Vartaman Vaishvik Vyavastha में वर्ष 2021 विदेश नीति उद्देश्यों की पूर्ति के दृष्टिकोण से कई चुनौतियाँ और अवसर लेकर आया है। नए परिदृश्यों में नई सोच की आवश्यकता होती है। वर्तमान वैश्विक व्यवस्था की बदलती हुई गतिशीलता के मद्देनज़र भारत को सुचिंतित कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
Vartaman Vaishvik Vyavastha | वर्तमान वैश्विक व्यवस्था
- वर्तमान में विश्व एक असंतुलन और दिशाहीनता का शिकार है। हम न तो द्विध्रुवीय शीत युद्ध की स्थिति में हैं और न ही एक बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर आगे बढ़ रहे हैं ।
- वैश्वीकरण से पीछे हटना और संरक्षणवाद, व्यापार का क्षेत्रीयकरण, शक्ति संतुलन का स्थानांतरण, चीन एवं अन्य शक्तियों का उदय और चीन-संयुक्त राज्य अमेरिका की रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता जैसे कारकों ने विश्व के भू-राजनीतिक और आर्थिक गुरुत्व केंद्रों को एशिया की ओर स्थानांतरित कर दिया है।
- राज्यों के बीच और उनके अंदर असमानता की स्थिति ने एक संकीर्ण राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद को जन्म दिया है। हम एक नए ध्रुवीकृत युग में प्रवेश कर रहे हैं और ‘एंथ्रोपोसीन’ युग के पारिस्थितिक संकटों का सामना कर रहे हैं । यह भी पढें- व्यवस्था परिवर्तन कैसे
आगे की राह
- अनिश्चितता और लगातार बदलता भू-राजनीतिक माहौल स्पष्ट रूप से भारतीय नीति के लिये उल्लेखनीय चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं, यहीं भारत के लिये कुछ अवसर भी उपलब्ध हैं, जो भारत के रणनीतिक विकल्पों एवं कुटनीतिक अवसरों के दायरे का विस्तार कर सकते है, यदि हम विशेष रूप से भारतीय उप-महाद्वीप में आंतरिक और बाह्य रूप से अपनी नीतियों को समायोजित कर सकें।
- ‘आत्मनिर्भरता’ का महत्त्व: विदेशों में अपनी भूमिका और प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये भारत कई कदम उठा सकता है, जो भारत के विकास में मददगार हो सकते हैं। आर्थिक नीति को राजनीतिक और रणनीतिक संलग्नता से सुमेलित किया जाना चाहिये।
- वैश्वीकरण की भारत के विकास में केंद्रीय भूमिका रही है। भारत के लिये एक अधिक सक्रिय क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भूमिका वैश्विक अर्थव्यवस्था के हाशिये पर रहकर नहीं पाई जा सकती।
- वर्तमान विश्व में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को वैश्विक अर्थव्यवस्था का अंग होकर ही साकार किया जा सकता है। हमें चीन की नकल नहीं करनी चाहिये, जहाँ एक सभ्यतागत देश होने और ‘विक्टिम’ होने के दावे के साथ आगे बढ़ा जा रहा है। इसके बजाय हमें अपनी स्वयं की शक्ति और ऐतिहासिक राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करनी चाहिये।
- भारत को एशिया में बहुध्रुवीयता की स्थापना का लक्ष्य रखना चाहिये।
- संक्षेप में, भारत के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव के मूलभूत स्रोतों की रक्षा करने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता एक अत्यंत आवश्यक पूर्व शर्त है। भारत को एक मज़बूत, सुरक्षित और समृद्ध देश में बदलने के लिये हम जिस बाह्य पथ पर आगे बढ़ना चाहते हैं, हमारा आंतरिक प्रक्षेप पथ उससे अलग नहीं रखा जा सकता।
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