Gaumutra Chikitsa | गौमूत्र चिकित्सा | Cow Urine Therapy

Written by Rajesh Sharma

📅 February 23, 2022

Gaumutra Chikitsa

सर्वश्रेष्ठ है Gaumutra Chikitsa, इसके सेवन की सही रीत व किस रोग में कैसे उपयोग होता है यह सब जानकरारियाँ यहाँ दी जा रही है ।

गौमूत्र चिकित्सा | Gaumutra Chikitsa | Cow Urine Therapy

गौमूत्र विषाणुनाशक, रक्तविकार व वात-पित्त कफजन्य विकारों को दूर करने वाला एक श्रेष्ठ एवं पवित्र रसायन द्रव्य है । यह कायिक, मानसिक दोनों प्रकार के रोगों का नाश करता है । गोझरण प्रतिजैविक (एन्टीबायोटिक) है तथा सत्त्वगुण की वृद्धि करता है । यह शरीर में श्वेत रक्तकणों की वृद्धि कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । इसके सेवन से शरीरगत विष मल-मूत्र व पसीने के द्वारा बाहर निकल जाते हैं । Gaumutra Chikitsa ka यह बहुत बढा फायदा है ।

गोझरण शरीर के लिए आवश्यक  विटामिन ए, बी, सी, डी और इ की पूर्ति करता है। इसके सेवन से प्राणशक्ति बढ़ती है। यह गुर्दे-संबंधी रोग दूर कर गुर्दे की सक्रियता और क्षमता को बढ़ाता है ।Gaumutra Chikitsa

कब्ज निवारक :

गोझरण कब्जियत मिटाकर आँतों की दीवारों पर जमे हुए वर्षों पुराने मल को दूर कर देता है । मूत्र-विसर्जन के समय पीड़ा होना, पेशाब रुक-रुककर आना अथवा बारम्बार जाना। शिथिलता का अनुभव होना। ये सभी तकलीफें गोझरण के सेवन से दूर होती हैं व स्नायु सक्रिय होते हैं। ज्यादा कब्जियत हो तो गोझरण में दो से तीन ग्राम छोटी हर्रे (हरड़) का चूर्ण मिलाकर 45 दिन तक निरंतर लें। इसके आधे घंटे पूर्व व बाद में कुछ न लें ।

कृमिनाशक :

गोझरण कृमिनाशक है । 10 से 25 मि.ली. गोझरण बालकों को देने से उनके पेट के तमाम कृमि नष्ट हो जाते हैं। (बड़ों को 50 मि.ली.)।

अपच-मंदाग्नि :

मंदाग्नि के मरीजों को आहार नहीं पचता, भूख नहीं लगती, पेट भारी लगता है, बेचैनी और सुस्ती रहती है। मंदाग्नि के मरीजों को 50 मि.ली. गोझरण में एक चम्मच सोंठ, आधा चम्मच पीपरामूल तथा दो चम्मच शहद डालकर लेना चाहिए । यह प्रयोग 45 दिन तक करें ।

दर्दशामक :

गोझरण में दर्दशामक तत्त्व प्रचुर मात्रा में हैं। इसके  उपयोग से घुटनों के दर्द, कमरदर्द, सिरदर्द, स्नायुदर्द आदि अनेक प्रकार के दर्दों में राहत देता है। स्नायुओं के दर्द में गोझरण की मालिश की जाय तो राहत मिलती है। दाँत के दर्द में इसके कुल्ले करने से राहत मिलती है।

घुटनों का दर्द व संधिवात :

दो चम्मच एरंड का तेल और एक चम्मच सोंठ का चूर्ण गोझरण में डालकर गरम करके खूब हिलाने के बाद लें, इससे तकलीफें दूर हो जाती है ।

जीभ के रोग :

तम्बाकू आदि व्यसन अथवा अन्य किसी कारण से स्वाद या रस को पहचान नहीं सकते हों तो गोझरण के कुल्ले करने से स्वादेन्द्रिय सचेत हो जाती है।

आँख :

छाना हुआ गोझरण पीने और नेत्रों में डालने से नेत्रज्योति बढ़ती है। चश्मे के नंबर कम होते हैं । आँख में से पानी बहना, आँख लाल होना आदि रोग दूर होते हैं। गाय का घी नेत्रों में आँजने से नेत्रज्योति चमत्कारिक रूप से बढ़ती है।

कान :

छाना हुआ गोझरण पीने और कान में डालने से कान का मैल दूर होता है, मवाद बहना, कान की खुजली आना बंद हो जाती है तथा श्रवणशक्ति बढ़ती है।

