ज़ेवियर ने हिन्दुओं के दमन के लिए नीतियाँ आदि बनाकर दंडित किया। Sent Jeviar ki Kroorata का तांडव भारत में खुलेआम होने लागा । गोवा में इसके न्रिसिंग हत्या का इतिहास आज भी देखने को मिलता है । इन सब का अध्यन यहाँ करेगें ।
Sent Jeviar ki Kroorata | सेंट जेविअर की क्रूरता
फ्रांसिस ज़ेवियर के नाम पर आज देशभर में कई स्कूल कॉलेज, संगठन और गिरजाघर मौजूद हैं। इसाई मिशनरी धर्म प्रचारक सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर (Francis Xavier) पुर्तगाली काफिले के साथ भारत आया था। उसने भारत पहुँचकर ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। वह ‘सोसायटी ऑफ जीसस’ से जुड़ा था।
16 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, दक्षिण भारत से होने वाले मसालों के व्यापार ने भारतीय बंदरगाह को एक बहु-सांस्कृतिक शहर में बदल दिया। देखते ही देखते पुर्तगालियों ने खुद को यहाँ सत्ता में स्थापित कर लिया। पुर्तगालियों ने सुनिश्चित किया कि वहाँ के स्थानीय लोग भी अब उनके जैसी ही धार्मिक मान्यताओं का पालन करें। वर्ष 1541 में इसाई मिशनरियों द्वारा फरमान सुनाए गए कि सभी हिंदू मंदिरों को बंद कर दिया जाए। इसके बाद, 1559 तक आते-आते तकरीबन 350 से अधिक हिन्दू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था और मूर्ति पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
सेंट ज़ेवियर ने देखा कि उसके हिन्दुओं के बलात धर्म परिवर्तन के प्रयास पूरी तरह से कामयाब नहीं हो रहे थे। उसे समय रहते यकीन होता गया कि सनातन धर्म की आस्था अक्षुण्ण है। यदि वह मंदिरों को नष्ट करता है तो लोग घरों में ही मंदिर बना लेते हैं। उसने देखा कि लोगों को धारदार हथियारों से काटने, उनके हाथ और गर्दन रेतने और असीम यातनाको देने के बाद भी फेनी (सस्ती शराब) और सनातन धर्म में से लोग सनातन धर्म को ही चुनते और मौत को गले लगा लेते।
निराश होकर ज़ेवियर ने रोम के राजा को पत्र लिखा जिसमें उसने हिन्दुओं को एक अपवित्र जाति बताते हुए उन्हें झूठा और धोखेबाज लिखा उसने कहा कि उनकी मूर्तियाँ काली, बदसूरत और डरावनी होने के साथ ही तेल की गंध से सनी हुई होती हैं।
फ्रांसिस ज़ेवियर ने मई 1546 में पुर्तगाली राजा को गोवा के इंक्विज़िशन के लिए मूल अनुरोध भेजा था। जेवियर के अनुरोध से तीन साल पहले, पुर्तगाल के भारतीय उपनिवेशों में अधिग्रहण शुरू करने की अपील विकर जनरल मिगुएल वाज़ (Vicar General Miguel Vaz) द्वारा भेजी गई थी। इंडो-पुर्तगाली इतिहासकार टोटोनियो आर डी सूजा के अनुसार, मूल अनुरोधों के निशाने पर “मूर” (मुस्लिम), नए ईसाई और हिंदू थे, और इसने गोवा को कैथोलिक पुर्तगालियों द्वारा संचालित उत्पीड़न नरक बना डाला।
इसके बाद हिन्दुओं पर यातनाओं का सबसे बुरा दौर आया। फ्रांसिस ज़ेवियर ने गोवा का पूर्ण अधिग्रहण किया। हिन्दुओं के दमन के लिए एक धार्मिक नीतियाँ बनाई और यीशु की कथित सत्ता में यकीन ना करने वाले ‘नॉन-बिलीवर्स’ को दंडित किया जाने लगा।
