EVM Se Chhedchhad का मतलब गुप्त प्रोग्राम से छेड़छाड़ मनचाहे परिणाम प्राप्त करने के लिए यह सबसे सुरक्षित और आसान तरीका है । यह यहाँ देखेगें ।
EVM Se Chhedchhad- EVM से छेड़छाड़ के कई तरीके
EVM Se Chhedchhad- (क) मशीनों में ट्रोजन वायरस डालना :
ट्रोजन वायरस को सिर्फ मशीन का वह बटन पता होना चाहिए जो फायदा पहुँचनेवाले प्रत्याशी को दिया जाना है । जाहिर है कि यह बटन अलग-अलग चुनाव-क्षेत्रों में अलग-अलग जगह पर होगा लेकिन हैकर्स को विभिन्न बटन कॉम्बिनेशन से सिर्फ यह सुनिश्चित करना होगा कि सॉफ्टवेयर जान सके कि वह बटन कौन-सा है ?
EVM Se Chhedchhad- (ख) माइक्रो वायरलेस ट्रांसमीटर / रिसीवर फिट करना :
EVM की यूनिट में रिमोट कंट्रोल द्वारा संचालित वायरलेस ट्रांसमीटर/रिसीवर चिपकाया जा सकता है । मशीनों में छेड़छाड़ करके मनचाहे परिणाम प्राप्त करने के लिए यह सबसे सुरक्षित और आसान तरीका हो सकता है ।
कम्पनी द्वारा तैयार यह बेहद माइक्रोचिप किसी भी कागज, किताब, टेबल के कोने या किसी अन्य मशीन पर आसानी से चिपकाई जा सकती है और यह किसीको दिखेगी भी नहीं । इस चिप में ही इन-बिल्ट मोडेम, एंटीना, माइक्रो प्रोसेसर और मेमोरी शामिल है । इसके द्वारा 100 पेज का डाटा 10 MB की तीव्रता से भेजा और पाया जा सकता है । यह रेडियो आवृत्ति, (Frequency) उपग्रह और ब्लूटुथ की मिली-जुली तकनीक से काम करती है, जिससे इसके उपयोग करनेवाले को इसके आसपास भी मौजूद रहने की आवश्यकता नहीं है । यंत्रचालक (Operator) कहीं दूर बैठकर भी इसे मोबाइल या किसी अन्य साधन से क्रियान्वित कर सकता है । इसलिए इस माइक्रो वायरलेस ट्रांसमीटर/रिसीवर के जरिये वोटिंग मशीन की कंट्रोल यूनिट को विश्व के किसी भी भाग में बैठकर संचालित और नियंत्रित किया जा सकता है ।
इस माइक्रोचिप को किसी मरीज की कलाई में लगाकर उसका सारा रिकॉर्ड विश्व में कहीं भी लिया जा सकता है, विभिन्न फोटो और डॉक्यूमेंट भी इसके द्वारा पलभर में पाये जा सकते हैं । जब ओसामा बिन लादेन द्वारा उपयोग किये जा रहे फोन की तरंगों को पहचानकर अमेरिका, ठीक उसके छिपने की जगह मिसाइल दाग सकता है, तो आज के उन्नत तकनीकी के जमाने में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के द्वारा कुछ भी किया जा सकता है ।
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EVM (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की असलियत
EVM Se Chhedchhad- (ग) वोटिंग मशीन की गुप्त प्रोग्राम से छेड़छाड़ :
वोटिंग मशीन में जो चिप पर मतगणना का प्रोग्राम रखा जाता है उसे ना ही कोई पढ़ सकता है और ना ही कोई उसका अध्ययन कर सकता है। यहाँ तक कि चुनाव आयोग भी उस प्रोग्राम को खोलकर देख नहीं सकते और अब अगर कोई अपराधी, एक बहुरूपिया चिप बनाकर मशीन में डाल दे तो कोई भी जाँचे बिना बता नहीं सकता।