त्वचारोग :

गोझरण पीने और गोमय (गोबर का रस) व गोमूत्र मिलाकर मालिश करने से त्वचा के छिद्र खुल जाते हैं, चर्मरोग दू होते हैं और पसीने का नियंत्रण होता है।

मोटापा नाशक :

गोझरण वात और कफ का नाश कर त्वचा के नीचे एकत्र हुई चर्बी को पिघलाकर मोटापा कम करता है। शरीर को पतला व सुडौल बनाता है। मोटापा कई रोगों का मूल है।

रक्तवसा (कोलेस्ट्रोल) नियंत्रण :

गोझरण में अनेक प्रकार के अम्ल (एसिड) व सुपाच्य यूरिक क्षार होते हैं जो अतिरिक्त रक्तवसा (कोले- -स्ट—ोल) को दूर करके रक्त को स्वच्छ, जंतुरहित तथा पतला रखते हैं ।

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गौमूत्र चिकित्सा विशेष

* उत्कृष्ट रोगाणुरोधक (एंटीसेप्टिक) : शरीर के घावों को गोमूत्र द्वारा धोने से अथवा जले हुए स्थानों पर गोझरण लगाने से वे पकते नहीं हैं। घाव पर गोझरण की पट्टी करने से घाव के जन्तुओं का नाश हो जाता है।

* प्रभावशाली कीटाणुनाशक : गोझरण में 16 प्रकार के अम्ल (एसिड) पाये जाते हैं जो वातावरण को जंतुरहित करके पवित्र व आरोग्यप्रद बनाते हैं। इसलिए हिंदू धर्म के सभी 16 संस्कारों व धार्मिक कार्य करने से पहले गोझरण व गोबर का उपयोग किया जाता है।

* उत्तम विषनाशक : विषैली रासायनिक खाद और जंतुनाशक दवाओं के कारण अनाज, साग-सब्जी, फल आदि विषैले बनते हैं जिन्हें खाने से शरीर में भी विष पहुँच जाता है। एलोपैथी की दवाओं के कारण भी शरीर में जहर उत्पन्न होता है। ये सभी प्रकार के विष शरीर में जमा होकर कालांतर में कैंसर आदि जैसे घातक रोगों को जन्म देते हैं। ऐसी सभी विष का शमन करने में गोझरण सफल है।

* यकृत-रक्षक : गोझरण यकृत (लीवर) के लिए एक असरकारक व बलप्रदायक औषध है। यकृत कमजोर होने से पीलिया जैसे रोग होने की संभावना रहती है। गोझरण यकृत के रोगों को मिटाकर उसकी कार्यप्रणाली को नियमित करके उसे कार्यशील बनाता है ।

* ग्रंथि भेदन : गोझरण में अनेक प्रकार के अम्ल(एसिड) होने के कारण कैंसर की गाँठों को चाहे वे रक्त में मिश्रित हों, चाहे मस्तिष्क में हों या शरीर के अन्य किसी भाग में हों, उन्हें पिघलाने में मदत करते हैं। ये एसिड गुर्दे अथवा मूत्राशय की पथरी को भी पिघलाकर शरीर से बाहर निकाल देते हैं।

* मस्तिष्क बलदायक : गोझरण ज्ञानतंतुओं को कार्यशील और गतिशील बनाता है जिससे स्मरणशक्ति और बुद्धिशक्ति में बढ़ोतरी होती है। यह दिमाग को शक्ति देता है। अपस्मार या मिर्गी जैसे दिमाग के रोगों को दूर करने में गोझरण मदद करता है।

* मधुमेह : दिन में 3 बार 50 मि.ली. गोझरण लें । मीठे पदार्थों का त्याग करें । चावल, आलू, तले हुए तथा स्निग्ध पदार्थ न लें । सुबह-शाम एक-एक घंटा तेज गति से चलें तथा योगासन, कसरत या सूर्यनमस्कार करें ।

* त्वचा के रोग (सोराइसिस, दाद-खाज-खुजली) : त्वचा के रोगों के लिए गोझरण और गोबर अकसीर इलाज है । सर्वप्रथम गोझरण से मालिश करके बाद में गाय के गोबर से मालिश करें । फिर उसका मोटा लेप करें । मंद धूप में आधे घंटे तक बैठें । पुनः गोझरण से मालिश करें । एक घंटे के बाद नीम के पत्ते डालकर उबाले हुए गर्म पानी से स्नान करें । सुबह-शाम 50 मि.ली. गोझरण पीये। भोजन में खट्टे तले हुए पदार्थ न लें । थोड़े दिन नमक बंद रखें अथवा कम लें ।