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Sent Jeviar ki Kroorata का इतिहासः
इंक्विज़िटर का पहला कृत्य हिंदू आस्था के अनुसार खुले तौर पर अंतिम संस्कार करने पर प्रतिबंध लगाना था। इंक्विज़िशन द्वारा लगाए गए अन्य प्रतिबंधों में शामिल हैं:
- हिंदुओं के किसी भी सार्वजनिक कार्यालय में पद ग्रहण करने पर पाबंदी लगाई दी गई, अब केवल एक ईसाई ही इस तरह के पद पर नियुक्त हो सकता था।
- हिंदुओं के किसी भी ईसाई धर्म से सम्बंधित भक्ति वस्तुओं या प्रतीकों का उत्पादन करने पर पाबंदी लगाई गई।
- वे हिंदू बच्चे जिनके पिता की मृत्यु हो गई थी, उन्हें अब ईसाई धर्म परिवर्तन के लिए जेसुइट्स को सौंपने का प्रावधान लागू किया गया। यह पुर्तगाल से 1559 के एक शाही आदेश के तहत शुरू हुआ, इसके बाद कथित रूप से अनाथ हिंदू बच्चों को सोसाइटी ऑफ जीसस द्वारा जब्त कर लिया जाता और उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया। यह कानून उन बच्चों पर भी लागू किया गया था जब उनकी माँ उस समय जीवित थी, और कुछ मामलों में तो तब भी जब उनके पिता जीवित हों। हिंदू बच्चे को जब्त करने पर पैतृक संपत्ति भी जब्त कर ली जाती थी। कुछ मामलों में, जैसा कि लॉरेन बेंटन बताते हैं, पुर्तगाली अधिकारियों ने “अनाथों की वापसी” के लिए पैसा वसूलना शुरू कर दिया था।
- वे हिंदू महिलाएं जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गईं, वे अपने माता-पिता की सभी संपत्ति को प्राप्त कर सकती थीं;
- सभी ग्राम सभाओं में हिंदू लिपिकों को हटाकर ईसाईयों को नियुक्त दिया गया;
- क्रिश्चियनगांवकार गाँव बिना किसी हिन्दू गांवकार की उपस्थिति में गाँव-सम्बंधी निर्णय ले सकते थे, किंतु हिन्दू गांवकार तब तक कोई गाँव निर्णय नहीं ले सकते थे जब तक कि सभी ईसाई गांवकार वहाँ मौजूद न हों; गोवा के जो गाँव ईसाई-बहुल थे, वहाँ हिंदुओं के गाँव की सभाओं में जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी।
- किसी भी कार्यवाही पर पहले हस्ताक्षर ईसाई सदस्यों को करना होता था, हिंदुओं को बाद में;
- कानूनी कार्यवाही में, हिंदू गवाह के रूप में अस्वीकार्य थे, केवल ईसाई गवाहों के बयान स्वीकार्य थे।
- पुर्तगाली गोवा में हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था, और हिंदुओं को नए मंदिर बनाने या पुराने मंदिरों की मरम्मत करने से मना किया गया था। जेसुइट्स ने एक मंदिर विध्वंस दल का गठन किया था, जिसने 16 वीं शताब्दी से पूर्व बने मंदिरों को ध्वस्त कर दिया था। जिसमें 1569 में एक शाही फ़रमान आया था, जिसमें यह आदेश था कि भारत में पुर्तगाली उपनिवेशों में सभी हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करके जला दिया जाये (desfeitos e queimados);
- हिंदू पुजारियों के पुर्तगाली गोवा में हिंदू शादियों में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी गई।
