Rishiyon ki Adbhut Khoj- ऋषियों की अद्भुत खोज

Written by Rajesh Sharma

📅 June 9, 2022

Rishiyon ki Adbhut Khoj

Rishiyon ki Adbhut Khoj ऋषियों की अद्भुत खोज से आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक है । ऋषियों की खोज को अंग्रेजो आदि ने अपने नाम पर पेटेंट करा लिया है ।

Rishiyon ki Adbhut Khoj- आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक

भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान और चमत्कारों से भरी पड़ी है। सनातन धर्म वेद को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेद में छिपे इस गूढ़ ज्ञान और विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए और युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है। कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा । आइए मिलें, भारत के महान ऋषियों से जिन Rishiyon ki Adbhut Khoj

महर्षि दधीचि-

वह महातपोबली और शिव भक्त ऋषि थे। वह संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्रासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से बड़े पूजनीय हुए। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए।

देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा परन्तु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।

ब्रह्मदेव ने वृत्रासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिए भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।

आचार्य कणाद:

कणाद परमाणुशास्त्र के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन से भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

भास्कराचार्य:- Rishiyon ki Adbhut Khoj

आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) को खोजने का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य जी ने उजागर किया । भास्कराचार्य जी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है ।

आचार्य चरक :- Rishiyon ki Adbhut Khoj

‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ त्वचा चिकित्सक भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीर विज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की।  आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले उजागर की । यह है भारत के Rishiyon ki Adbhut Khoj

भारद्वाज:- Rishiyon ki Adbhut Khoj

आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमान शास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है ।

कण्व:-

वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है।  इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परम्परा भी कण्व की देन मानी जाती है।

कपिल मुनि:-

ये भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र चाहा इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ में पैदा हुए। कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुख जताया। इस पर ऋषि कर्दम ने देवहूती को इस बारे पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। समय आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया वही सांख्य दर्शन कहलाता है। इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना ।

इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुए वहां पहुंचे राजा सगर के 60 हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।

शौनक :-

वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परम्परा एवं संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह संख्या कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।

महर्षि सुश्रुत :- Rishiyon ki Adbhut Khoj

यह शल्य चिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्य चिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वह शल्यकर्म या आप्रेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई सुश्रुत संहिता ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्य चिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्य क्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी दी गई है जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसी पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आप्रेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वह त्वचा बदलने की शल्य चिकित्सा भी करते थे ।

वशिष्ठ:-

वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी ।

विश्वामित्र:-

ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। तपस्वी ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।

महर्षि अगस्त्य :-

वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।

गर्ग मुनि:-

गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं यानी सितारों की दुनिया के जानकार। यह गर्ग मुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनि जी ने पहले बता दिए थे।

बौद्धयन:-

भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोण के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का समकोण समभुज चौकोण बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया ।

पतंजलि:- Rishiyon ki Adbhut Khoj

आधुनिक दौर में जानलेवा बीमरियों में से एक कैंसर या कर्क रोग का आज उपचार संभव है किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को रोकने वाला ‘योग शास्त्र’ रचकर बताया कि आगे से कैंसर का भी उपचार संभव है।

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