वैदिक काल में भारतीय संसकृति के शास्त्रों में Vayuyan v Nauka का वर्णन आता है । इसका उपयोग प्राचीन काल से ही चला आ रहा है ।
Vayuyan v Nauka- Who Invented the Aircraft and Boat ?
वायुयान | Aircraft
भरद्वाज ऋषि के अनुसार नारायण, शंख, विश्वम्भर आदि आचार्यों ने विमान की व्याख्या इस प्रकार दी है –
पृथ्वीव्यप्स्वन्तरिक्षेषु, खगवद् वेगात: स्वयं ।
य: समर्थो भवेद् गन्तुमर्हति ।
देशाद्-देशान्तर् तद्वद्, द्वीपाद-द्वीपान्तरन्तरं तथा ।
लोकात् लोकान्तरं चापि, योम्बरे गन्तुमर्हति ।
स विमान इति प्रोक्त:, खेटकशास्त्र विशारदे ।।
ये विमान पृथ्वी, जल और अंतरिक्ष तीनों में चल सकते हैं । इनके द्वारा देश-देशान्तर और द्वीप-द्वीपान्तर और विभिन्न लोकों की यात्रा की जा सकती है ।
वेद, रामायण आदि प्राचीन ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के विमानों का वर्णन है । परन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से विमान का वर्णन ‘समरांगण सूत्राधार’ के इकत्तीसवें अध्याय में मिलता है । इसमें विशालकाय विमान के वर्णन में कहा गया है कि यह हल्की कठोर लड़की का बना होता था, इसमें दो बड़े पंख होते थे । इसके उदरभाग में रसयंत्र ‘पारा’ से भरे हुए चार दृढ़ घड़े रखे जाते थे । उसके नीचे अग्निपूर्ण कुंभ ‘भट्टी’ रखा जाता थ । आग के द्वारा पारा तपता था और उसकी शक्ति से विमान चलता था । युक्तितरु ग्रंथ का भी कहना है कि प्राचीन समय में राजाओं के पास विमान थे ।
महर्षि भरद्वाज कृत ‘यंत्र सर्वस्व’ ग्रंथ के आधार पर सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली ने ‘वृहद् विमानशास्त्र’ नामक ग्रंथ प्रकाशित किया है । इसमें विमानों के रचना, विमानों के भेद, रहस्य, विमान के विविध यंत्र, प्रत्येक स्थान के लिए दिशा-निर्देश आदि का बहुत विस्तार से वर्णन है । इसमें वर्णित कुछ यंत्र आदि अद्भुत हैं, इनकी तुलना आधुुनिक रेडियो, वायरलेस, टेलीविजन, टेलीपैथी आदि से की जा सकती है । 344 पृष्ठ के इस ग्रंथ में पूर्ववर्ती वैज्ञानिक ग्रंथों का यथास्थान संदर्भ दिया गया है । ऐसे वैज्ञानिक ग्रंथों की संख्या 97 है ।
इनक ग्रंथों का अध्ययन करके जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट के अध्यापक श्री शिवकर बापू तलपदे ने राइट ब्रदर्स (1903) से 8 वर्ष पहले 1895 में बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़, लालजी नारायण, न्यायमूर्ति रानडे आदि की उपस्थिति में हजारों लोगों के सामने अपने बनाए विमान ‘मरुत्सखा’ को उड़ाकर दिखाया था ।
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नौका निर्माण | Boat Building
वैदिक काल भारत विश्वव्यापि व्यापार में अग्रणि देश रहा है । बड़ी-बड़ी नौकाओं द्वारा परिवाहन तथा माल ढुलाई का कार्य किया जाता था । वेदोत्तर शिल्प शास्त्र में नौंका निर्माण में प्रयुक्त होने वाली विभिन्न प्रकार की लकडिओं,नाव की लम्बाई चौड़ाई के आधार पर उनके नामों,सजावट तथा उनके संचालन के तरीकों का वर्णन हैं ।
कई देश- विदेशी विद्वानों ने भारतीय जहाजों की मजबूती तथा माल ढोने की क्षमता के बारें में बहुत कुछ लिखा है ।
पढाया जाता हैं वास्कों-ड़ी-गामा ने भारत खोज, परन्तु स्पन में रखी वास्कों ड़ि-गामा की ड़ायरी में उल्लेख है कि वह यूनान से भारतीय व्यापारी स्कंदगुप्त के बहुत बड़े जहाज के पीछे पीछे चलकर भारत आया था । सैंकड़ों वर्षा पुराने लोथल के बंदरगाह तथा देशी – सैकड़ों वर्षो पुराने लोथल ने बंदरगाह तथा देशी-विदेशी अभिलेख भारतीय नौवहन की गौरव गाथा कह रहे हैं । अंग्रेजों के काल तक नौका निर्माण में भारत सबसे आगे माना जाता था । बाद मे षड़यंत्रपूर्वक अंग्रेजों ने इसे नष्ट कर दिया ।
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