Bainkon ka Asali Raj को देश के लोग नहीं समझते । रोथशिल्ड परिवार का बैंकों पर नियंत्रण है । अपनी- अपनी मुद्रा भी कोई नही छाप सकता । इसका इतिहास आदि जानेगें ।
Bainkon ka Asali Raj | बैंकों का असली राज | Real Secrets of Banks
बैंकिंग व्यवस्था के बारे में प्रसिद्ध फोर्ड कम्पनी के संस्थापक हेनरी फोर्ड ने कहा है यह अच्छा है कि देश के लोग हमारी बैंकिंग और मौद्रिक प्रणाली (Monetary Sysstem) को नहीं समझते । अगर समझते तो मुझे विश्वास है कि कल सुबह होने से पहले ही क्रान्ति हो जायेगी ।
बैंक आफ इंग्लैंड को सभी बैंकों की माँ कहा गया है । सन् 1694 में इसकी स्थापना कुछ और लोगों ने की परन्तु बाद में रोथशिल्ड परिवार का उस पर नियंत्रण हो गया । जर्मनी में सन् 1744 में एमशेल रोथशिल्ड का जन्म हुआ जिसे बैंकिंग किंग भी कहा जाता है । उसने अपने पाँचों बेटों को अलग-अलग देशों में आर्थिक सामाज्य स्थापित करने के लिये भेज दिया । उसका तीसरा बेटा नेथन रोथशिल्ड ने अपने शातिरपने और चालाकी से सन् 1815 में एक ही दिन में बैंक आफ इंग्लैंड का मालिक बन गया ।
नेथन रोथशिल्ड कहता है ‘‘अगर देश के पैसों को नियंत्रित और जारी करने का अधिकार मुझे दे दो तो देश का कानून कौन बनाता है इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता ।’’ सन् 1820 में अपने ऊपर गर्व करते हुए रोथशिल्ड कहता है ‘‘मुझे परवाह नहीं कि किस कठपुतली को उस इंग्लैंड के सिंहासन पर बैठाया गया है जिसका सूर्य कभी अस्त नहीं होता । ब्रिटेन की पैसे की मात्रा (Money Supply) को जो आदमी नियंत्रित करता है, वह ब्रिटिश साम्राज्य को भी नियंत्रित करता है और मैं ब्रिटेन के पैसे की मात्रा को नियंत्रित करता हूँ ।’’
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इस तरह पूरी दुनिया से हर वर्ष करोड़ो-करोड़ो रुपये लूटकर जुटाई गयी इस बैंकिंग परिवार की सम्पत्ति का आकलन 500 ट्रिलियन डालर (5 लाख अरब डालर) लगाया गया है । एमशेल रोथशिल्ड ने अपनी वसीयत में लिखा था कि परिवार की सम्पत्ति बटेगी नहीं और परिवार का मुखिया ही इसे नियंत्रित करेगा । इस समय एवलिन रोथशिल्ड मुखिया है जो इस परिवार की 7 वीं पीढ़ी है ।
फेडरल रिजर्व बैंक का मालिक कौनः
फेडरल रिजर्व बैंक अर्थात अमेरिका का केन्द्रीय बैंक, वास्तव में एक स्वतंत्र और निजी कम्पनी है जिसके लगभग 12 क्षेत्रीय फेडरल रिजर्व बैंक हैं । इनकी मालकियत व्यवसायिक बैंकों के हाथ में है । फेडरल रिजर्व बैंक के सभी सदस्य अपने आकार के अनुपात में अपना हिस्सा रखते हैं । न्यूयार्क फेडरल रिजर्व बैंक के पास पूरे फेडरल रिजर्व सिस्टम की 53 प्रतिशत हिस्सेदारी है ।
सन् 1933 में गोल्ड स्टैंडर्ड का अन्तः
पहले आर्थिक मुद्रा (Currency) स्वर्ण (Gold) के आधार पर बनती थी लेकिन सन् 1933 के बाद से वह बात नहीं लागू है । सन् 1933 में गोल्ड स्टैंडर्ड को खत्म करने के लिए और सभी का सोना लूटने के लिए 10 वर्ष की जेल का डर दिखाकर लोगों का सारा सोना इन बैंकरों ने हथिया लिया ।
1. अब्राहम लिंकन- इस अमेरिकीय राष्ट्रपति ने अपना देश चलाने के लिए सन् 1863 में अपनी सरकार का कर्ज मुक्त 500 मिलियन डालर छापे, जिसके पीछे का रंग हरा था जिसे ग्रीन बैंक कहा गया । इस पैसे से चल रहे श्वेत और अश्वेतों के बीच का युद्ध—- जीत गये और अमेरिका दो टुकड़े होने से बच गया । उस समय सेना को धन चाहिये था, सरकार के पास पैसे नहीं थे । सन् 1865 में अब्राहम लिंकन की गोली मारकर हत्या कर दी गयी ।
2. जान एफ. कैनेडी- अब्राहम लिंकन के 100 साल बाद अमेरिकीय राष्ट्रपति जान एफ. कैनेडी (सन् 1961- सन् 1963 तक) ने फेडरल रिजर्व बैंक को अनदेखा करते हुए अमेरिकीय सरकार के 4 अरब डालर छापे, जिससे अमेरिकीय अर्थव्यवस्था को जीवन दान मिल गया । वे फेडरल रिजर्व बैंक को ही समाप्त करना चाहते थे लेकिन इसके पहले ही उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गयी । हत्या के बाद इस तरह की मुद्रा छापनी बंद हो गयी ।