इसे भी पढें- 

  1. गौमूत्र चिकित्सा
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गोझरण उपयोग में सावधानियाँ- Gaumutra Chikitsa Ki

केवल देशी स्वस्थ गाय का ताजा झरण ही उपयोग में लेना चाहिए । गोझरण को ताँबे या पीतल के पात्र में नहीं रखना चाहिए । मिट्टी, काँच, चीनी मिट्टी या स्टील का पात्र में रख सकते हैं । ताजा झरण 24 घंटे तक  सेवन करने योग्य माना जाता है । झरण का अर्क कुछ लम्बे समय तक उपयोग कर सकते  हैं । Gaumutra Chikitsa में यह सावधानियाँ रखना बहुत जरुरी है ।

गोझरण अर्क सुबह खाली पेट पानी मिलाकर तत्संबंधी दिये गये निर्देशानुसार  लें । गोझरण पीने के 1 घंटे पहले व बादकुछ नहीं खाना चाहिए । सेवन की मात्रा देश, ऋतु, प्रकृति, आयु आदि के अनुसार बदलती रहती है ।  सामान्यत:  व्यक्ति 50 से 100 मि.ली. तक गोझरण सेवन कर सकते हैं ।

‘गौ स्वास्थ्य वर्धिनी’ उपयोगी उपचार- Gaumutra Chikitsa

(क) बच्चों को खोखली खाँसी होने पर गोझरण में हल्दी का चूर्ण मिलाकर दें।

(ख) जलोदर में मरीज केवल गोदुग्ध का सेवन करे । गोझरण में शहद मिलाकर नियमित निर्देशानुसार लें।

(ग) प्रसूति के बाद होनेवाले सूतिका (सूवा) रोग में गोझरण लेने से लाभ होता है ।

(घ) हाथीपाँव रोग में गोझरण सुबह खाली पेट लें।

(ड) गोझरण सिर में अच्छी तरह मलकर लगायें। सूखने के बाद धो लें। इससे बाल सुंदर होते हैं।

(च) गोझरण में पुराना गुड़ और हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीने से दाद, कुष्ठरोग और हाथीपाँव (फाइलेरिया) में लाभ होता है ।

(छ) उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) में रोज 50 ग्राम गोझरण सुबह-शाम लें ।

(ज)  1 से 3 ग्राम मोचरस मिश्रीयुक्त दूध से सेवन करने पर स्वप्नदोष मिटता है ।

(झ) काकड़ासिंगी पानी में घोंटकर लुगदी बना के दूध में मिला के पीने से शक्ति आती है। मात्रा- बड़ों हेतु : 1 से 3 ग्राम व बच्चों हेतु : 0.5 ग्राम ।

* गौदुग्ध : गौदुग्ध धरती का अमृत है । यह सम्पूर्ण आहार है, साथ ही अमूल्य औषधि भी । बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़े सभीके लिए यह उपयोगी है । यह बल, बुद्धि, स्मृति व रक्तवर्धक, आयुष्य को बढ़ानेवाला रसायन है । ‘चरक संहिता’ में आता है : प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्तं रसायनम । अर्थात् ‘गोदुग्ध जीवनशक्ति बढ़ाने वाला श्रेष्ठतम रसायन है ।’ इससे रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है।

* गौदधि : गाय के दही में उत्पन्न सूक्ष्म जीवाणु आँतों में विषाणुओं की उत्पत्ति को रोकते हैं । दही मथकर उचित मात्रा में सेवन करने से भूख व पाचनशक्ति बढ़ती हैै । कैंसर के लिए भी दही एक असरकारक औषधि है ।

परम पवित्र पंचगव्य

पंचगव्य एक उत्तम उपचार है Gaumutra Chikitsa में । पंचगव्य गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र, और गोबर के रस को एक निश्चित अनुपात में मिलाने से बनता है । पंचगव्य मनुष्य के शरीर को शुद्ध करके स्वस्थ, सात्त्विक व बलवान बनाता है। इसके सेवन से तन-मन-बुद्धि के विकार दूर होकर आयुष्य, बल और तेज की वृद्धि होती है । निम्न मंत्र के तीन बार उच्चारण के पश्चात् खाली पेट सेवन करना चाहिए । पंचगव्य सेवन का मंत्र :

यत् त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके । प्राशनात् पंचगव्यस्य दहत्वग्निरिवेन्धनम् ।।

For More Information: https://srsinternational.org/gau-raksha-ek-andolan-multi-languages

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