1560 से 1774 तक, कुल 16,172 व्यक्तियों पर इंक्विज़िशन ने मुक़द्दमा चलाया। हालांकि इसमें विभिन्न राष्ट्रीयताओं के व्यक्ति भी शामिल थे, किंतु अधिकतर (लगभग तीन चौथाई) मूल निवासी भारतीय थे, और इनमें कैथोलिक और गैर-ईसाइयों की संख्या लगभग बराबर थी। इनमें से कुछ को सीमा पार करने और वहां की जमीन पर खेती करने के लिए गिरफ़्तार किया गया था।
लॉरेन बेंटन के अनुसार, 1561 और 1623 के बीच, गोवा के अधिग्रहण में 3,800 मामले आए। यह एक बड़ी संख्या थी क्योंकि 1580 के दशक में गोवा की कुल जनसंख्या ही लगभग 60,000 थी, जिसमें से अनुमानित हिंदू आबादी के साथ लगभग एक-तिहाई या 20,000 थी।
अक्टूबर, 1560 तक आम जनता के जिन्दा रहने और उनके मरने से लेकर उनके भाग्य का फैसला ईसाई प्रीस्ट (पुजारियों) के हाथों में आ गई। यह सभ्यता की आड़ में आस्था का बेहद क्रूर और वीभत्स अधिग्रहण था। लोगों को ईसाई बनाने के लिए बर्बर हिन्दू-विरोधी कानून लाए गए।
धर्मांतरण के लिए लोगों को ‘विश्वास के कार्य’ (ऑटो-दा-फ़े) की प्रक्रिया से गुजरना होता था, जिसमें नृशंस यातनाएँ दी जाने लगीं। इसके लिए लोगों को रैक पर खींचकर या सूली पर जलाया जाता था। बच्चों को उनके माता-पिता के सामने अंग-भंग किया जाता और उनकी आँखें तब तक खुली रहती थीं, जब तक वे धर्मपरिवर्तन के लिए सहमत नहीं होते थे।
इस घटना के बारे में लिखने वाले इतिहासकारों को भी सख्त यातनाएँ दी गईं। उन्हें या तो गर्म तेल में डालकर जलाया जाता या फिर जेल भेज दिया जाता। ऐसे ही कुछ लेखकों में फिलिपो ससेस्ती, चार्ल्स देलोन, क्लाउडियस बुकानन आदि के नाम शामिल थे। इतिहास में पहली बार हिन्दू भागकर बड़े स्तर पर प्रवास करने को मजबूर हो गए।
मौत का वह स्तम्भ जहाँ जेवियर के अनुयायी हिन्दुओं को काट दिया करते थे
ओल्ड गोवा के कई स्मारकों और संरचनाओं के बीच, पेलोरिन्हो नोवो (Pelourinho Novo/नया स्तंभ) नाम का एक काले बेसाल्ट स्तंभ इतिहास के काले अध्यायों का साक्षी है। गोवा के शोक की कहानी कहता यह स्तम्भ वर्तमान में राजमार्ग पर एक प्रमुख जंक्शन पर स्थित है।
स्थानीय भाषा में इस पेलोरिन्हो नोवो को ही ‘हाथ काटरो खम्भ’ (Hatkatro Khambo) कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है – ऐसा स्तंभ जहाँ हाथों को काटा जाता था। दुर्भाग्य यह है कि समकालीन स्मारकों के विपरीत, यह स्तंभ आज तक भी एक संरक्षित स्मारक नहीं है। यानी यह न तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और न ही अभिलेखागार और पुरातत्व निदेशालय, सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।
कहा जाता है कि यह स्तंभ एक प्राचीन मंदिर का एक अवशेष है और इसके कुछ हिस्सों से प्रतीत होता है कि यह कदंब राजवंश से सम्बंधित है और इसे पुर्तगालियों ने कई मंदिरों को तोड़कर अपने दरवाजे और खिड़की की सजावट में इस्तेमाल किया था।
इस पर मौजूद शिलालेख इस बात की भी पुष्टि करते हैं कि यह मूल रूप से किसी पुराने मंदिर का स्तंभ था, या संभवत यह प्रसिद्ध सप्तनाथ शिव मंदिर का हिस्सा था।
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