Vyavastha Parivartan -हम कहाँ थे, कहाँ आ गये ! संबिधान लागू होने के बाद से आज तक की स्थिति का आकलन यहाँ करेगें ।
Vyavastha Parivartan की जरुरत- हम कहाँ थे- कहाँ आ गये !
अपनी 500 वर्षों की विकास यात्रा में यूरोपीय देशों ने जो मॉडल खड़े किए, उसका घातक परिणाम आज न केवल मनुष्यों को, बल्कि संपूर्ण प्रकृति को भी झेलना पड़ रहा है । हथियारवाद, उपनिवेशवाद, उपभोक्तावाद, भौतिकवाद के रास्ते चलते हुए पश्चिमी सभ्यता ने बदली हुई परिस्थिति में अपनी सर्वोच्चता को बनाये रखने के लिए बाजारवाद का नारा दिया ।
पूँजी को ब्रह्म, मुनाफा को जीवनमूल्य और उन्मुक्त उपभोग को मोक्ष बताया गया । इसके चलते मानव अमानवीय होता गया । लाभोन्माद, भोगोन्माद को मानवजीवन का मूल मान लिया गया । पारम्परिक मानवीय मूल्य नष्ट होते गए और संवेदनशीलता कुंद होती गयी ।
7 वीं शताब्दी के बाद भारत पर मुसलमानों, फ्रांसीसियों, पुर्तगालियों एवं अग्रेजों के लगातार आक्रमण हुए व गुलाम बनाया जाता रहा। 14 अगस्त 1947 को नेहरू तथा अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि माउंटवेटन से सत्ता के बीच हस्तांतरण की संधि (ट्रांसफर ऑफ पॉवर एग्रीमेंट) नाम से एक समझौता किया गया। इसी समझौता के तहत 1947 से आज तक भारत में अंग्रेजी तंत्र चल रहा है । Related Artical- सत्ता हस्तांतरण की संधि | | भारत का कौनसा राज्य अंगेजों का गुलाम नहीं
आज की शिक्षा-व्यवस्था जिसमें भारतीय संस्कार व आध्यात्मिक मूल्यों को पूरी तरह से निकाल दिया गया है। घातक अंग्रेजी चिकित्सा का परवान इतना चढा दिया है कि आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्सा आदि हाशिये पर आ गये हैें, अत्याचार व गुलाम बनाये रखने के लिए अंग्रेजों ने जो कानून व शासन व्यवस्था बनाई थी वह आज भी लागू है । आज की चल रही अर्थव्यवस्था जिसमें पूँजी का विकेन्द्रीकरण न होने से गाँव गरीब हो रहे हैं। विकास के मूल तत्व केवल हवा, जल, जमीन, भूसम्पदा ही नहीं बल्कि पूरी प्रकृति को दाव पर लगा दिया गया है । अनजाने में ईमानदार आदमी भी इस व्यवस्था के कारण भारत के शोषण व भ्रष्टाचार में सहयोगी बन रहा है । यह भी पढें- व्यवस्था परिवर्तन कैसे
भारत में वैदिक परम्परा अनादिकाल से चल रही है। आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास के हर क्षेत्र मेें भारत पूरे विश्व में विश्वगुरु के पद पर आसीन रहा है। हर इंसान के साथ-साथ समग्र प्रकृति के साथ भी हमारा न्यायपूर्ण दृष्टिकोण रहा है। समाज, सत्ता, व्यवस्था व सम्पत्ति में न्यायपूर्ण स्वामित्व व वितरण रहा है।
हमें भारतीय जीवन दर्शन, जीवन लक्ष्य, जीवन मूल्य और जीवन आदर्श के अनुरूप जीवनशैली अपनानी होगी । इसके अनुकूल राजनीति, अर्थनीति, कानून आदि व्यवस्थाओं को परिभाषित व साकार करने की जरूरत है । पिछले लगभग 100 वर्षों से केन्द्रीयकरण, एकरूपीकरण, बाजारीकरण व अंधाधुंध वैश्वीकरण को ही सभी समस्याओं का रामबाण इलाज माना जा रहा है । जो Vyavastha Parivartan की जरुरत हैं ।
इस अंधी मानसिकता से हटकर भारतीय भूमंडल के अनुसार विकेन्द्रीकरण, विविधीकरण, स्थानिकीकरण और बाजार मुक्ति की दिशा में आगे कदम बढ़ाने से ही आज की अपसंस्कृति की सुनामी से बचा जा सकेगा ।
आध्यात्मिकता के बिना भौतिक विकास अंधा व विनाशकारी है।
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Vyavastha Parivartanr- राजनीतिक व्यवस्थाः
भारत के अपने संविधान निर्माण में प्राचीन भारतीय बौद्धिक संपदा का न तो अध्ययन किया और न ही उपयोग । सीधे-सीधे इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस आदि देशों के संविधान को आधार बनाकर मामूली फेर-बदल के साथ, स्वतन्त्र भारत के संविधान के रुप में स्वीकार कर लिया गया है ।