चुनाव प्रारम्भ होने से पहले एक कृत्रिम मतगणना की जाँच होती हैयह पता करने के लिए कि यंत्र ठीक से काम कर रहे हैं कि नहीं । लेकिन यह बहुत साधारण जाँच है । चुनाव-यंत्र का प्रोग्राम कुछ ऐसा भी किया जा सकता है कि सैंकड़ों मत दर्ज होने के बाद ही वह मतगणना में बेईमानी करे। चुनाव के दौरान सब कुछ सामान्य प्रतीत होगा परंतु वास्तविक परिणाम बेईमान होंगे।
यह भी कहा जाता है कि उम्मेदवारों के क्रम पहले से निर्धारित नहीं होते । ऐसा माना जाता है कि इससे बेईमानों को छेड़छाड़ करने को ज्यादा समय नहीं मिलेगा । अगर हमने मशीन के भीतर ब्लूटुथ यंत्र छिपाया है तो हम मोबाइल फोन के एक खास प्रोग्राम से चुनाव-यंत्र को संकेत भेजकर अपने उम्मेदवार को जिता सकते हैं।
चुनाव आयोग ने राजनैतिक दलों, सुप्रिम कोर्ट के वरिष्ठ वकिल, हरि प्रसाद तथा आयोग की तरफ से टेक्निकल एक्पर्ट प्रोफेसर इन्द्रसेन आदि की हुई बहस का कुछ अंश ।
हरिप्रसाद : ‘‘निर्वाचन आयोग जिस ढंग से EVM की जाँच करता है उसमें कोई भी ऐसा उपाय नहीं है जिससे पता चले कि हैकर (Hacker)) ने EVM मशीन के अंदर माईक्रोचिप या इसके मदर बोर्ड को बदल दिया है या नहीं ।’’
प्रोफेसर इन्द्रसेन : ‘‘मैं मानता हूँ कि सिद्धांतिक रूप से यह सम्भव है लेकिन क्या कोई भी पूरे भारत की 13.8 लाख EVM मशीनों के माईक्रोचिप बदल सकता है ?’’
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गलत तरीके से चुनाव जीतने के लिए कितने मत चाहिए
गलत ढंग से चुनाव जीतने के लिए पूरे भारत में EVM मशीनों में गड़बड़ी की आवश्यकता नहीं है । किसी भी चुनाव की जीत-हार केवल थोड़े-थोड़े अंतर से होती है । 2009 के लोकसभा चुनावों में 164 सीटें केवल 4% के अंतर जीती गयी थीं, इनमें से 26 सीटें उत्तरप्रदेश में थीं, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में 15-15 सीटें थी, गुजरात में 13 सीटें थी, तमिलनाडु में 11 सीटें थी और कर्नाटक में भी 11 सीटें थीं ।
लोकसभा चुनावों में ऐसे थोड़े-थोड़ेे अंतर से जीतवाले चुनाव क्षेत्रों में 10,000 मतों को इधर-उधर करना किसी भी दौड़ के धावक को विजयी बना सकते हैं । काँटे की टक्करवाले विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में केवल 1200 मतों को इधर-उधर करना ही आपका काम बना देगें ।
काँग्रेस ने पूर्णबहुमत की 300 सीटों पर धोखाधड़ी क्यों नहीं की ?
सन् 2009 में ये भी सवाल उठाये गये थे कि ‘यदि काँग्रेस पार्टी ने ऐसी गड़बड़ी की होती तो क्यों नहीं 300 सीटों पर धोखाधड़ी की ताकी पूर्ण बहुमत आ जाता ?’ इसका उत्तर यही है कि धाँधली करने की भी एक सीमा होती है, जब महँंगाई अपनी चरम सीमा पर हो, आतंकवाद का मुद्दा सामने हो तब काँग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल जाय तो सभीको शक हो जायेगा, इसीलिए चतुराईपूर्ण गड़बड़ी की गयी कि शक न हो सके ।
काँग्रेस को गड़बड़ी करने की आवश्यकता सिर्फ 150 सीटों पर ही थी क्योंकि बाकी बची 390 सीटों में से क्या काँग्रेस 50 सीटें भी न जीतती ? कुल मिलाकर हो गयीं 200, इतना काफी है सरकार बनाने के लिए ।
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