3. हिटलर- सन् 1922- 23 में जर्मनी भयंकर आर्थिक संकट में फँस गया था । उस समय हिटलर ने 100 करोड़ के जर्मन बांड जारी किये और उस बांड को बैंकों को न देकर सीधे जनता में खर्च कर दिये, जिससे 2 साल के अन्दर महंगाई बेरोजगारी आदि खत्म हो गयी और जर्मनी अपने पैरों पर खड़ा हो गया । जर्मनी उस समय दुनिया का शक्तिशाली देश बन गया था । हिटलर को रोकने के लिए बैंकरों ने उसे दूसरे विश्व युद्ध (सन् 1939- सन् 1945) में उतारा जबकि हिटलर युद्ध नहीं चाहते थे ।
4. सुभाष चन्द्र बोस- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को हिटलर से मिलने के बाद यह बात समझ में आयी कि हिटलर की ताकत का असली राज उसके आर्थिक मुद्रा बनाने की शक्ति में छुपा है । इसलिए जब नेताजी ने आजाद हिन्द सरकार का नेतृत्व किया तो सबसे पहले बैंक आफ इंडिपेंडेंस बनाकर अपनी स्वतंत्र सरकार के पैसे बनाने शुरु कर दिये ।
इससे आजाद हिन्द फौज का बल इतना बढ़ गया कि वह अंग्रेजी साम्राज्य को चुनौती देते हुए हर किला फतह करती चली आई । यही कारण था कि अंग्रेज, भारत छोड़कर जाने के बाद नेताजी को और उनके स्वतंत्र पैसे बनाने के विचार को भारत में नहीं आने देना चाहते थे । नेताजी के बारे में यही वह एक बात है जो भारत सरकार देश की जनता से छिपाकर रखना चाहती है ।
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आज तक भारत सरकार सिर्फ 1 रुपये को छोड़कर कोई पैसा नहीं छापती, 2 रुपये से लेकर 2000 रुपये की नोट को भारतीय रिजर्व बैंक छापता है । भारत सरकार इस पैसे को ब्याज पर लेती है और वह ब्याज जनता से टैक्स के रुप में लेकर भारतीय रिजर्व बैंक को दे देती है ।
भारतीय रिजर्व बैंक फेडरल रिजर्व बैंक के अंतर्गत आता है । फेडरल रिजर्व बैंक जो कि कुछ लोगों की निजी व्यवस्था है । ऐसा ही सभी देशों का हाल है । जिस जिसने इस व्यवस्था के खिलाफ जाने की कोशिश की है उसको खत्म करवा दिया गया है ।
भारत में अंग्रेजों के आने से पहले व्यापार के लिए पर्याप्त मात्रा मेें सोने-चांदी के सिक्कों के रूप में मुद्रा उपलब्ध थी । लोगों के ऊपर अंग्रेजों ने कर लगाकर व लूटकर मुद्राओं को बाहर ले गये । भारत में मुद्रा की मात्रा की कमी आ गयी जिससे उद्योग और कृषि नष्ट हो गये ।
अंग्रेजों ने जाने से पहले देश की गुलामी को बरकरार रखने के लिए सन् 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की । सन् 1947 में देश को तथाकथित रूप से आजाद कर अपनी व्यवस्था को ज्यों की त्यों छोड़ दी । इसी व्यवस्था के तहत आज तक हम चले आ रहे हैं । आगे गरीबों को मारकर गरीब मुक्त व किसानों से जमीनें छीनकर किसान मुक्त भारत बनाया जायेगा ।
यूरो सिस्टम मे निर्माण में सहायक रहे बनार्ड लिएटर लिखते हैं ‘‘लालच और प्रतिस्पर्धा अपरिवर्तनीय मानव स्वभाव की वजह से नहीं है, बल्कि लालच और कमी का डर लगातार बनाया जाता है, जो हमारे द्वारा प्रयोग किये जा रहे पैसे (प्रतीकात्मक कागज का टुकड़ा) का एक सीधा परिणाम है ।
सबको खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन की तुलना में हम अधिक उत्पाद कर सकते हैं और दुनिया में हर किसी के लिए पर्याप्त काम निश्चित रुप से है, लेकिन इन सभी को भुगतान करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है । कमी हमारी राष्ट—ीय मुद्राओं में है । वास्तव में केन्द्रीय बैंकों का काम ही है कि मुद्रा की कमी करे और कमी को बनाए रखे । इसका सीधा परिणाम यह है कि हमें जीवित रहने के लिए एक-दूसरे के साथ लड़ना पड़ता है । यही हाल सभी देशों में है ।’’
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