हमारा संविधान स्वदेशी चिन्तन पर आधारित नहीं है, यह हम पर साजिश के तहत आरोपित है । संसद में इंग्लैंड की तर्ज पर लोकसभा एवं राज्यसभा दो सदन बनाये गये । प्रतिनिधियों को वोट के माध्यम से चुनने की बहुदलीय चुनाव प्रणाली आरोपित की गयी । वर्तमान व्यवस्था के चार प्रमुख स्तम्भ विधायिका (संसद), कार्यपालिका न्यायपालिका एवं सूचना तंत्र स्थापित हैं। आजादी के नाम पर हम अंग्रजोेेंके कानूनों की गुलामी में जी रहे हैं ।
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कानून व्यवस्थाः
अंग्रजों ने हमें लूटने, शोषण करने व सदियों तक हमको गुलाम बनाने के लिए जो 34,735 कानून बनाये थे, आज वही कानून चल रहे हैं । आज हमारी न्याय-व्यवस्था अपराधियों में मात्र 5% लोगों को ही दण्ड दे पाती है ।
भ्रष्टाचार से देश का सौ लाख करोड़ रुपये धन स्विस बैंक व अन्य विदेशी बैंकों में जमा हो जाता है ।3% बहन-बेटियों की इज्जत से खेलनी की कोशिश की जाती है । प्रति घण्टा लगभग 2 बेटियों के साथ बलात्कार होता है । हमारी न्याय-व्यवस्था क्या इन अपराधियोंं को दण्ड दे पा रही है ? यह भी पढें- विकास का आतंक
अर्थव्यवस्था:
देश में लगभग 200 लाख करोड़ रुपये की अकूत धन सम्पदा है, परन्तु गलत व्यवस्था के कारण इस पर 1% लोगों का कब्जा हो गया है । आज 10% पूजी 90% लोगों के लिए और 90% पूजी 10% लोगों के लिए प्रयोग की जा रही है । इसी आर्थिक अन्याय के कारण शोषण, लूट आदि चालू हैं । असमान वितरण, भ्रष्टाचार व भारत में लागू विदेशी अर्थनीतियों के परिवर्तन की नितान्त आवश्यकता है । जो Vyavastha Parivartan से ही सम्भव है ।
विदेशी कम्पनियों के हाथों में देश का बाजार सौंपने से लूट, शोषण चालू है और देश का पैसा विदेश जा रहा है। विदेशी कम्पनियों से होनेवाली आर्थिक, चारित्रिक, शारीरिक, सामाजिक व राष्ट्रीय हानियों के बारे में हम सभी देशवासियों को सोचना होगा । Related Artical- बैंकों का असली राज || व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत
Vyavastha Parivartan में शिक्षा व्यवस्था:
आजादी के 68 वर्ष बाद भी सरकार के पास अपना असली इतिहास व ऋषि परम्परा का ज्ञान पाने की उत्तम व्यवस्था नहीं है ।
हमें अपने देश की भाषाओं में उच्च तकनीकी आदि की शिक्षा पाने की व्यवस्था नहीं है । यह हमारी शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी नाकामयाबी है ।
चिकित्सा व्यवस्थाः
65% देश के लोग बीमार होने के बाद उपचार नहीं करा सकते और जो 35% लोग इलाज भी करवाते हैैं उसमें प्रतिवर्ष सात लाख करोड़ रुपये से ज्यादा धन का दोहन मात्र रोगों का नियन्त्रित करने में हो जाता है और इनमें भी लगभग 50% लोग अपनी जमीन-घर बेचकर या गिरवी रखकर इलाज करवाते हैं । यह हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की नाकामयाबी नहीं है तो और क्या है ?
Vyavastha Parivartan- कृषि व्यवस्था:
जहरीले व महंगे खाद व कीटनाशकों ने देश के किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया है । किसान का बीज, कीटनाशक व इन जहरीली खादों को खरीदने में ही अपनी कुल फसल की आय का लगभग 80% खर्च हो जाता है । प्रतिवर्ष रासायनिक खाद व जहरीले कीटनाशकों के नाम पर लगभग 5 लाख लोगों की मौत व दूषित आहारजनित रोगों को नियन्त्रित करने में देश के लगभग 7 लाख करोड़ रुपये बर्बाद हो जाते हैं ।
इस जहरीली खाद से उत्पन्न जहरीला अन्न खाकर देश के 125 करोड़ लोगों की जिंदगी में खतरनाक रोग पैदा हो गये हैं । भारत में आज की चल रही अंगे्रजी व्यवस्था के कारण लगभग 58 किसान हर रोज मर रहे हैं ।
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