दे ही दिया. उन्होंने इस विमान का नाम मरूत्सखा रखा ।
साल 1895 की एक सुबह शिवकर बापूजी अपना विमान लेकर मुंबई की चौपाटी पर पहुंच गए. उनके इस आविष्कार को देखने के लिए वहां ना कोई पत्रकार और ना ही कोई वैज्ञानिक मौजूद थे.., वहां थे तो बस बापूजी के कुछ अपने जीन्हे उन पर भरोसा था. उन्होंने अपना विमान उड़ान के लिए तैयार किया मन ही मन सबने उनकी कामयाबी के लिए दुआ की. विमान शुरू हुआ और देखते-देखते वह जमीन से ऊपर उठने लगा. यह देखकर सब हैरान हो गए लोगों ने पहली बार ऐसी मशीन देखी थी कहते कि यह विमान करीब 1500 फिट कि ऊंचाई तक उडा. लेकिन इसके बाद वह नीचे आ गिरा ।
शिवकर बापूजी की कोशिश कामयाब तो थी पर पूरी तरह नहीं वह समझ गए थे कि अगली बार वे इसमें कामयाब हो जाएंगे. लेकिन दोबारा काम शुरू करने के लिए उनके पास बिल्कुल भी पैसा नहीं ।
अंग्रेजों को यह सब चीजें रास नहीं आ रही थी. उन्होंने एक षड्यंत्र रचा रेली ब्रदर्स नामक एक अंग्रेज कंपनी तलपडे जी के पास गई और उन्होंने उनके पास एक प्रस्ताव रखा उन्होंने कहा कि हम विमान बनाने में आप की आर्थिक सहायता करेंगे लेकिन उसके बदले आपको बस विमान का डिजाइन हमें देना होगा. तलपड़े जी होशियार तो थे पर चालाक नहीं. वे अंग्रेजों की इस चाल को समझ नहीं पाए और उनसे समझौता कर बैठे ।
डिजाइन मिलने के बाद रैली ब्रदर्स कंपनी लंदन चली गई और कहा जाता है कि वहां यह डिजाइन राइट ब्रदर्स के हाथ लग गई. अंग्रेजों से धोखा खाने के बाद कुछ दिन में ही तलपड़े जी की भी मृत्यु हो गई. और इस तरह भारत की इस महान खोज का उसके वैज्ञानिक के साथ ही अंत हो गया !
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